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Jain Dharma: जैन धर्म के लोग गरीब क्यों नहीं होते, सामने आया इनके अमीर होने का सीक्रेट 

Jain Religion: भारत में जैन धर्म के बहुत कम लोग हैं. इनकी आबादी इतनी कम होने के बावजूद भी ये भारत की अर्थव्यवस्था में सबसे बड़ा योगदान देते हैं. ऐसा कैसे करते हैं और जैन समुदाय के लोग गरीब क्यों नहीं होते आइए जानते हैं.

Updated on: 01 Jul 2024, 12:13 PM

नई दिल्ली:

Jain Dharma: जैन धर्म जितना पुराना उस हिसाब से इसकी जनसंख्या नहीं हैं. भारत में जैन समुदाय के लोगों की कुल आबादी लगभग 0.37% हैं यानि 50,00,000 के आसपास हैं जो की अन्य समुदाय के मुकाबले बहुत ही कम हैं.  भारत के सबसे अमीर जैन बिजनेसमैन लोगों की बात करें तो गौतम अडानी, दिलीप सांघवी, अश्विन सूर्यकांत दानी एंड फैमिली और मंगल प्रताप लोढ़ा जैसे और भी कई नाम हैं जो इस लिस्ट में शुमार हैं. जैन धर्म के लोग भारत में शायद बहुत कम हैं, लेकिन जीतने भी हैं लगभग सभी अपने आप में सक्षम होंगे, क्योंकि आप अगर ध्यान दें तो किसी भी जैन को आपने कभी गरीब नहीं देखा. जैन समुदाय के लोग देश की अर्थव्यवस्था में बड़े भागीदार हैं क्योंकि ये लोग अधिकतर उद्योग या व्यापार में लिप्त हैं जिसके कारण सरकार को अच्छा खासा टैक्स मिलता है. इस समुदाय की आबादी भारत में महज 0.37% है, लेकिन यह समुदाय कुल सरकारी टैक्स का 25% भरने वाला हिस्सेदार है.

जैन धर्म क्या है ? (what is jainism religion)

जैन धर्म, जिसे श्रमण धर्म भी कहा जाता है, भारत की प्राचीनतम धर्म परंपराओं में से एक है. यह 24 तीर्थंकरों की शिक्षाओं पर आधारित है, जिनमें भगवान महावीर 24वें और अंतिम तीर्थंकर थे. जैन धर्म का सर्वोपरि सिद्धांत अहिंसा (किसी भी जीव को नुकसान न पहुंचाना) है. जैन धर्म के कुछ प्रमुख संप्रदाय श्वेतांबर, दीगंबर और तेरापंथी हैं. श्वेतांबर जैन धर्म का सबसे बड़ा संप्रदाय है. दीगंबर जैन धर्म का दूसरा सबसे बड़ा संप्रदाय है और तेरापंथी जैन धर्म का एक छोटा लेकिन महत्वपूर्ण संप्रदाय है. इस धर्म के अनुयायियों ने शिक्षा, चिकित्सा, सामाजिक सेवा और पर्यावरण संरक्षण में महत्वपूर्ण योगदान दिया है.

जैन धर्म के लोग गरीब क्यों नहीं होते ? 

इस समुदाय के लोग एक बड़े करदाता तो हैं ही साथ ही साथ सामाजिक कार्यों और दान देने में भी अन्य समुदायों को मुकाबले काफी आगे रहते हैं. यह लोग अपनी कमाई में से एक निर्धारित हिस्सा दान कर देते हैं. जैन समुदाय के लोग अपने समाज में, मंदिर में और अन्य जगहों पर भी पैसे खर्च करने में नहीं चूकते. लेकिन ये लोग बिना सोचे समझे पैसे को यूं नहीं लौटाते बल्कि बहुत सोच समझकर ही पैसे को सही समय पर सही जगह पर खर्चा करते हैं. 

दरअसल, जैन समुदाय के लोग अपने समुदाय को बहुत सपोर्ट करते हैं. वे एक दूसरे की टांग नहीं खींचते बल्कि मदद करते हैं. इस समुदाय के लोग अधिकतर व्यापारी गतिविधियों में लिप्त होते हैं, नौकरी पर नहीं, धंधे करने पर ध्यान लगाते हैं. आपने आम तौर पर देखा होगा कि जैन लोग ज्यादातर धंधा करना पसंद करते हैं, कोई राशन की दुकान डालता है तो कोई खाने पीने की. भले ही धंधा छोटा क्यों ना हो पर ये जॉब करने से अच्छा धंधा करना पसंद करता. इसके अलावा, ये अपनी मेहनत से उस धंधे को बढ़ाते हैं. इनकी सबसे खास बात यह है कि ये लोग बेकार के कामों और बातों में अपना समय नष्ट नहीं करते. अपने काम पर ज्यादा फोकस करते हैं. 

जैन समुदाय के ज्यादातर लोग शाकाहारी होते हैं. शांति में जीवन जीते हैं जिसके कारण इनकी आयु अन्यों के मुकाबले ज्यादा होती है. इस समुदाय के लोगों के पास कितना ही पैसा क्यों ना हो, यह दिखावा नहीं करते बल्कि उन पैसों से और अमीर बनने की कोशिश करते हैं. ये लोग पैसों को इन्वेस्ट करना जानते हैं. साथ ही धंधे से दूसरा धंधा बनाना भी जानते हैं. पैसा के हिसाब से जनसमुदाय के लोग बड़े माहेयर होते हैं. इनके मैथेमेटिक्स बड़ी तेज़ और सटीक होती है. ये लोग अपने काम से बहुत प्यार करते हैं. काम इनका जीवन है. 

इनका मानना होता है कि काम से इंसान की औकात बनती है. ये लोग बड़े ही ठंडे दीमाग के होते हैं, लड़ाई झगड़े से दूर रहते हैं, निरंतर आगे बढ़ते रहते हैं और उन्नति पर काम करते हैं. अपने धर्म के प्रति, समुदाय के प्रति, व्यापार के प्रति और समाज के प्रति ईमानदार होते हैं, कर्मवीर और दानवीर प्रवृति के होते हैं. ये लोग पैसे कमाने में और पैसे बचाने में माहिर होते हैं. लोगों से नरमी और इज्जत से पेश आते हैं और गुस्से को पी जाते हैं.

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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)