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Ram Katha: रामायण में कौन थे जटायु,भगवान राम ने क्यों किया था अंतिम संस्कार ?

Ram Katha: जटायु, गिद्धराज, एक शक्तिशाली पक्षी थे जो दंडकारण्य के ऊंचे पहाड़ों पर निवास करते थे. वे भगवान राम के परम भक्त थे.

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Prashant Jha
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jatayu katha ( Photo Credit : News Nation)

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Ram Katha: जटायु, गिद्धराज, एक शक्तिशाली पक्षी थे जो दंडकारण्य के ऊंचे पहाड़ों पर निवास करते थे. वे भगवान राम के परम भक्त थे और उनकी रक्षा करने के लिए सदैव तत्पर रहते थे. जटायु का चरित्र हमें साहस, वीरता, निष्ठा और त्याग जैसे अनेक मूल्यों की शिक्षा देता है. एक दिन, रावण सीता का हरण कर दक्षिण दिशा की ओर उड़ रहा था. जटायु ने रावण को रोकने का प्रयास किया. उन्होंने रावण से कहा, "सीता माता भगवान राम की पत्नी हैं. उन्हें तुरंत छोड़ दो!" रावण क्रोधित हो गया और उसने जटायु पर प्रहार किया. जटायु रावण के प्रहार से घायल हो गए, परन्तु उन्होंने हार नहीं मानी. वे रावण से लगातार युद्ध करते रहे.

जटायु का राम से मिलन

घायल जटायु राम और लक्ष्मण को ढूंढते हुए पंचवटी पहुंचे. जटायु ने राम को रावण द्वारा सीता के हरण की घटना सुनाई और उनसे सीता की खोज करने का आग्रह किया. जटायु ने कहा, "हे राम! रावण सीता माता को दक्षिण दिशा की ओर ले गया है. आप उसे अवश्य ढूंढकर लाएँ."

जटायु का निधन

जटायु का शरीर क्षत-विक्षत था और वे मरणासन्न थे. राम ने जटायु के शरीर को अपनी गोद में लिया और उन्हें अंतिम विदाई दी. राम ने कहा, "हे जटायु! आपने सीता माता की रक्षा के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया. आपका त्याग सदैव स्मरण किया जाएगा."

जटायु का महत्व

जटायु, राम के प्रति अपनी निष्ठा और सीता की रक्षा के लिए किए गए त्याग के लिए सदैव स्मरण किए जाते हैं. जटायु का चरित्र हमें सिखाता है कि हमें सदैव सत्य और धर्म का पालन करना चाहिए, दूसरों की सहायता करने के लिए सदैव तत्पर रहना चाहिए, और कठिन परिस्थितियों में भी साहस और वीरता का प्रदर्शन करना चाहिए. जटायु का चरित्र हमें साहस और वीरता की शिक्षा देता है. रावण से युद्ध करते हुए जटायु ने हार नहीं मानी. उन्होंने अपनी अंतिम सांस तक सीता की रक्षा करने का प्रयास किया. जटायु का चरित्र हमें त्याग की भी शिक्षा देता है. जटायु ने राम के प्रति अपनी निष्ठा और सीता की रक्षा के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया.

निष्कर्ष

जटायु का चरित्र हमें अनेक मूल्यों की शिक्षा देता है. हमें सदैव जटायु के चरित्र से प्रेरणा लेनी चाहिए और अपने जीवन में इन मूल्यों को अपनाना चाहिए.

अतिरिक्त जानकारी

जटायु गरुड़ और विनता के पुत्र थे.
जटायु का नाम संस्कृत में "जटायु" और हिंदी में "गिद्धराज" है.
जटायु का निवास दंडकारण्य में था.
जटायु को भगवान राम ने अंतिम विदाई दी थी.

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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)

Source : News Nation Bureau

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