Goddess Lakshmi: पापियों पर हमेशा बनी रहती है मां लक्ष्मी की कृपा, कारण जान हैरान रह जाएंगे आप

Goddess Lakshmi: देवी लक्ष्मी की कृपा अगर एक बार किसी पर हो जाए तो उसका जीवन सफल हो जाता है. लेकिन कई बार पापियों पर देवी लक्ष्मी जब धन की वर्षा करती हैं तो लोग इस बात से हैरान हो जाते हैं.

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Inna Khosla
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Why Goddess Lakshmi blessings always remain on sinners

Goddess Lakshmi: अक्सर आपने देखा होगा की जो लोग पाप का सहारा लेकर जीवन यापन करते हैं, झूट बोलकर, धोखा देकर सीधे सज्जन लोगों को मूर्ख बनाकर धन कमाते हैं, वे लोग अधिक धनवान और खुशहाल जीवन जीते हैं. जो लोग लूट, कसोट करके, बेईमानी करके और असली चीज़ की जगह नकली माल भेज कर धन कमाते हैं, वे ईमानदार लोगों की अपेक्षा अधिक सुखी और अधिक फलते फूलते रहते हैं. यही प्रश्न एक बार माता पार्वती ने भगवान शिव से किया था. एक समय की बात है, भगवान शंकर और माता पार्वती कैलाश पर्वत पर विराजमान थे और दोनों में विचार विमर्श और वाद विवाद चल रहा था. अचानक माता पार्वती भगवान शिव से कहने लगी कि हे भगवान आप तो स्वयं तीनों लोकों के स्वामी है, तीनों लोकों के रचियता है, तीनों लोकों के संहारकर्ता हैं क्योंकि ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों एक ही शक्ति है. तीनो एक ही शक्ति के अलग अलग रूप है. 

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माता पार्वती बोली हे देवाधि देव मैं आपसे ये जानना चाहती हूं कि संसार में जो पापी लोग होते है, अत्याचारी लोग होते है, अहंकारी लोग होते हैं, हमेशा सीधे सज्जन भोले भाले लोगों को कष्ट पहुंचते रहते है, कभी धार्मिक अनुष्ठान नहीं करते वो सुखी क्यों रहते हैं, अक्सर ऐसे लोग क्यों धनवान होते है. क्या देवी लक्ष्मी ऐसे ही लोगों से अधिक प्रसन्न रहती हैं, मैं इस बारे में आपसे जानना चाहती हूं. जब भगवान शंकर ने माता पार्वती की बात सुनी तो भगवान शंकर कहने लगे कि देवी पार्वती ये संसार सागर है, इसमें क्या क्या होता है, इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती. 

भगवान शंकर कहते हैं देवी पार्वती, तुम्हारे प्रश्नों का समाधान भी हमारी इस यात्रा में छुपा हुआ है. माता पार्वती और भगवान शिव ने अपना भेष बदला और एक गरीब ब्राह्मण और ब्राह्मणी बनकर दोनों जंगल के मार्ग से पैदल पैदल चल दिए. चलते चलते उन्हें रास्ते में एक कटे हुए वृक्ष की जड़ मिली, जिसकी पृथ्वी से थोड़ी ऊपर छूट निकली हुई थी और आप तो जानते ही हैं जब कोई वृक्ष जड़ के पास से टूट जाता है तो उसकी थोड़ी सी टूट बाहर रह जाती है. उन्हें थोड़ा अंधेरा हो गया था.उसे आप भगवान शिव की माया भी कह सकते हैं. भगवान शिव माता पार्वती के साथ चलते चले जा रहे थे. अंधेरा होने के कारण भगवान शंकर को वो टूट दिखाई नहीं दी और भगवान शंकर का पैर उस टूट से टकरा गया और जैसे ही उनका पैर उस टूट से टकराया तो भगवान भोलेनाथ आगे की तरफ गिर पड़े. भगवान भोलेनाथ जब जमीन पर गिर पड़ी और उनके पैर से रक्त की धार बहने लगी, अब तो माता पार्वती ये देखकर घबरा गई. माता पार्वती ने जल्दी से अपनी साड़ी से पल्लू फाड़ा और उसमें से एक टुकड़ा भगवान शंकर के पैर पर बांधना आरंभ कर दिया. जब कपड़े की पट्टी माता पार्वती ने बांध दी और भगवान महादेव खड़े हुए उस ठूट को देखकर कहने लगे थे टूटे हुए वृक्ष के ठूट तुम बहुत विशाल हो जाओ. तुम्हारी उचाई इस जंगल के सभी वृक्षों से ऊंची हो जाए तो भारी शोभा सभी वृक्षों से अद्भुत हो जाए. वृक्षों में तुम सबसे बड़े वृक्ष कहलाओ. भगवान शिव ने उस टूटे हुए टूट को कोसने की जगह उल्टा उसे आशीर्वाद दे दिया. 

