Shaligram Bhagwan: शालिग्राम भगवान विष्णु का एक रूप है. शालिग्राम के उपयोग से घर के सभी वास्तु दोष दूर हो जाते हैं. शालिग्राम करीब 33 प्रकार के हैं, जिनमें से 24 प्रकार के शालिग्राम को भगवान विष्णु के 24 अवतारों से संबंधित माना जाता है. माना जाता है कि जिस घर में शालिग्राम होता है, वहां पर कभी भी दुख दर्द वास नहीं करता है. शालिग्राम शिला एक प्राचीन हिन्दू पूजा आइटम है, जो भगवान विष्णु के रूप में पूजा जाता है। यह शिला केदारनाथ के नदी के तट पर पाया जाता है और इसे अनेक हिन्दू परंपराओं में महत्वपूर्ण माना जाता है. यह एक आध्यात्मिक और पौराणिक सिम्बल है, जिसे विशेष रूप से वैष्णव समुदाय में पूजा जाता है।
भगवान शालिग्राम
शालिग्राम कितने प्रकार का होता है: शालिग्राम शिला विभिन्न रूपों में होती है, जो भगवान विष्णु के विभिन्न अवतारों को प्रतिष्ठित करती हैं. ये रूप भागवत पुराण में विस्तार से वर्णित हैं. शास्त्रों के अनुसार 33 तरह के शालीग्राम होते हैं जिसमें से 24 तरह के शालिग्राम को भगवान विष्णु के 24 अवतारों से जोड़ा जाता है.
शालिग्राम की पूजा विधि: शालिग्राम शिला की पूजा का विशेष तरीका होता है. पूजा के लिए विशेष शास्त्रों और पुराणों में विवरण दिया गया है जो श्रद्धालुओं को पूजा कैसे करनी चाहिए, उसे बताते हैं.
शालिग्राम का महत्व: शालिग्राम शिला को सबसे अधिक महत्वपूर्ण और पवित्र माना जाता है. इसे पूजने से साधक भगवान विष्णु के साक्षात दर्शन को प्राप्त करता है, जो उनके आत्मा के साथ मिलता है.
शालिग्राम के लाभ: माना जाता है जिस घर में भी शालिग्राम की पूजा की जाती है उस घर के सारे वास्तुदोष दूर हो जाते हैं. शालिग्राम शिला का संबंध श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक और शारीरिक लाभ के साथ होता है. इसे पूजने से श्रद्धालु को सुख-शांति, संतुलन, और आत्मिक उन्नति की प्राप्ति होती है, मानव जीवन में समृद्धि और शांति का अनुभव होता है.
शालिग्राम कहां मिलता है: शालिग्राम शिला का प्राप्ति स्थान नेपाल के गोसाइंदो गड़ी नदी के क्षेत्र में होता है, जो केदारनाथ के नाम से प्रसिद्ध है.
विचारशीलता: शालिग्राम शिला पर विचारशीलता का ध्यान रखना चाहिए, और उसे सावधानीपूर्वक और पवित्रता के साथ पूजना चाहिए.
धार्मिक दृष्टि से, शालिग्राम शिला का पूजन विशेष तौर से वैष्णव समुदाय में प्रसिद्ध है, लेकिन इसे अन्य हिन्दू समुदायों में भी पूजा जाता है. तुलसी विवाह के दिन कई लोग इसकी घर में स्थापना भी करते हैं.
तुलसी माता और शालिग्राम विवाह का महत्व
तुलसी-शालिग्राम विवाह हिन्दू धर्म में एक परंपरागत पूजा पद्धति है जिसमें तुलसी और शालिग्राम का विवाह किया जाता है. इसे "तुलसी-विवाह" कहा जाता है और इसे कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाता है, जिसे "एकादशी तिथि" भी कहा जाता है. यह पर्व भगवान विष्णु की पूजा के रूप में मनाया जाता है.
तुलसी-विवाह का महत्व है क्योंकि इसे भगवान विष्णु और तुलसी माता के विवाह की स्मृति मानी जाती है. इस पर्व का आयोजन विशेष रूप से वैष्णव समुदाय में किया जाता है और लोग इसे बड़े धूमधाम से मनाते हैं.
विवाह की पूजा में तुलसी की मूर्ति को शालिग्राम से मिलाकर एक सात्विक विवाह के रूप में पूजा जाता है. इस पूजा में धूप, दीप, नैवेद्य, अर्चना, आरती, मिठाई, फल, और फूल आदि का आयोजन किया जाता है.
तुलसी-विवाह का आयोजन लोगों को शुभ और सात्विक विवाह की महत्वपूर्णता का संदेश देता है, जो दो अद्वितीय शक्तियों के संयोजन को दर्शाता है - भगवान विष्णु और तुलसी माता का। इसे धार्मिक उत्सव के रूप में मनाने से भक्ति, श्रद्धा, और समर्पण की भावना से भरा होता है.
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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं। न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है। इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है।)
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Source : News Nation Bureau