मंदिर में भगवान की मूर्ति को रखने से पहले प्राण प्रतिष्ठा का आयोजन किया जाता है, जिससे मूर्ति में दिव्य प्राण का संचार होता है और भगवान का आत्मा मूर्ति में स्थित होती है. प्राण प्रतिष्ठा के माध्यम से मूर्ति में दिव्यता की ऊर्जा स्थापित की जाती है. यह ऊर्जा भक्तों को भगवान के साथ संबंधित अनुभव करने में मदद करती है और मंदिर को एक पवित्र स्थान बनाती है. प्राण प्रतिष्ठा के द्वारा मूर्ति में भगवान की प्रत्यक्षता स्थापित की जाती है.
यह भक्तों को मूर्ति के माध्यम से भगवान के साथ सीधे संवाद करने का अनुभव करने में सहायक होता है. प्राण प्रतिष्ठा से मूर्ति में भगवान की साकार पूजना संभव होता है, जिससे भक्त भगवान के साथ संबंधित पूजन रूपी साधना को अभ्यस्त कर सकते हैं. प्राण प्रतिष्ठा के क्रम में पंडित या पूजारी विशेष मंत्रों का उच्चारण करते हैं, जो ध्यान और प्राणायाम की अभ्यासा को बढ़ावा देते हैं. इससे भक्त आत्मा के साथ संबंधित साधनाएं कर सकते हैं.
इसके माध्यम से मंदिर में रखी गई मूर्ति में भगवान का आत्मिक संबंध स्थापित किया जाता है, जिससे भक्त भगवान के साथ एकीभाव की अवस्था में पहुंच सकते हैं और भक्तों को भगवान के साथ आत्मिक जीवन का संबंध स्थापित करने में मदद करता है.
मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा कैसे करते हैं ?
मंदिर में मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा एक धार्मिक प्रक्रिया है जिससे मूर्ति में दिव्य शक्ति को स्थापित किया जाता है और उसे भगवान के रूप में पूजा जा सकता है. यह प्रतिष्ठा प्रक्रिया धार्मिक शास्त्रों और पौराणिक परंपराओं के अनुसार की जाती है.
आवाहन एवं स्वागत: प्राण प्रतिष्ठा की प्रक्रिया शुरू होती है आवाहन एवं स्वागत से। पूजारी या पंडित मूर्ति को ध्यान में लेते हैं और उसे भगवान के स्वरूप में स्वागत करते हैं.
शुद्धिकरण और अभिषेक: मूर्ति को शुद्ध करने के लिए नीर, दूध, घृत, धनिया पानी आदि से अभिषेक किया जाता है। इससे मूर्ति की शुद्धि होती है और उसमें दिव्य शक्ति का संचार होता है.
मन्त्रोच्चारण और प्राण प्रतिष्ठा: अब पूजारी या पंडित मंत्रों का उच्चारण करके मूर्ति में दिव्य प्राण को स्थापित करते हैं। यह मंत्रों के माध्यम से मूर्ति में भगवान का आत्मा स्थित करने की प्रक्रिया होती है.
आराधना और आरती: प्राण प्रतिष्ठा के बाद, मूर्ति को आराधना के लिए सजाया जाता है और आरती दी जाती है। इससे मूर्ति को भगवान के रूप में पूजा जा सकता है.
पुनरावाचन और पुनराराधना: कुछ प्रशिक्षित पूजारी या पंडित पुनरावाचन और पुनराराधना कर सकते हैं ताकि मूर्ति में स्थित भगवान की प्राण शक्ति सुरक्षित रहे.
इस प्रकार, मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा का उद्दीपन एक धार्मिक और आध्यात्मिक प्रक्रिया है जो भक्ति और आत्मा के साथ एकाधिकार स्थापित करने का प्रयास करती है.
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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)
Source : News Nation Bureau