Premanand Ji Maharaj: प्रेमानंद जी महाराज के प्रवचनों को विश्वभर में सुना जाता है. कई लोगों का कहना है कि उनकी बातें सुनकर उन्हे जीवन सही से जीने का मार्ग मिलता है. लेकिन क्या आप भी यही सोचते हैं कि जीवन क्या है. आप भी टाटा, बिरला जैसे परिवार में क्यों नहीं जन्में, और इसी परिवार में आपका जन्म क्यों हुआ है. आपके इसी प्रश्न का प्रेमानंद जी महाराज ने एक प्रवचन में जवाब दिया और बताया कि आप जिस परिवार में जन्म लेते हैं वहां के सदस्यों के साथ आपका कोई न कोई कर्ज का हिसाब होता है. यह सब पिछले जन्मों के कर्मों का नतीजा होता है जिसमें आपको कुछ देना या लेना होता है. जब तक वह हिसाब पूरा नहीं होता तब तक आप उस रिश्ते या परिवार से मुक्त नहीं हो सकते.
कर्मों का बंधन बहुत सूक्ष्म होता है. जब आप किसी के साथ अच्छा या बुरा व्यवहार करते हैं तो उसका परिणाम जीवन के किसी न किसी पड़ाव में सामने आता है. आपको किसी अनजान व्यक्ति से अचानक अच्छा या बुरा व्यवहार मिल सकता है. यह सब पिछले जन्मों के कर्मों का हिसाब होता है जिसे आप याद नहीं रखते लेकिन वह कर्म आपको चुकाने पड़ते हैं.
प्रेमानंद जी महाराज ने सुनाई एक महात्मा के कर्म की कहानी
महात्माओं की कहानियों में भी हमें यह संदेश मिलता है कि कर्मों का फल अवश्य भुगतना पड़ता है. एक बार की बात है एक संत थे जिनके मन में था कि वो भीक्षा से इतना पैसा जोड़ें कि प्रयागराज के सभी संतों को भोजन करवाएं. धीरे-धीरे उन्होने पूंजी जोड़ ली, फिर वो जब प्रयागराज जा रहे थे तो रास्ते में एक परिवार के घर रुके. उन्होने संत का बहुत आदर सतकार किया, लेकिन जब संत सो गए तो उनकी जमा पूंजी को उन्होने चुरा लिया और इस तरह ये काम चतुराई से किया कि संत को पता नहीं चला और वो अगले दिन चुपचाप वहां से आशीर्वाद देकर प्रयागराज की ओर बढ़ गए.
उन्होने वहां सभी संतों और महात्माओं को अगले दिन भोजन का निमंत्रण दिया. सारे इंतजाम भी हुए लेकिन जब आयोजकों ने संत से पूछा कि आगे कार्य करने से पहले उन्हे धनराशि चाहिए तो संत ने अपने पैसे देखे. जो सोने की अशर्फियां उन्होने जोड़ी थी वो चोरी हो गई. अब वो किसे ये बता समझाते उनके कहने पर लोगों का खूब धन पहले ही खर्च हो गया था उन्होने उसी नदी में कूदकर अपनी जान दे दी.
संत ने अगला जन्म उसी परिवार में लिया जिन्होने उसका धन चुराया था. फिर बेटा बनकर उन्हें खूब दुखी किया रातोंरात उन्हे कंगाल बना दिया और एक दिन उन्हे लेकर प्रयागराज की उसी जगह पर आया जहां उसने प्राण त्यागे थे तब उनसे कहा कि उन्होने उसे पिछले जन्म में लूटा था इसलिए वो इस जन्म में उन्हे लूटने आया है. उन्हें भी अंततः उनके कर्मों का परिणाम भुगतना पड़ा.
कर्मों का हिसाब-किताब जीवन में हर कदम पर सामने आता है. अगर आपने किसी से कुछ लिया है तो आपको उसे चुकाना होगा और अगर किसी ने आपसे कुछ लिया है तो वह भी आपको लौटाना होगा. जब तक यह लेने-देने का हिसाब पूरा नहीं होता तब तक जन्म-मरण का चक्र चलता रहेगा. इसलिए यह आवश्यक है कि हम अपने अहंकार को समाप्त करें और भगवान की शरण में जाएं ताकि सभी कर्जों से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त कर सकें. भगवान श्रीकृष्ण ने भी कहा है कि जो मेरी शरण में आता है और मेरी भक्ति करता है वह सभी प्रकार के कर्जों से मुक्त हो जाता है, चाहे वह माता-पिता का कर्ज हो, देवताओं का कर्ज हो, या ऋषियों का कर्ज. यही एकमात्र उपाय है जिससे जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति पाई जा सकती है.
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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)