Pauranik Kathayen: हनुमान जी की शक्तियों का बखान तो संसार करता है लेकिन एक बार हनुमान बाबा को जब अपनी शक्ति और गति पर घमंड होने लगा तो इसे देखकर भगवान राम हैरान रह गए. भगवान राम ने हनुमान जी के इस घमंड को चकनाचूर करने में देरी नहीं की. भगवान राम और उनके भक्त हनुमान की ये पौराणिक कथा प्रचलिक है. न्यूज़ नेशन पर हम आपको बता रहे हैं कि बल बुद्धि और शक्ति के दाता हनुमान जी में जैसे ही घमंड आना शुरु हुआ भगवान उसे ज्यादा देर उनमें नहीं रहना पड़ा. लेकिन ये घमंड आया कैसे और फिर कैसे भगवान राम ने इसे तोड़ा आइए जानते हैं.
एक पौराणिक कथा के अनुसार भगवान राम अंतर्यामी थे कब, कहां क्या हो रहा और होने वाला है ये उन्हें पहले ही पता होता था. एक बार हनुमान जी से उन्होंने कुछ कार्य करने को कहा. राम के परम भक्त हनुमान भला उनका कहा कैसे टाल सकते थे वो तैयार हो गए लेकिन इस बार उनमें इस बात का घमंड आने लगा. ये कहानी है उस समय की जब भगवान श्रीराम लंका जाने के लिए समुद्र पर सेतु बांधने की तैयारी कर रहे थे. श्रीरामजी की इच्छा समुद्र सेतु पर शिवलिंग स्थापित करने की हुई. उन्होंने हनुमानजी से कहा कि शुभ मुहुर्त में आप काशी जाकर भगवान शंकर से लिंग मांग कर लाओ. ध्यान रहे कि शुभ मुहूर्त में ही वापस आना है और इसे स्थापित करना है. हनुमान जी क्षणभर में काशी पहुंच गए. इस पर उन्हें गर्व का अनुभव होने लगा. उन्हें लगा भला ये कौन सी बड़ी बात है. अंतर्यामी भगवान श्रीराम जी को इस बात का पता लग गया. उन्होंने हनुमान के मन की बात जान ली. उन्होंने सुग्रीव को बुलाया और कहा कि मुहुर्त बीतने वाला है, अतएव मैं रेत से बनाकर एक लिंग स्थापित कर देता हूं.
ऐसे टूटा हनुमान जी का घमंड
शुभ मुहूर्त बीतने ही वाला था कि हनुमान जी भी पहुंच गए. उन्होंने श्रीराम से कहा काशी भेजकर मेरे साथ ऐसा क्यों किया? श्रीराम ने कहा मुझसे भूल हुई है. मेरे द्वारा स्थापित इस बालू के लिंग को उखाड़ दो. मैं अभी तुम्हारे लाए लिंग को स्थापित कर देता हूं.
हनुमानजी ने पूंछ में लपेटकर शिवलिंग उखाड़ने का प्रयास किया. शिवलिंग उखाड़ना तो दूर टस से मस नहीं हुआ. हनुमान जी को शक्ति और गति का जो घमण्ड था वह चकनाचूर हो गया. उन्होंने श्रीराम के चरणों में शीश झुका लिया और अपनी नादानी पर क्षमा मांगी.
इस तरह अगर आप भी भगवान के परम भक्त हैं और अपने काम में लाख निपुण भी हैं तो भी आपको इस बात का घमंड नहीं करना चाहिए. कहते हैं घमंड तो रावण का भी नहीं रहा. अहंकार के आगे सब खत्म हो जाता है. झुके हुए पेड़ ही फल होते हैं. सूखा पेड़ तो ताड़ की तरह खड़ा रहता है.
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