Shri Krishna Aur Devi Yamuna: हिंदी पंचांग के अनुसार मार्गशीर्ष के महीने की शुरुआत हो चुकी है. ये महीना भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित है. मान्यता है कि इस महीने में अगर आप पवित्र नदी यमुना में स्नान करते हैं तो इसका कई गुना पुण्य फल मिलता है. लेकिन भगवान कृष्ण और देवी यमुना में क्या रिश्ता है और इस महीने में यमुना नदी में ही स्नान करने का क्या महत्व है इस बारे में गीता में भी बताया गया है. इतना ही नहीं इस महीने में विष्णुसहस्त्र नाम, भगवत गीता और गजेन्द्रमोक्ष का पाठ करने से भी व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. तो आइए जानते हैं भगवान श्रीकृष्ण और देवी यमुना की पौराणिक कथा क्या है.
मार्गशीर्ष माह में यमुना स्नान का महत्व
भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में मार्गशीर्ष माह की महत्ता बताते हुए कहा है - मासानां मार्गशीर्षोऽहम् जिसका हिंदी में अर्थ है माहों में मार्गशीर्ष मेरा ही स्वरूप है. इस माह में विष्णुजी के श्रीकृष्ण सहित अन्य अवतारों की पूजा भी की जाती है.
पौराणिक कहानियों के अनुसार गोपियां जब भगवान श्रीकृ्ष्ण को प्राप्त करने के लिए ध्यान लगा रही थीं, तब श्रीकृष्ण ने उन्हें बताया कि मार्गशीर्ष माह में यमुना नदी में स्नान करने से मुझे प्राप्त किया जा सकता है. यही वजह के कि श्रीकृष्ण उपासक इस महीने में पवित्र यमुना नदी का स्नान करते हैं.
जब पहली बार यमुना देवी को हुए श्री कृष्ण के दर्शन
पौराणिक कथाओं के अनुसार श्रीकृष्ण के जन्म के बाद जब उनके पिता वासुदेव जी कंस के डर से अपने बेटे को ब्रज में छोड़ने निकले तो रास्ते में उन्हें एक नदी पार करनी पड़ी ये नदी कालिंदी थी जिसे बाज में यमुना कहा गया. पहली बार तब कालिंदी ने श्री कृष्ण के चरण स्पर्श किया और उनका स्वागत किया. बाल गोपाल कान्हा का पूरा बचपन इसी नदी के किनारे बीता. लेकिन धर्म के कारण जब उन्हें ब्रज छोड़कर जाना पड़ा तब यमुना जी ने भगवान श्रीकृष्ण का साथ सदा पाने के लिए तपस्या की, ताकि वो उन्हें पति स्वरूप पा सकें.
भगवान श्रीकृष्ण और देवी यमुना का विवाह
यमुना सूर्य और शरण्यु की पुत्री है. मृत्यु के देवता यम की जुड़वां बहन है. शनिदेव भी इनके भाई हैं. पौराणिक कथा के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण की 8 पटरानियों में से एक देवी यमुना भी हैं. कथा अनुसार,
एक बार श्रीकृष्ण अर्जुन को साथ लेकर घूमने गए। यमुनातट पर एक वृक्ष के नीचे दोनों विश्राम कर रहे थे. श्रीकृष्ण को ध्यान मग्न देखकर अर्जुन टहलते हुए यमुना के किनारे कुछ दूर निकल गए. वहां उन्होंने देखा कि यमुना नदी के अदंर सोने और रत्नों से सजी एक बहुत सुंदर स्त्री तप कर रही है. अर्जुन ने जब उससे परिचय पूछा तो उसने कहा, मैं सूर्यदेव की पुत्री कालिंदी हूं. भगवान श्रीकृष्ण के लिए मेरे मन में अपार श्रद्धा है और मैं उन्हीं को पाने के लिए तप कर रही हूं. मुझे पूरा विश्वास है कि मेरी मनोकामना अवश्य पूर्ण होगी. अर्जुन ने वापस लौटकर यह वृत्तांत श्रीकृष्ण को सुनाया तो श्यामसुंदर ने कालिंदी के पास जाकर उन्हें दर्शन दिया और उनके अनुरोध को स्वीकार कर लिया. इसके बाद श्रीकृष्ण ने सूर्यदेव के सामने उनकी पुत्री कालिंदी (यमुना) से विवाह का प्रस्ताव रखा तो उन्होंने श्रीकृष्ण के साथ कालिंदी का विवाह कर दिया. इस प्रकार वह द्वारकाधीश श्रीकृष्ण की पटरानी बन गई.
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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं। न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है। इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है।)
Source : News Nation Bureau