जैन धर्म में, साधु और साध्वी बाहरी साफ-सफाई से ज्यादा आंतरिक शुद्धता पर ध्यान देते हैं. उनका मानना है कि स्नान करना केवल शरीर को साफ करता है, मन को नहीं.
जैन साधु और साध्वी नहाने से बचने के कुछ मुख्य कारण हैं:
1. आत्म-संयम:
जैन धर्म में, साधु और साध्वी को आत्म-संयम का पालन करना होता है. स्नान करना एक इंद्रिय सुख माना जाता है, और साधु और साध्वी इंद्रिय सुखों से दूर रहना चाहते हैं.
2. समय का सदुपयोग:
जैन साधु और साध्वी अपना समय ध्यान, अध्ययन और आध्यात्मिक प्रगति में लगाना चाहते हैं. वे स्नान जैसे कार्यों में अपना समय बर्बाद नहीं करना चाहते हैं.
3. जल का संरक्षण:
जैन धर्म में, जल को एक मूल्यवान संसाधन माना जाता है. साधु और साध्वी जल का संरक्षण करना चाहते हैं, इसलिए वे स्नान नहीं करते हैं.
4. अहिंसा:
जैन धर्म में, अहिंसा एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है. साधु और साध्वी किसी भी जीव को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहते हैं, और वे मानते हैं कि स्नान करते समय सूक्ष्म जीवों को नुकसान हो सकता है.
5. बाहरी साफ-सफाई से ज्यादा आंतरिक शुद्धता:
जैन साधु और साध्वी बाहरी साफ-सफाई से ज्यादा आंतरिक शुद्धता पर ध्यान देते हैं. उनका मानना है कि स्नान करना केवल शरीर को साफ करता है, मन को नहीं.
जैन साधु और साध्वी शरीर को साफ रखने के लिए अन्य तरीकों का उपयोग करते हैं, जैसे कि:
-गीले कपड़े से शरीर को पोंछना
-मिट्टी का लेप लगाना
-धूप में बैठना
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)
Source : News Nation Bureau