हनुमान जी (hanuman ji) ने लंका में जब प्रभु श्री राम की दी हुई अंगूठी गिराई तो, उन्होंने उसे अपने हाथों में लिया. फिर, पहचान करके विचार करने लगीं कि ऐसी अंगूठी माया से रची (ramayan story) नहीं जा सकती है. जिसके बाद श्री रघुनाथ जी तो अजेय हैं. जिन्हें हराकर कोई ये अंगूठी प्राप्त नहीं कर सकता है. इस बीच हनुमान जी बिना सामने आए अपने प्रभु का गुणगान करने लगे तो, सीता माता (sita maa) ने पूछा आप कौन हैं और सामने क्यों नहीं आते हैं. जिसके बाद जैसे ही हनुमान जी लघु रूप में माता सीता के सामने आए तो जानकी जी ने उन्हें देखते ही मुंह फेर लिया. उन्हें लगा कि इतना छोटा-सा वानर (lord hanuman) इतना बड़ा काम नहीं कर सकता है. लेकिन, जब हनुमान ने पूरी कथा सुनाई तो, सीता जी को विश्वास हो गया और उनके प्रति स्नेह का भाव जाग गया.
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माता सीता की छलक आईं आंखें -
सीता जी को जब हनुमान जी पर विश्वास हो गया तो उनकी आंखों में जल भर आया और शरीर में कुछ अजीब सी सिहरन होने लगी. उन्होंने हनुमान जी से कहा कि मैं तो विरह के सागर में डूब रही थी किंतु तुम जहाज के रूप में मेरे सामने आ गए हो. अब तुम जल्दी से छोटे भाई लक्ष्मण जी सहित सुख के धाम प्रभु श्रीराम (Manthra and kaikeyi) की कुशल मंगल के बारे में बताओ. उन्होंने कहा कि वह तो कृपा के सागर हैं फिर मेरे बारे में वह इतना निष्ठुर कैसे हो गए. मुझे क्यों भुला दिया और अभी तक सुध क्यों नहीं ली. क्या उनको फिर से देख कर हम अपनी आंखों को शीतल कर सकेंगे.
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हनुमान जी ने माता सीता को बंधाया धीरज -
हनुमान जी ने सीता माता के दुख को समझा और धीरज बंधाते हुए कहा कि हे माता, कृपा के सागर, दूसरों पर प्रेम और करुणा बरसाने वाले श्री राम अपने छोटे भाई लक्ष्मण जी के साथ कुशल से हैं. लेकिन आपके दुख से बहुत दुखी हैं. हे माता आप अपना मन छोटा मत कीजिए क्योंकि उनके मन में आपके प्रति दोगुना (ramayana short story) प्रेम है.