योग भारत में आदि अनादि काल से चलती आ रही एक आध्यात्मिक व्यायाम प्रणाली है. जिसको हमारे ऋषि मुनियों ने हमें विरासत में दिया है. इस विरासत को ना केवल हमने स्वीकार किया और ना केवल हमने अपने जीवन में उतारा बल्कि विश्वभर में इसका प्रचार प्रसार किया. आज दुनिया का सबसे बड़ा अंतरराष्ट्रीय संगठन संयुक्त राष्ट्र संघ है वो भी योग की महत्वता को समझता है. 21 जून 2014 से यूनाइटेड नेशन के द्वारा अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाने की घोषणा की गयी थी. इस योग में महर्षि पतंजलि का मूल योगदान है. ये वो व्यक्ति थे जिन्होंने योग को वैज्ञानिक दृष्टिकोण दिया. योग सूत्र नाम की एक पुस्तक इन्होंने लिखी. ये एक महान चिकित्सक थे, एक बहुत ही महान आध्यात्मिक गुरु भी थे.
महर्षि पतंजलि प्राचीन भारत के एक मुनि थे जिन्होने संस्कृत के अनेक महत्वपूर्ण ग्रंथों की रचना की. इनमें से योग सूत्र उनकी महानतम रचना है, जो योग दर्शन का मूल ग्रंथ है. भारतीय साहित्य में पतंजलि द्वारा रचित तीन मुख्य ग्रंथ मिलते है योग सूत्र, अष्टध्यायी प्रभाश्य और आयुर्वेद प्रकरण. कुछ विद्वानों का मत है कि ये तीनों ग्रंथ एक ही व्यक्ति ने लिखे. अन्य की धारणा है कि ये विभिन्न व्यक्तियों की कृतियां है. पतंजलि ने पाणिनि के अष्टधायी पर अपनी टीका लिखी, जिसे महाभाष्य का नाम दिया गया. उनका काल कोई 200 ईसा पूर्व माना जाता है. इन्होंने ही पुष्य मित्र शृंग का अश्वमेघ यज्ञ भी संपन्न कराया था. ऐसा कहा जाता है कि इनका जन्म गोंडा उत्तर प्रदेश में हुआ था. बाद में वे काशी में बस गए. ये व्याकरणाचार्य पानी के शिष्य थे. इनके पिता हर्षि अंगिरा थे जो ब्रह्मा जी के पुत्र थे और इसी नाते ये ब्रह्मा जी के पौत्र हुए.
काशीवासी आज भी श्रावण कृष्ण पक्ष की पंचमी को नाग पंचमी को छोटे गुरु का बड़े गुरु का नाग लो भाई नाग लो कहकर नाग के चित्र बांटते है. क्योंकि पतंजलि को शेष नाग का अवतार माना जाता है. पतंजलि महान चिकित्सक थे और उन्हें ही चरक संहिता का प्रणेता माना जाता है. योग सूत्र पतंजलि का महान अवदान है. पतंजलि रसायन विद्या के विशिष्ट आचार्य थे. अभ्रक, विंदास अनेक धातु योग और लौह शास्त्र इनकी देन है. पतंजलि संभवत पुष्य मित्र शृंग के शासन काल में थे.
राजा भोज ने इन्हें तन के साथ मन का भी चिकित्सक कहा है. चित शुद्धि के लिए योग, योग सूत्र, वाणी शुद्धि के लिए व्याकरण, महाभाश्य और शरीर शुद्धी के लिए वैदिक शास्त्र चरक संहिता देने वाले मुनिश्रेष्ठ पतंजलि को आज भी लोग जानते हैं.
कई ईसा पूर्व द्वितीय शताब्दी में महाभास्य के रचयिता पतंजलि काशी मंडल के ही निवासी थे. मोनित्र की परंपरा में वे अंतिम मुनीत है. पाणिनि के पश्चात पतंजलि सर्वश्रेष्ठ स्थान के अधिकारी पुरुष हैं. उन्होंने पाणिनि व्याकरण के महाभाश्य की रचना कर उसे स्थिरता प्रदान की. वे अलौकिक प्रतिभा के धनी थे. व्याकरण के अतिरिक्त अन्य शास्त्रों पर भी इनका समान रूप से अधिकार था. व्याकरण शास्त्र में उनकी बात को अंतिम प्रमाण समझा जाता है.
उन्होंने अपने समय के जन जीवन का पर्याप्त निरीक्षण किया था. अतः महाभास्य व्याकरण का ग्रंथ होने के साथ-साथ तत्कालीन समाज का विश्व कोष भी है. यह तो सभी जानते हैं कि पतंजलि शेष नाग के अवतार थे.
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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)
Source : News Nation Bureau