Pashupatinath Mandir: नेपाल माता सीता की जन्मस्थल है और महर्षि वाल्मीकि की कर्मस्थली है. नेपाल आदि काल से ही साधु संतों के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है. यह देश हिमालय की गोद में प्रकृति की खूबसूरती को सदियों से अपने में समेटे हुए है. नेपाल पूरी दुनिया में अपनी ऊंचे-ऊंचे पर्वतों, धर्म, कला और प्राकृतिक सुंदरता के लिए विख्यात है और इसी खूबसूरत देश की राजधानी काठमांडू से सिर्फ तीन किलोमीटर दूर देव पाटन गांव में बागमती नदी के तट पर भगवान शिव का प्राचीन मंदिर पशुपति भी स्थित है. भगवान पशुपति भगवान शिव के ही दिव्य स्वरूप हैं. यहां दर्शन के लिए हर साल भारत और दूसरे देशों से हजारों हिंदू श्रद्धालु नेपाल की यात्रा करते हैं. कहते हैं पशुपति का मतलब होता है सभी चीजों के स्वामी अर्थार्थ पूरे ब्रह्मांड में जीतने भी जीव हैं उन सबके भगवान श्री पशुपति जी हैं. यह मंदिर नेपाल का सबसे बड़ा मंदिर है और सबसे पवित्र माना जाता है. ऐसी भी मान्यता है कि जो कोई इस मंदिर में भगवान के दर्शन कर लेता है या फिर उसका अंतिम संस्कार किया जाता है. तो उसके सारे पाप धुल जाते हैं और फिर उसके बाद उसका जन्म सिर्फ मनुष्य योनि में ही होता है. अपने जीवन के अंतिम समय लोग इस मंदिर में बिताने के लिए आते हैं क्योंकि लोगों का मानना है कि यहां पर जिसकी भी मृत्यु होती है उसे सारे पापों से मुक्ति मिल जाती है और वह स्वर्ग की प्राप्ति करता है. इसलिए मंदिर परिसर में आपको बहुत से वृद्ध व्यक्ति साधना करते हुए दिख जाएंगे.
भगवान पशुपतिनाथ मंदिर को यूनेस्को ने विश्व धरोहर के रूप में भी मान्यता दी है. मंदिर पूरे विश्व में अपनी दिव्यता और रहस्यों के लिए भी जाना जाता है.
सिर्फ हिंदूओं को ही मिलता है मंदिर के अंदर प्रवेश
भगवान पशुपति के दर्शन के लिए इस मंदिर में केवल हिन्दू श्रद्धालु ही प्रवेश कर सकते हैं. अन्य धर्मों के लोग मुख्य मंदिर में प्रवेश नहीं कर सकते हैं. इसलिए उनके लिए बाहर ही व्यवस्था की गई है. जहां से वो सभी लोग पशुपतिनाथ भगवान के दर्शन कर सकें. भगवान शिव के कुल 1008 नाम है जिसमें भगवान पशुपति नाम सबसे प्रसिद्ध और प्रभावशाली माना जाता है. इस रूप को भगवान शिव का मनुष्य रूप भी समझा जाता है.
मंदिर पहुंचने के लिए नेपाल सरकार ने हर तरह की सुविधा दे रखी है. राजधानी काठमांडू में एयरपोर्ट और बस स्टैंड दोनों हैं जिसकी सहायता से आप काठमांडू पहुंच सकते हैं. काठमांडू से देव पाटन गांव पहुंचने के लिए बस, रिक्शा और टेम्पो की सुविधा भी उपलब्ध है.
पशुपतिनाथ मंदिर की कहानी क्या है?
ऐसा माना जो आता है कि इस लिंगम को वेद लिखे जाने से पहले ही स्थापित किया गया था. इस मंदिर को लेकर आज हमारे पास जो भी साक्ष्य है वो सभी तेरहवीं शताब्दी के ही हैं. लेकिन, इस मंदिर को लेकर मान्यता है की मंदिर का निर्माण तीसरी शताब्दी से पूर्व में सोमदेव राजवंश के राजा पशु प्रेक्ष ने किया था. दुबारा से ग्यारहवीं सदी में इसे बनवाया गया था. श्री पशुपतिनाथ मंदिर को अंतिम बार 1697 में राजा नरेश भूपेन्द्र मल ने बनवाया था. ऐसे में देखा जाए तो ये मंदिर को लेकर एक नहीं लोगों में कई मान्यताएं हैं. जिसमे एक मान्यता महाभारत से भी जुड़ी हुई है. महाभारत युद्ध के दौरान पांडवों ने लाखों लोगों को मारा था जिसका उन्हें बहुत ज्यादा दुःख था और वो इसी से दुखी होकर भगवान श्री कृष्ण से मिलते हैं. श्री कृष्ण ने उन्हें इस पाप से मुक्ति पाने के लिए भगवान शिव की शरण में जाने के लिए कहते हैं. इसके बाद युद्धेश्वर अपने भाइयों के साथ भगवान शिव की खोज करने लगते हैं.
पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान शिव पांडवों से नाराज थे और इसलिए वे इन्हें दर्शन नहीं देना चाहते थे लेकिन पांडवों ने भी प्रतिज्ञा कर ली थी कि वे भगवान शिव से माफी मांग कर ही रहेंगे. भगवान शिव कैलाश पर्वत छोड़ वाराणसी में निवास करने लगते हैं लेकिन पांडव भी वहां पर पहुंच गए. जिसके बाद भगवान शिव? एक बैल का रूप धारण कर कैलाश पर्वत पर जाकर जानवरों के एक झुंड में मिल जाते हैं. पांडवों को जैसे ही स्वैस्य का पता चलता है वे सभी कैलाश पर्वत पर पहुंच जाते हैं, लेकिन वे पहचान नहीं पाते कि उन जानवरों में से भगवान शिव कौन है. तभी भीम अपना विशाल रूप धारण करके जानवरों के रास्ते को रोक देते हैं, जिसके कारण सभी जानवर तो निकल जाते हैं लेकिन भगवान शिव रूपी बैल नहीं निकल पाता जिसके कारण पांडवों को सच्चाई का पता लग जाता है. तभी वह बैल जमीन में धंसने लगता है. और भीम दौड़कर अपनी बलशाली भुजाओं से बेल के कूबड़ को पकड़ लेते हैं और वह हिस्सा धरती में नहीं धस पाता.
भगवान शिव पांडवों की इस भक्ति से खुश होते हैं और फिर उन्हें सभी पापों से मुक्त करते थे. जब बैल धरती में समा रहा था तो उसका अलग-अलग हिस्सा अलग अलग जगहों पर घराती के ऊपर निकलता है और वे सभी स्थान पवित्र स्थल बन जाते हैं. बैल का कूबड़ जहां निकला था वहां केदारनाथ मंदिर बन गया. बैल का माथा काठमांडू के पास प्रकट हुआ था जहां पर आज भगवान पशुपति नाथ का मंदिर है. टांगे जहां प्रकट हुई उसे तुंगनाथ कहा गया. हिमालय के मध्य माहेश्वर में बैल की नाभि प्रकट हुई थी और बैल का सींग जहां से निकला उसे कल्पनात कहा जाता है. भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक ज्योतिर्लिंग केदारनाथ का है जिसका आधा हिस्सा पशुपतिनाथ मंदिर का आ जाता है. इसलिए ऐसा कहा जाता है क्योंकि भगवान शिव पशुपतिनाथ मंदिर आने से पहले भक्तों को केदारनाथ के दर्शन करने चाहिए. नहीं तो उन्हें फल नहीं मिलता.
Source :News Nation Bureau