भगवान शिव के इस व्यवहार से माता पार्वती बड़ी नाखुश हुई. माता पार्वती से जब रुका नहीं गया तो माता पार्वती भगवान महादेव से कहने लगी हे भगवान आपकी लीला भी बड़ी विचित्र है. जिस, ठूस से आपको कष्ट पहुंचा जिसने आपको चोट पहुंचाई. आपके पैर से देखो कितना रक्त बह रहा है जिस वृक्ष की जड़ से आप ठोकर खाकर गिर पड़े आपने उसी वृक्ष को इतना विशाल होने का वरदान दे दिया भगवान. आपकी माया मेरे को समझ में नहीं आई इसका क्या कारण है? 

देवी पार्वती को अत्यंत विथित देखकर भगवान शिव कहने लगे कि हे पार्वती समय आने पर आपको इसका भी जवाब स्वत: ही मिल जाएगा. अब आप कैलाश पर्वत पर चलिए. इस प्रकार माता पार्वती और भगवान शिव जगत का भ्रमण करने के बाद कैलाश पर्वत पर लौट आते हैं और फिर से अपनी धर्म चर्चाओं में व्यस्त हो जाते हैं. परंतु माता पार्वती के मन में बार बार उस प्रश्न का जवाब ना मिलने के कारण व्याकुलता बनी हुई थी कि भगवान ने ऐसा क्यों किया. उनके दिमाग में बार-बार वही बात चक्कर काट रही थी. कहने लगी हे भगवान मुझे ये बताएं कि संसार के पापी लोग, पापी मनुष्य जो अहकारी हैं, जो दुष्ट प्रवृति के होते हैं वे लोग क्यों सूखी जीवन व्यतीत करते हैं, दुष्ट लोग क्यों ज्यादा समृद्धशाली होते हैं तो भगवान शंकर ने फिर कहा पार्वती से कि पार्वती जी, इस प्रश्न का जवाब आपको समय के अनुसार मिल जाएगा, आपको समय तक इंतजार कीजिए. 

उसी काल में क्या होता है कि जो टूट था, भगवान शंकर ने उसे विशाल होने का वरदान दे दिया था, अब तो वो टूट बहुत विशाल वृक्ष के रूप में खड़ा हो गया. वो ठूट से एक अंकुर फूटा और धीरे धीरे एक विशाल वृक्ष का रूप लेता चला गया. वह वृक्ष अब बहुत बड़ा हो गया था और जीतने भी उस जंगल में वृक्ष थे. उन सभी वृक्षों से उसकी उचाई बहुत अधिक हो गई थी. धीरे धीरे वह वृक्ष लंबी, लंबी शाखाओं वाला और घनी छाया वाला बनता चला गया. दूर दूर तक उसकी छाया फैली रहती थी. इसी बात का उस वृक्ष को मद होने लगा. वो अपने से छोटे सभी वृक्षों को देखकर हंसता था और उनकी खिल्लियां उड़ाता था. घमंड से हर समय सर उठाए रहता था. वो ना तो किसी से मिलकर रहता था और ना ही किसी को अपने आगे कुछ समझता था. 

आपको एक बात बतानी जरूरी है कि जो व्यक्ति जैसा होता है वो अपने स्वभाव को कभी नहीं छोड़ता. दुष्ट व्यक्ति कभी भी अपनी दुष्टता को नहीं छोड़ता. कई बार कुछ लोग धन, पद प्रतिष्ठा पाकर गर्व से भर जाते हैं और ये भी सच है कि फिर भी उतने ही जल्दी नष्ट भी हो जाते हैं. अचानक से अगर किसी को शक्ति मिल जाए, धन मिल जाए तो स्वाभाविक है, वो आपे से बाहर जरूर हो जाएगा. कुछ बिरले ही होते हैं जिन्हें धन पद से अभिमान नहीं होता है. 

उस वृक्ष के विशाल होने के बाद अनेक प्रकार के पक्षी उस वृक्ष की लंबी लंबी शाखाओं पर बसेरा करना चाहती थी लेकिन वह वृक्ष इतना घमंडी हो गया था कि जो पक्षी उसकी शाखाओं पर बरसेरा करने के लिए आती थी, उन्हें वो अपनी शाखाओं से डरा कर भगाने की कोशिश करता था. कहता था कि ये पक्षी तो उसकी सारी सुंदरता नष्ट कर देंगे. मेरे ऊपर घोसला बनाएंगे, दिन रात मेरे ऊपर बीट करेंगे, इनके रहने से मैं दूषित हो जाऊंगा. 

