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Sunderkand Path: सुंदरकांड पढ़ने के क्या हैं फायदे, इन 14 पंक्तियों में मिलेगा पूरा सार

सुंदरकांड पठन से समस्त जीवन को संगीतमय, आरोग्यमय, और धार्मिक दृष्टिकोण से समृद्धि मिलती है. यह जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाता है और भक्ति मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करता है.

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Vikash Gupta
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Sunderkand Path

Sunderkand Path ( Photo Credit : News Nation)

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Sunderkand Path: "सुंदरकाण्ड" रामचरितमानस का एक अंश है जो भगवान राम के अयोध्या छोड़ने के बाद, उनकी पत्नी सीता का अपहरण और हनुमानजी की चिरधनुष प्रस्थान तक की कथा को विस्तार से बताता है. यहां कुछ पंक्तियाँ "सुंदरकाण्ड" से ली गई हैं अगर आप पूरा पाठ नहीं पढ़ सकते तो ये पंक्तियां कम से कम पढ़कर पुण्यफल कमा सकते हैं.  सुंदरकांड, भगवान रामचरितमानस का एक महत्वपूर्ण भाग है, और इसे पढ़ने के कई फायदे हैं. आइए जानते हैं कि सबको ये पाठ क्यों पढ़ना चाहिए फिर संक्षेप में पूरे पाठ का सार जानेंगे. 

श्रद्धा और भक्ति का विकास: सुंदरकांड के पठन से श्रद्धा और भक्ति में वृद्धि होती है. हनुमान जी का प्रेम और समर्पण इसे एक अद्भुत भक्ति कथा बनाते हैं.

संकटों का निवारण: सुंदरकांड के पठन से संकटों का निवारण होता है, और भक्त को शांति, सुख, और समृद्धि प्राप्त होती है.

विद्या का प्राप्ति: सुंदरकांड को पढ़ने से विद्या, बुद्धि, और ज्ञान की प्राप्ति होती है. हनुमान जी की विद्या और बुद्धि इसे एक शिक्षा स्रोत बनाते हैं.

मनोबल और आत्मविश्वास में सुधार: सुंदरकांड का पठन मनोबल को मजबूती प्रदान करता है और व्यक्ति को आत्मविश्वास में सुधार करने में मदद करता है.

संतुलन और शांति: सुंदरकांड के पठन से मानव जीवन में संतुलन और शांति का अनुभव होता है. हनुमान जी के उदाहरण से जीवन में धर्म, कर्म, और भक्ति के संतुलन का महत्व समझा जाता है.

कर्मयोगी जीवन का सूचना: सुंदरकांड का पठन व्यक्ति को कर्मयोगी जीवन की दिशा में प्रेरित करता है. हनुमान जी के सेवाभाव और कर्तव्यनिष्ठ जीवन से सीखने का सुनहरा अवसर मिलता है.

सुंदरकांड पठन से समस्त जीवन को संगीतमय, आरोग्यमय, और धार्मिक दृष्टिकोण से समृद्धि मिलती है. यह जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाता है और भक्ति मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करता है.

संक्षेप में जानें सुंदरकांड पाठ का सार 

श्रीराम जयराम जयजयराम।

श्रीराम जयराम जयजयराम।

सीताराम जयराम जयजयराम।

हरष बहुत सुनि तात बचन बिप्र बृन्दहित।

राम लखन सुग्रीवहि सिर सुहाना कहित॥

आलस दलन कंचन सुत जव कीन्हौ।

युग बीस दिनहि ताहि सुग्रीव सेन कीन्हौ॥

करुण दृष्टि ताहिं भगवान।

निज भक्तन हित के अवतारण॥

सुग्रीव सुनी सुजान सुखदाता।

सोहिनी अस बल मित्र सों बाता॥

अतिसय अभीमान ताहिं अनुरागा।

जेहि साथ तुम्ह भगवंत अब दान न लागा॥

सुग्रीवहि चरन निज गल कटिन संगा।

साधू करहिं रहो राखहिं सकल बंधन भंगा॥

काजु करुँग काजु न करुँग दूजा।

राम बचन बिचारी जिहि सुजान मूजा॥

यहां दी गई पंक्तियां सुंदरकाण्ड का संक्षेप हैं. इसके अधिक भाग को पढ़ने के लिए, "सुंदरकाण्ड" का पूरा पाठ रामचरितमानस के संबंधित भागों से लिया जा सकता है.

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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं। न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है। इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)

Source : News Nation Bureau

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