Shani Pradosh Vrat: हिंदू पंचांग के अनुसार एक महीने में 15-15 दिनों के 2 पक्ष होते हैं. एक कृष्ण पक्ष होता है और एक शुक्ल पक्ष होता है. हर महीने की त्रयोदशी तिथि के दिन प्रदोष व्रत रखा जाता है. ये तिथि जिस दिन पड़ती है उस जिन का प्रभाव इस व्रत पर पड़ता. भादो माह का पहला प्रदोष व्रत शनिवार के दिन पड़ रहा है इसलिए इसे शनि प्रदोष कहा जाएगा. शनि प्रदोष व्रत विशेष रूप से उन लोगों के लिए फलदायी होता है जो शनि देव के प्रभाव से ग्रसित होते हैं. माना जाता है कि इस व्रत के माध्यम से शनि देव की कृपा प्राप्त होती है और जीवन के कठिन समय में राहत मिलती है. जो व्यक्ति शनि प्रदोष व्रत रखता है, उसके जीवन से शनि दोष, कष्ट, आर्थिक संकट और रोगों का नाश होता है.
शनि प्रदोष व्रत पूजा का शुभ मुहूर्त
भाद्रपद माह की त्रयोदशी तिथि का 30 तारीख को रात 2 बजकर 26 मिनट पर शुरू होगी जो अगले दिन 31 तारीख को देर रात 3 बजकर 41 मिनट तक रहेगी. उदया काल में त्रयोदशी तिथि 31 तारीख में होने के कारण भाद्रपद माह का पहला शनि प्रदोष व्रत 31 तारीख को ही रखा जाएगा.
प्रदोष काल में पूजा का समय शाम को 5 बजकर 44 मिनट से 7 बजकर 44 मिनट तक है. इस दौरान प्रदोष व्रत की पूजा करने सर्वोत्तम फलदायी रहेगा.
व्रत विधि और पूजा
शनि प्रदोष व्रत की पूजा शाम के समय, सूर्यास्त के बाद की जाती है. इस दिन व्रत रखने वाले लोग सुबह स्नान करके शुद्ध वस्त्र धारण करते हैं और व्रत का संकल्प लेते हैं. पूजा में शिवलिंग का अभिषेक करने के साथ ही शनि देव की विशेष पूजा अर्चना की जाती है. प्रदोष काल (संध्या का समय) में भगवान शिव और शनि देव की आराधना की जाती है. इस दिन व्रती को काले तिल, उड़द, लोहे का सामान और काले वस्त्र का दान करना चाहिए. माना जाता है कि ऐसा करने से शनि दोष कम होता है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है.
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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)