कुंभ भारतीय संस्कृति का महापर्व कहा गया है. इस पर्व पर स्नान, दान, ज्ञान मंथन के साथ ही अमृत प्राप्ति की बात भी कही जाती है. कुंभ का बौद्धिक, पौराणिक, ज्योतिषीय के साथ-साथ वैज्ञानिक आधार भी है. वेद भारतीय संस्कृति के आदि ग्रंथ हैं. कुंभ का वर्णन वेदों में भी मिलता है. कुंभ का महत्व न केवल भारत में वरन् विश्व के अनेक देशों में है. इस तरह कुंभ को वैश्विक संस्कृति का महापर्व कहा जाय, तो गलत न होगा. चूंकि इस दौरान दुनियां के अनेक देशों से लोग आते हैं और हमारी संस्कृति में रचने-बसने की कोशिश करते हैं, इसलिए कुंभ का महत्व और बढ़ जाता है. कुंभ पर्व प्रत्येक 12 वर्ष पर आता है. प्रत्येक 12 वर्ष पर आने वाले कुंभ पर्व को अब शासन स्तर से महाकुंभ और इसके बीच 6 वर्ष पर आने वाले पर्व को कुंभ की संज्ञा दी गयी है. पुराणों में कुंभ की अनेक कथाएं मिलती हैं. भारती जनमानस में तीन कथाओं का विशेष महत्व है. लेकिन इस मेले का सबसे रहस्यमयी रंग होते हैं नागा साधु, जिनका संबंध शैव परंपरा की स्थापना से है.
भारत में नागा साधुओं का इतिहास बहुत पुराना है लेकिन आज भी ये लोग एक सामान्य व्यक्ति के लिए जिज्ञासा का केंद्र हैं. इसका कारण यह है कि इनका जीवन सामान्य जनमानस के लिए एक रहस्य ही है. ये कैसे रहते हैं, क्या खाते हैं, इनके लिए जीवन का क्या अर्थ है, ये सभी प्रश्न आमतौर पर हमारे मस्तिष्क में उठते ही रहते हैं.
नागा और अघोरी
अक्सर नागा साधुओं और अघोरियों को समान समझ लिया जाता है लेकिन इन दोनों के बीच जमीन-आसमान का अंतर है. चलिए जानते हैं कौन होते हैं नागा साधु.
कैसे बनते हैं नागा साधु
महाकुंभ के दौरान नागा साधु बनाए जाने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है लेकिन हर किसी के लिए नागा बनना संभव नहीं है. नागा साधु बनने के लिए दृढ़ इच्छाशक्ति और संन्यासी जीवन जीने की प्रबल इच्छा होनी चाहिए. सनातन परंपरा की रक्षा करने और इस परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए अलग-अलग संन्यासी अखाड़ों में हर महाकुंभ के दौरान नागा साधु बनने की प्रक्रिया अपनाई जाती है.
क्या हैं 13 अखाड़े
संपूर्ण भारत वर्ष में 13 ऐसे अखाड़े हैं जहां संन्यासियों को नागा बनाया जाता है, लेकिन इन सभी में जूना अखाड़ा ऐसा स्थान है जहां सबसे ज्यादा नागा साधु बनाए जाते हैं.
1. श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी- दारागंज प्रयाग (उत्तर प्रदेश).
2. श्री पंच अटल अखाड़ा- चैक हनुमान, वाराणसी (उत्तर प्रदेश).
3. श्री पंचायती अखाड़ा निरंजनी- दारागंज, प्रयाग (उत्तर प्रदेश).
4. श्री तपोनिधि आनंद अखाड़ा पंचायती- त्रंब्यकेश्वर, नासिक (महाराष्ट्र)
5. श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा- बाबा हनुमान घाट, वाराणसी (उत्तर प्रदेश).
6. श्री पंचदशनाम आवाहन अखाड़ा- दशाश्वमेघ घाट, वाराणसी (उत्तर प्रदेश).
7. श्री पंचदशनाम पंच अग्नि अखाड़ा- गिरीनगर, भवनाथ, जूनागढ़ (गुजरात)
8. श्री दिगम्बर अनी अखाड़ा- शामलाजी खाकचौक मंदिर, सांभर कांथा (गुजरात).
