70 और 80 के दशक में आपने कई हिंदी फिल्मों में लोगों को कुम्भ के मेले में बिछड़ते देखा होगा, जो तमाम जद्दोजहद के बाद फ़िल्म के आखिर में मिलते हैं. लेकिन शुक्र है कि अब कुम्भ के मेले में खोने वालों को अपने परिवार से मिलन के लिये जीवन भर इंतज़ार नहीं करना पड़ता है. कुम्भ मेला प्रसाशन द्वारा संगम तट पर कम्प्यूटरीकृत खोया पाया केंद्र की स्थापना की गई है. जिसके 15 सेंटर्स पर लगातार 24 घण्टे खोए हुए लोगों के बारे में सूचना प्रसारित की जा रही है.
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प्रसारित सूचना को सुनकर लोग खोया पाया केंद्र पर आ रहे हैं और अपने बिछड़े हुए लोगों से दोबारा मिल पा रहे हैं. जयकाला देवी बिहार के सीतामढ़ी जिले से कुम्भ में स्नान करने आई थीं लेकिन संगम तट पर उमड़े जनसैलाब में 6 साल की पोती लक्ष्मी कहीं खो गई. लेकिन खोया पाया केंद्र की मदद से जयकाला देवी को लक्ष्मी से 30 मिनट में ही मिला दिया गया. जयकाला देवी कहती हैं कि अगर लक्ष्मी नहीं मिलती तो वो उसके माता पिता को क्या जवाब देती. वहीं अब तक सामने आया है कि बच्चों के साथ बड़े बुजुर्ग ज्यादा बड़ी तादाद में खो रहे हैं.
खोया पाया केंद्र में काम कर रहे अजित सिंह कहते हैं कि खोया पाया केंद्र में रोजाना 500 से 600 लोग आ रहे हैं, कोई खो गया है तो कोई अपनों को ढूंढ रहा है. अजित ने कहा खोया पाया केंद्र खोए हुए लोगों को अपनों से मिलाने में बहुत मददगार साबित हुआ है.
खोने से बचने के लिए लोगों ने निकाला तोड़
कहते हैं कि आवश्यकता ही अविष्कार की जननी है करोड़ों के कुम्भ में बिछड़ने से बचने का कुछ लोगों ने तोड़ भी निकाल लिया है. पुरुलिया पश्चिम बंगाल से आये एक ग्रुप ने अपने सभी लोगों के चारों ओर कपड़े की रस्सी का घेरा बना दिया है. जिससे कि कोई घेरे से बाहर ना निकल सके और ना ही खो सके.
Source : News Nation Bureau