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Chhath Puja 2024: सूर्य देव की दूसरी पत्नी कौन हैं, जानें छठ में क्यों होती है उनकी खास पूजा

Chhath Puja 2024: छठ पूजा में षष्ठी के दिन डूबते सूर्य की पूजा करते हैं, मान्यता है कि इस दिन सूर्य देव की दूसरी पत्नी की भी पूजा की जाती है. ये कौन हैं और इनकी पूजा का क्या महत्व है आइए जानते हैं.

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Inna Khosla
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Who is the second wife of Sun God

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Chhath Puja 2024: छठ पूजा के दौरान डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा में सूर्य देव की पत्नी प्रत्यूषा का भी विशेष स्थान है. प्रत्यूषा का नाम 'प्रत्यूष' शब्द से बना है, जिसका अर्थ है संध्या या सूर्यास्त का समय. पौराणिक कथाओं के अनुसार, प्रत्यूषा को सूर्यदेव की दूसरी पत्नी माना गया है. ऐसा कहा जाता है कि वो सांध्यकाल या सूर्यास्त का प्रतिनिधित्व करती हैं. मान्यता है कि जब सूर्य देव अपनी पहली पत्नी संज्ञा से अलग हुए, तो संज्ञा के अलग-अलग रूपों का विस्तार प्रत्यूषा और छाया के रूप में हुआ. छठ पूजा के समय सूर्य के अस्त होते समय प्रत्यूषा की उपासना की जाती है ताकि शाम का समय भी सुख, समृद्धि और शांति का प्रतीक बने. डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देने के दौरान सूर्यदेव की पत्नी प्रत्यूषा की भी पूजा की जाती है. 

प्रत्यूषा का संबंध सांध्यकाल से है और उन्हें शाम के समय की देवी माना जाता है. छठ के दौरान षष्ठी तिथि के दिन डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देते समय प्रत्यूषा की भी पूजा होती है, ऐसा माना जाता है कि इस पूजा से समस्त जीव-जंतुओं को ऊर्जा प्रदान होती है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, प्रत्यूषा सूर्य के अस्तित्व का एक प्रमुख हिस्सा हैं, जो संध्याकाल में अपनी ऊर्जा प्रदान करती हैं. प्रत्यूषा की पूजा के पीछे यह मान्यता है कि सूर्य के अस्त होते समय वह अपने प्रभाव से पूरे संसार में संतुलन और शांति बनाए रखती हैं. इस पूजा के माध्यम से मानव सूर्य देव और प्रत्यूषा देवी के प्रति आभार प्रकट करते हैं, जिन्होंने संपूर्ण जगत को ऊर्जा प्रदान की है.

प्रत्यूषा और छठ पूजा का संबंध

छठ पर्व में डूबते सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा विशेष रूप से प्रत्यूषा की पूजा से जुड़ी है. जब भक्तजन सूर्य के पश्चिमी क्षितिज पर अस्त होते हुए रूप को अर्घ्य अर्पित करते हैं, तब वे प्रत्यूषा की भी आराधना करते हैं. ऐसा माना जाता है कि प्रत्यूषा की उपासना से जीवन में सुख-शांति और समृद्धि का संचार होता है. इस पूजा का उद्देश्य संपूर्ण सृष्टि को उर्जा देने वाले सूर्य देव की महिमा का गुणगान करना है और उनके माध्यम से संध्याकाल की देवी प्रत्यूषा को भी प्रणाम करना है. प्रत्यूषा की उपासना का यह स्वरूप संपूर्ण सृष्टि में ऊर्जा और संतुलन बनाए रखने में सहायता करता है और मानव जीवन को शांति और सुख की ओर अग्रसर करता है.

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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)

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