Kya Kehta Hai Islam: इस्लाम धर्म में हिजाब और दाढ़ी का महत्व, जानें कुरान में क्या लिखा है

Explainer: क्या आप जानते हैं कि हिजाब और दाढ़ी के बारे में इस्लाम धर्म में क्या कहा गया है. अब मुस्लिम देश हिजाब और दाढ़ी को अपने ही देश में क्यों बैन कर रहे हैं और इस्लमा धर्म में इसका क्या महत्व है.

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Inna Khosla
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What is the importance of hijab and beard in Islam religion

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Kya Kehta Hai Islam: मुस्लिम देश तजाकिस्तान से आयी खबर ने इस्लाम धर्म के लोगों में बहस शुरू कर दी है. इस मुस्लिम देश ने ऐसा बड़ा फैसला लिया है जिसे इस्लाम धर्म मानने वाले लोग सुनकर दंग रह गए हैं. ये तो सब जानते ही हैं कि इस्लामिक लोग दाढ़ी और हिजाब को कितना महत्व देते हैं. इतना ही नहीं ये अब इस धर्म के लोगों की पहचान तक बन चुका है. लेकिन, अब उनकी यही पहचान उनके लिए मुसीबत बन गयी है. तजाकिस्तान में अगर किसी ने हिजाब पहना या दाढ़ी बढ़ायी तो उस पर पुलिस कार्रवाही होगी इतना ही नहीं जुर्माना तक लगाया जाएगा. अब सवाल ये है कि इस्लाम की पहचान बन चुके हिजाब और दाढ़ी के बारे में क्या इस्लाम धर्म के किसी ग्रंथ में कुछ लिखा है और अगर इसका जवाब हां है तो क्या लिखा है. अगर  जवाब न है तो फिर हिजाब क्यों पहना जाता है या फिर दाढ़ी क्यों बढ़ाई जाती है.

इस्लाम धर्म में हिजाब का महत्व

हिजाब शब्द का सामान्य अर्थ है कवच या ढकना, इस्लाम धर्म में हिजाब एक महत्वपूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक परंपरा है. इस्लामिक महिलाएं शारीरिक और धार्मिक आस्तिकता के प्रतीक के रूप में हिजाब पहनती हैं. 

इस्लाम में हिजाब की परिभाषा क्या है? कुरान, सूरा अल-नूर (24:31) में लिखा है- और वह अपने जड़ी-बूटियों को अपनी खूबसूरती न दिखाएं, सिवाय इसके कि जो खुदा ने खुद से जाहिर किया हो, और अपने दुपट्टे को अपने गले पर डालें. कुरआन, सूरा अल-अहज़ाब (33:59) में लिखा है हे नबी! अपनी पत्नियों, अपनी बेटियों और मुमिनों की महिलाओं से कह दो कि वे अपने ऊपर हिजाब लपेट लें. इस्लाम धर्म में यह विश्वास है कि हिजाब पहनने से महिलाओं की इज्जत और गरिमा की रक्षा होती है और यह सामाजिक विनम्रता को बढ़ावा देता है. हिजाब मुस्लिम संस्कृति और पहचान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा भी है.

कई महिलाएं हिजाब पहनने को आत्म-संयम और स्वतंत्रता का प्रतीक मानती हैं. हिजाब पहनने का निर्णय व्यक्तिगत होता है और यह कई मामलों में व्यक्तिगत आस्थाओं, धार्मिक शिक्षा, और सांस्कृतिक परंपराओं पर निर्भर करता है. कुछ मुस्लिम समाजों में इसे धार्मिक अनिवार्यता के रूप में देखा जाता है, जबकि अन्य में यह व्यक्तिगत चयन के रूप में माना जाता है.

इस्लाम धर्म में दाढ़ी का महत्व

सुनत और हदीस में दाढ़ी के बारे में क्या लिखा गया है आप ये भी जान लें. हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की हदीसों में दाढ़ी रखने की सलाह दी गई है. एक हदीस में कहा गया है दाढ़ी बढ़ाओ और मूंछें छोटा करो. (सहीह मुस्लिम, हदीस 259) इसी तरह, एक और हदीस में आया है जिसने हमारी दाढ़ी की तरह दाढ़ी रखी और हमारी मूंछों की तरह मूंछें रखीं, वह हमें से नहीं है. (सहीह अल-बुखारी)

सुनत और आचरण की बात करें तो इस्लाम में दाढ़ी रखना हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की आचरण का पालन करने के रूप में देखा जाता है. मुसलमानों के लिए यह एक धार्मिक अनिवार्यता नहीं, बल्कि एक आदर्श आचरण है, जो उनके धार्मिक अनुशासन और सम्मान को दर्शाता है. दाढ़ी रखना मुसलमानों की पहचान का हिस्सा बन गया है. कई मुस्लिम समाजों में दाढ़ी रखना एक सांस्कृतिक आदत भी है जो धार्मिक आस्थाओं और परंपराओं को व्यक्त करती है. यह पुरुषों को इस्लामिक आदर्शों का पालन करने के लिए प्रेरित करता है और धार्मिक आचरण में विश्वास बढ़ाता है. कई मुस्लिम समुदायों में यह सम्मान का प्रतीक होता है और धार्मिक लोगों की पहचान को दर्शाता है. हालांकि, दाढ़ी रखना इस्लाम में एक अनिवार्य धर्मनिरपेक्षता नहीं है, लेकिन यह एक महत्वपूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक परंपरा के रूप में देखा जाता है.

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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)

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