Geeta Updesh: भगवान कृष्ण का जीवन और उनके उपदेश मानवता के लिए अमूल्य धरोहर हैं. उनके उपदेशों का सार यही है कि व्यक्ति को धर्म, कर्म और भक्ति के पथ पर चलना चाहिए. कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन. मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥ अर्जुन को ये उपदेश देते हुए भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि तुम केवल अपने कर्म करते रहो, उसके फल की चिंता मत करो. कर्मफल के लिए मत करो और ना ही कर्म न करने में लगे रहो. जो लोग मन को नियंत्रित नहीं कर पाते उनके लिए यह शत्रु की तरह कार्य करता है. जिसके पास कोई आसक्ति नहीं है, वह वास्तव में दूसरों से प्रेम कर सकता है, क्योंकि उसका जीवन शुद्ध और दिव्य है.
कर्म का महत्व
भगवान कृष्ण का सबसे प्रमुख संदेश "कर्मयोग" का है, जो उन्होंने अर्जुन को भगवद गीता में दिया. उन्होंने कहा: "कर्म किए जा, फल की चिंता मत कर." इसका अर्थ है कि व्यक्ति को अपना कर्तव्य निभाना चाहिए, बिना यह सोचे कि परिणाम क्या होगा. हमें केवल अपने कर्मों पर ध्यान देना चाहिए, क्योंकि फल का निर्धारण भगवान करते हैं.
धर्म का पालन
कृष्ण ने सदैव धर्म का पालन करने की शिक्षा दी. उनके अनुसार धर्म का अर्थ सिर्फ धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि जीवन में सत्य, न्याय, और नैतिकता का पालन करना है. धर्म के मार्ग पर चलकर ही व्यक्ति अपने जीवन को सफल बना सकता है.
3. समता और संतुलन
कृष्ण का एक महत्वपूर्ण संदेश है कि हमें जीवन में समता और संतुलन बनाए रखना चाहिए. उन्होंने सिखाया कि हमें न तो सुख में अधिक प्रसन्न होना चाहिए और न ही दुख में अधिक व्यथित. उन्होंने कहा: "समत्वं योग उच्यते", यानी संतुलित भाव ही योग है. हर परिस्थिति में समान बने रहना ही श्रेष्ठ मार्ग है.
भक्ति का मार्ग
भगवान कृष्ण ने प्रेम और भक्ति को जीवन का सर्वोच्च उद्देश्य बताया. उन्होंने सिखाया कि ईश्वर की भक्ति और प्रेम से व्यक्ति सभी बंधनों से मुक्त हो सकता है. उनका कहना था कि जब हम समर्पण भाव से भगवान का ध्यान करते हैं, तब ईश्वर हमारी रक्षा करते हैं: "सर्वधर्मान् परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज." इसका अर्थ है कि सभी प्रकार के धर्मों का त्याग करके भगवान की शरण में आ जाना चाहिए.
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अहंकार का त्याग
कृष्ण ने अहंकार को जीवन की सबसे बड़ी बाधा बताया है. उन्होंने कहा कि अहंकार व्यक्ति को पतन की ओर ले जाता है, जबकि विनम्रता और सादगी से जीवन में उन्नति होती है. उनके अनुसार, स्वयं को छोटा समझने में ही सच्ची महानता है.
सत्य और न्याय का मार्ग
भगवान कृष्ण ने हमेशा सत्य और न्याय का समर्थन किया. उनका जीवन इस बात का उदाहरण है कि सत्य के मार्ग पर चलने से ही विजय प्राप्त होती है. महाभारत के युद्ध में भी उन्होंने पांडवों को धर्म और सत्य के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया.
इसके अलावा, कृष्ण ने मोह को जीवन की सबसे बड़ी कमजोरी बताया है. उन्होंने कहा कि हमें सांसारिक वस्तुओं और रिश्तों के प्रति अधिक आसक्त नहीं होना चाहिए, क्योंकि मोह ही दुखों का कारण बनता है. व्यक्ति को बिना किसी मोह के अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए. उन्होने ये भी बताया कि हम सभी एक ही ब्रह्मांड के अंग हैं और हमें इसकी रक्षा करनी चाहिए. जीवन को एक उत्सव की तरह मनाने और प्रकृति के साथ तालमेल बिठाकर जीने की शिक्षा भी उन्होने गीता में दी है.
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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)