प्रयागराज कुंभ में नागा साधु के अलावा ढेरों अखाड़े के साधु सन्यासी सुर्खियों में बने हुए हैं. लेकिन लोगों के आकर्षण का केंद्र कुंभ नगरी में आए बाल साधु भी बने हुए हैं जो इस बाल्यावस्था में साधु सन्यासियों जैसा कठिन जीवन चर्या का पालन करते हुए धर्म की दीक्षा ले रहे हैं. कुम्भ में 3 दिवसीय परम् धर्म संसद में अपने गुरुओं और दूसरे धर्माचार्यों के साथ श्री विद्या मठ के ये बाल साधु भी पहुंचे हुए हैं. 1 छात्र से शुरू हुए काशी के श्री विद्या मठ में अभी 550 से ज्यादा बाल साधु धर्म की दीक्षा ले रहे हैं. हालांकि विद्या मठ में प्रवेश की उम्र 8 से 12 वर्ष है लेकिन 5 वर्ष के दुष्यंत अभी गुरुकुल में सभी गुरुओं के सबसे प्रिय शिष्य हैं. झारखंड, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश और देश के लगभग सभी राज्यों से आए नन्हें बालक गुरुकुल में धर्म की शिक्षा ले रहे हैं.
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इन बाल साधुओं की दिनचर्या सुबह 4 बजे से शुरू होती है. स्नान आदि के बाद ध्यान और फिर 4 घंटे सुबह पाठशाला और फिर शाम को एक बार फिर 4 घंटे अध्ययन में गुजरता है. फोकस वेदों के पाठ के साथ धर्म की दीक्षा पर होता है, लेकिन साथ मे सामाजिक शिक्षा भी दी जाती है. 25 साल के मयंक अभी इन बाल साधुओं के केयर टेकर हैं.
मयंक खुद 8 साल की उम्र में विद्यापीठ गुरुकुल से जुड़े थे और 17 साल बाद भी पूरी तरह से गुरुकुल और गुरु को ही समर्पित हैं. मयंक कहते हैं कि बच्चों को भले ही धर्म की दीक्षा दी जा रही हो, लेकिन बड़े होकर इन्हें साधु सन्यासी, धर्म प्रचारक, प्रोफेसर, कर्म कांडी विद्वान बनना है या संसारिक जीवन मे लौटना है, इसका फैसला इन्हें ही लेना है. हालांकि ज्यादातर बाल साधु गुरु की सेवा में ही अपना जीवन बिताना चाहते हैं. घर लौटने की बात पर कई बालक तो कहते हैं कि उन्हें घर की याद ही नहीं आती है. हालांकि होली, दीपावली में माता पिता के पास छुट्टियों में जाने का विकल्प खुला रहता है.
Source : News Nation Bureau