उसके मना करने के बाद भी पक्षी उसके ऊपर अपना घोसला बनाकर रहने लगते हैं. तो वो अपनी उसी शाखा को नीचे गिरा देता था, अपने पत्तों को पतझड़ कर देता था. कई बार तो उसने पक्षियों के अंडे और बच्चों को नीचे गिरा दिया. इस बात से पक्षी बहुत दुखी हुए और मन ही मन उस वृक्ष को कोसते थे. उस दुष्ट वृक्ष की ये क्रूरता भगवान शंकर भी देख रहे थे. धीरे धीरे जब बसंत ऋतु का आगमन होता है, वृक्ष पूरी तरह से पतझड़ होकर फिर से नई डालियां नए पत्ते धारण करता है तो आप तो जानते ही हैं कि वसंत ऋतु में वृक्ष कितना सुंदर हो जाता हैं. अपने आप को देख देख कर उसका गर्व सातवें आसमान पर पहुंच गया था क्योंकि पूरे वन में उस वृक्ष से सुंदर कोई वृक्ष नहीं लग रहा था. क्योंकि भगवान शंकर ने उसे वरदान जो दिया था उसको विशाल होने का वरदान. स्वयं महादेव ने ही तो दिया था. 

एक दिन की बात है, बहुत तेजी से आंधी आती है, एक भयंकर तूफान आता है. तूफान का वेग इतना प्रबल था कि जंगल के सारे वृक्ष भयभीत होने लगे, लेकिन वो वृक्ष अपने घमंड में चूर खड़ा था, मुस्कुरा रहा था. उससे छोटी जीतने भी वृक्ष थे. वे तो बेचारे मिलजुल कर इकट्ठे रहते थे और वो उस जंगल में अकेला खड़ा था. उसे अपने विशाल होने पर बड़ा घमंड था. उसका बड़ा आकार होना ही उसके लिए मुसीबत बन गया था. उस तेज तूफान से वो स्वयं को बचाने में असमर्थ था. तेज आंधी ने उस वृक्ष को जड़ सहित पृथ्वी से उकार कर फेंक दिया और कम से कम 100 क्विंटल मिट्टी उसकी जड़ों से लिपट कर ऊपर आ गई. पूरा वृक्ष जमीन से करीब पांच फिट गद्दा खोदता हुआ पृथ्वी पर गिर पड़ा. उसका बड़ा होना ही उसके विनाश का कारण बन गया. वृक्ष जमीन से उखड़ कर जमीन पर ही औंधे मुंह गिर पड़ा. 

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उसी मार्ग से भगवान शंकर और माता पार्वती फिर से संसार भ्रमण करने के लिए चल देते हैं. माता पार्वती को तो भगवान शंकर से अपने प्रश्न का अर्थ जानना था इसलिए माता पार्वती ने भगवान शंकर से कहा कि भगवान मेरी समझ में नहीं आता कि आप मेरे प्रश्न का जवाब कब देंगे तो भगवान शंकर कहने लगे कि पार्वती जी चलो आज हम मृत्यु लोक का भ्रमण करने के लिए चलते हैं. इतना कहकर बातचीत करते हुए शिव और पार्वती जी साथ साथ भगवान शिव जंगल के रास्ते से चल पड़ते हैं. जिस रास्ते में वो विशाल वृक्ष जड़ सहित उखड़ कर नीचे पड़ा था. भगवान शंकर और माता पार्वती उसी स्थान पर आ जाते हैं जब उस वृक्ष को गिरा हुआ माता पार्वती ने देखा तो भगवान शंकर से कहने लगे, कि हे देव आपकी लीला भी कितनी विचित्र है, देखो ये कितना सुंदर वृक्ष है, कितना विशाल वृक्ष है इस वन में इसके मुकाबले का एक भी वृक्ष नहीं है. ये वृक्ष सबसे बड़ा है, सबसे सुन्दर है. इसकी छाया कितनी सुंदर होगी क्योंकि ये सबसे सघन भी हैं. तूफान ने कितना बुरा किया जो इस वृक्ष को जड़ सहित उखाड़ कर पटक दिया. 

