Janmashtami Special: क्यों खास है राजस्थान का श्रीनाथजी मंदिर और कैसे हुई इसकी स्थापना, जानें

इस पवित्र पावन स्थान के बारे में कहा जाता है, कि एक बार भगवान श्रीनाथजी ने स्वयं अपने भक्तों को प्रेरणा दी थी कि, बस! यहीं वह स्थान है जहां मैं बसना चाहता हूं.

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Aditi Sharma
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Janmashtami Special: क्यों खास है राजस्थान का श्रीनाथजी मंदिर और कैसे हुई इसकी स्थापना, जानें

श्रीनाथजी मंदिर

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जब भी श्रीकृ्ष्ण के प्रमुख मंदिरों की बात होती है तो उसमें राजस्थान के नाथद्ववार में स्थित श्रीनाथजी मंदिर का नाम जरूर आता है. श्रीनाथजी मंदिर एक प्राचीन धार्मिक स्थल है जो 12वीं शताब्दी में बनाया गया था. यह मंदिर हिन्दुओं के भगवान कृष्ण को समर्पित है. रोचक बात यह है कि आंध्र प्रदेश के तिरुपति मंदिर के बाद श्रीनाथजी मंदिर को दूसरा सबसे धनी भारतीय मंदिर माना जाता है. पर्यटकों में अगर कोई श्रद्धालु है तो वह इस मंदिर को देखने ज़रूर आता है. श्रीनाथ जी की मूर्ति पहले मथुरा के निकट गोकुल में स्थित थी।परंतु जब औरंगजेब ने इसे तोड़ना चाहा, तो वल्लभ गोस्वामी जी ने इसे राजपूताना (राजस्थान) ले गए. जिस स्थान पर मूर्ति की पुनः स्थापना हुई, उस स्थान को नाथद्वारा कहा जाने लगा.

नाथद्वारा शब्द दो शब्दों को मिलाकर बनता है नाथ+द्वार, जिसमे नाथ का अर्थ भगवान से है, और द्वार का अर्थ चौखट या आम भाषा मे कहा जाए तो गेट से है. तो इस प्रकार नाथद्वारा का अर्थ 'भगवान का द्वार हुआ. इस पवित्र पावन स्थान के बारे में कहा जाता है, कि एक बार भगवान श्रीनाथजी ने स्वयं अपने भक्तों को प्रेरणा दी थी कि, बस! यहीं वह स्थान है जहां मैं बसना चाहता हूं. फिर क्या था डेरे और तंबू गाड़ दिए गए.

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राजमाता की प्रेरणा से उदयपुर के महाराणा राजसिंह ने एक लाख सैनिक श्रीनाथजी की सेवा मैं सुरक्षा के लिए तैनात कर दिये. महाराणा का आश्रय पाकर नाथ नगरी भी बस गई इसी से इसका नाम नाथद्वारा पड़ गया.

नाथद्वारा दर्शन मे यहाँ का मुख्य मंदिर श्रीनाथजी मंदिर है. यह वल्लभ संप्रदाय का प्रधान पीठ है. भारत के प्रमुख वैष्णव पीठों मैं इसकी गणना की जाती है. यहां के आचार्य श्री वल्लभाचार्य जी के वंशजों मे तिलकायित माने जाते हैं. यह मूर्ति गोवर्धन पर्वत पर व्रज में थी. श्रीनाथजी का मंदिर बहुत बड़ा है, परंतु मंदिर में किसी विशिष्ट स्थापत्य कला शैली के दर्शन नहीं होते. वल्लभ संप्रदाय के लोग अपने मंदिर को नांदरायजी का घर मानते हैं. मंदिर पर कोई शिखर नही हैं. मंदिर बहुत ही साधारण तरीके से बना हुआ है. जहां श्रीनाथजी की मूर्ति सथापित है, वहां की छत भी साधारण खपरैलो से बनी हुई हैं.

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नाथद्वारा दर्शन करने का स्थान अत्यधिक संकरा है. इसलिए दर्शनार्थियों को बारी बारी से दर्शन कराया जाता है. श्रीनाथजी के यूं तो आठ दर्शन होते है. परंतु कभी कभी विषेश अवसरों और उत्सवो पर एक आध बढ़ भी जाते हैं, जो अपने निरधारित नाथद्वारा दर्शन टाइम टेबल पर आयोजित किये जाते है। इन आठ दर्शनों के नाम इस प्रकार है।

  •  मंगला
  •  श्रृंगार
  •  ग्वाल
  •  राजभोग
  •  उत्थान
  •  भोग
  •  संध्या आरती
  •  शयन

श्रीनाथ नाथद्वारा मंदिर की महिमा लगातार बढ़ती जा रही है. क्या खास क्या आम यहां सभी श्रीनाथ जी के दर्शन के लिए आते हैं. जन्माष्टमी पर 21 तोपों की सलामी दी जाती जिसको देखने भक्तों का तांता लगता है.

Source : लालसिंह फौजदार

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