What is Ish Ninda: ईशनिंदा (ब्लासफेमी) का अर्थ है कि किसी धर्म, उसके प्रतीक, देवी-देवता, या पैगंबर का अपमान करना. विशेषकर इस्लाम में, पैगंबर मोहम्मद, कुरान और अल्लाह के प्रति अनादर को ईशनिंदा (blasphemy) माना जाता है. मुस्लिम-बहुल देशों में इसे बहुत गंभीर अपराध माना जाता है, और कुछ देशों में इसकी सजा मौत भी हो सकती है. इस्लाम धर्म में अल्लाह, कुरान और पैगंबर मोहम्मद की सर्वोच्चता और पवित्रता पर बहुत जोर दिया गया है. मुस्लिम समाज में पैगंबर का सम्मान सबसे ऊँचा स्थान रखता है और उसे अपमानित करना समाज और धर्म के लिए एक बड़ा अपराध माना जाता है. इसलिए, ईशनिंदा के मामले में कठोर सजा का प्रावधान किया गया है ताकि समाज में धार्मिक अनुशासन और श्रद्धा बनी रहे.
मुस्लिम-बहुल देशों में ईशनिंदा कानून का इतिहास
ईशनिंदा कानून का इतिहास औपनिवेशिक काल में देखा जा सकता है. ब्रिटिश शासन के दौरान भारतीय उपमहाद्वीप में ईशनिंदा के खिलाफ कानून बनाए गए ताकि धर्मों के बीच आपसी विवादों को कम किया जा सके. पाकिस्तान और अन्य मुस्लिम देशों में स्वतंत्रता के बाद भी यह कानून बने रहे और समय के साथ और भी कठोर हो गए. वर्तमान में पाकिस्तान, ईरान, सऊदी अरब, अफगानिस्तान और अन्य मुस्लिम देशों में ईशनिंदा के मामलों में सख्त सजा का प्रावधान है. मुस्लिम देशों में ईशनिंदा पर कठोर कानून होने के बावजूद, इन पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय में आलोचना भी होती रही है. इन कानूनों का उपयोग कई बार व्यक्तिगत दुश्मनी, राजनीतिक उद्देश्य और धार्मिक अल्पसंख्यकों को दबाने के लिए भी किया जाता है.
सजा का प्रावधान
मुस्लिम-बहुल देशों में ईशनिंदा की सजा के प्रावधान अलग-अलग होते हैं. सऊदी अरब और ईरान में मौत की सजा दी जाती है. पाकिस्तान में भी मौत की सजा का प्रावधान है, हालांकि इस पर अमल कम ही होता है. कई मामलों में आजीवन कारावास और कठोर दंड भी दिया जाता है. इन देशों में न्यायालयों द्वारा ईशनिंदा के मामलों में बहुत संवेदनशीलता बरती जाती है, लेकिन कई बार भीड़ द्वारा ही आरोपित व्यक्ति को सजा दे दी जाती है, जिसे "मॉब लिंचिंग" भी कहते हैं. ईशनिंदा कानून (blasphemy law) पर अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों का मानना है कि यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के खिलाफ है. संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने कई बार इन कानूनों को हटाने की अपील की है. कई मुस्लिम देशों में भी अब इस बात पर बहस हो रही है कि क्या ईशनिंदा के मामलों में सुधार किया जाना चाहिए.
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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)