हे भगवान ये देखो बेचारा जड़ से ही नष्ट हो गया हैं. इसका क्या कारण है हे प्रभु इस सुंदर वृक्ष को आपने इतनी अल्प आयु क्यों दी इसका क्यों नाश कर दिया तो भगवान शंकर माता पार्वती से कहने लगे कि हे पार्वती जी तुम भी बड़ी भोली हो ज़रा गौर से देखो ये वही टूट है जो आज से कुछ साल पहले हम भ्रमण करने के लिए आए थे और आपको ज्ञात होगा की इस टूट से मेरे पैर में ठोकर लगी थी और मेरे पैर से बहुत रक्त बह गया था. मैं पृथ्वी पर गिर पड़ा था. ये वही वृक्ष है, ये वही टूट है परंतु है पार्वती जी मैंने उस समय इसे क्या वरदान दिया था? क्या आपको ये ज्ञात है, माता पार्वती बोली, हां प्रभु मुझे अच्छी तरह याद है. आपने इस वृक्ष को विशाल होने का वरदान दिया था. महादेव कहते हैं पार्वती जी यदि उस समय मैं उस ठूट को उखाड़ता तो मुझे ना जाने कितनी मेहनत करनी पड़ती और ना मैं उसको जड़ से उखाड़ सकता था.उसे जड़ से उखाड़ने के लिए मुझे अथक परिश्रम करना पड़ता, तब कहीं उस ठूट को उखाड़ पाता. वह टूट, अत्याचारी और अहंकारी था इसलिए उसका नाश करना मेरे लिए आवश्यक हो गया था. ये पार्वती जी मैंने इसीलिए उस छूट को विशाल होने का वरदान दिया था. इसीलिए मैंने उससे कहा था कि तुम इस जंगल में सबसे बड़े बन जाओ. हे देवी देखिए ये वृक्ष विशाल हो गया, ये वही टूट है और इन सभी बच्चों से बड़ा भी हो गया और जब ये बड़ा हो जाता है तो इसने फिर भी अपना अहंकार नहीं छोड़ा. इसकी अकड़ ने ही इसे इस स्थिति में पहुंचा दिया है. 

ये जंगल के सभी वृक्षों से अपने आप को बड़ा समझने लगा था. पक्षियों को अपने ऊपर बसेरा नहीं करने देता था. ये यात्रियों के लिए भी छाया करने से पहले पत्तों को झाड़ देता था इसलिए ये वृक्ष बड़ा अहंकारी था और बड़ा पापी था. इसने अपने जीवन में कोई भलाई का काम नहीं किया और याद रखना जो लोग सिर्फ नाम के बड़े हो जाते हैं, उनसे किसी को कोई सुख नहीं मिलता. उनका जीवन लोहार की उस थोकनी की तरह हो जाता है जो सास तो लेती है पर उसमें जीवन का कोई अंश नहीं होता. जो लोग उस वृक्ष के स्वभाव के होते हैं जो सिर्फ अपना पेट बड़ा करने में लगे रहते हैं, जो औरों को नीचा दिखाने का काम करते हैं, घमंड के कारण किसी को कुछ नहीं समझते हैं, व अपने आप को ही देखते हैं, अपने ही शरीर से प्रेम करते हैं, जिनके अंदर अकड़ होती है ऐसे लोगों को उनका ही अहंकार मार देता है. 

कोई इस तरह के स्वभाव वाला व्यक्ति बहुत बड़ा धनवान है तो अधिक धन ही उसे मृत्यु के मुख में पहुंचा देता है. लक्ष्मी भी ऐसे लोगों के पास अधिकतर इसीलिए रहती है ताकि उनका सर्वनाश कर सके. आपने देखा होगा कि अधिक धन होने से मनुष्य में कई दोष आ जाते हैं. चींटा जब मरने वाला होता है तो उसके शरीर में पंख हो जाते हैं. जमीन पर रेंगने वाला चींटा भी आकाश में उड़ने लगता है. वो उड़ान उसको विनाश की ओर ले जाती है. कहते हैं बड़ा होना तो सरल है पर बड़ा बनकर जीना बहुत कठिन है. 

भगवान शिव बोले हे देवी ये वृक्ष जब छूट के रूप में था, तब भी इसमें अकड़ थी, मुझे देखकर भी ये झुका नहीं जो छोटी सोच वाली लोग होते हैं, उनमें बड़ा होने पर इसी तरह अकड़ आ जाती हैं. वे अपने से बड़े लोगों का सम्मान करना भूल जाते हैं. उनके अंदर नम्रता का भाव नहीं रहता और याद रखना जो झुकता नहीं वो किसी को झुका नहीं सकता. अकड़ के साथ जो जीता हैं वो थोड़े समय तक ही जी पाता हैं.

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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)

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