9. श्री निर्वानी आनी अखाड़ा- हनुमान गादी, अयोध्या (उत्तर प्रदेश).
10. श्री पंच निर्मोही अनी अखाड़ा- धीर समीर मंदिर बंसीवट, वृंदावन, मथुरा (उत्तर प्रदेश).
1. श्री पंचायती बड़ा उदासीन अखाड़ा- कृष्णनगर, कीटगंज, प्रयाग (उत्तर प्रदेश).
12. श्री पंचायती अखाड़ा नया उदासीन- कनखल, हरिद्वार (उत्तराखंड).
13. श्री निर्मल पंचायती अखाड़ा- कनखल, हरिद्वार (उत्तराखंड).
इसके अलावा भी सिख, वैष्णव और शैव साधु-संतों के अखाड़े हैं जो कुंभ स्नान में भाग लेते हैं.
*शैव संप्रदाय- आवाह्न, अटल, आनंद, निरंजनी, महानिर्वाणी, अग्नि, जूना, गुदद.
*वैष्णव संप्रदाय- निर्मोही, दिगंबर, निर्वाणी.
*उदासीन संप्रदाय- बड़ा उदासीन, नया उदासीन निर्मल संप्रदाय- निर्मल अखाड़ा.
नागा साधुओं को सामान्य दुनिया से हटकर बनना पड़ता है इसलिए जब भी कोई व्यक्ति नागा बनने के लिए अखाड़े में जाता है तो उसे विशेष प्रकार की परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है. सीधे जाते ही उसे नागा नहीं बना दिया जाता.
पहले होती है पड़ताल
जिस अखाड़े में वह जाता है, उस अखाड़े के प्रबंधक पहले ये पड़ताल करते हैं कि व्यक्ति नागा क्यों बनना चाहता है. व्यक्ति की पूरी पृष्ठभूमि देखने और उसके मंतव्यों को जांचने के बाद ही उसे अखाड़े में शामिल किया जाता है. अखाड़े में शामिल होने के 3 साल तक उसे अपने गुरुओं की सेवा करनी होती है, सभी प्रकार के कर्म कांडों को समझना और उनका हिस्सा बनना होता है.
संन्यासी से महापुरुष का सफर
जब संबंधित व्यक्ति के गुरु को अपने शिष्य पर भरोसा हो जाता है तो उसे अगली प्रक्रिया में शामिल किया जाता है. यह अगली प्रक्रिया महाकुंभ के दौरान शुरू होती है जब व्यक्ति को संन्यासी से महापुरुष बनाया जाता है. इनकी तैयारी किसी सेना में शामिल होने जा रहे व्यक्ति से कम नहीं होती.
अवधूत बनाए जाने की तैयारी
महाकुंभ के दौरान उन्हें गंगा में 108 डुबकियां लगवाई जाती हैं और उनके पांच गुरु निर्धारित किए जाते हैं. नागा बनने वाले साधुओं को भस्म, भगवा वस्त्र और रुद्राक्ष की माला दी जाती है. महापुरुष बन जाने के बाद उन्हें अवधूत बनाए जाने की तैयारी शुरू होती है.
अपनों का पिंडदान
अखाड़ों के आचार्य अवधूत बनाने के लिए सबसे पहले महापुरुष बन चुके साधु का जनेऊ संस्कार करते हैं और उसके बाद उसे संन्यासी जीवन की शपथ दिलवाई जाती है. इस दौरान नागा बनने के लिए तैयार व्यक्ति से उसके परिवार और स्वयं उसका पिंडदान करवाया जाता है. इसके बाद बारी आती है दंडी संस्कार की और फिर होता है पूरी रात ॐ नम: शिवाय का जाप.
नागा बनने की प्रक्रिया
रात भर चले जाप के बाद, भोर होते ही व्यक्ति को अखाड़े ले जाकर उससे विजया हवन करवाया जाता है और फिर गंगा में 108 डुबकियों का स्नान होता है. गंगा में डुबकियां लगवाने के बाद उससे अखाड़े के ध्वज के नीचे दंडी त्याग करवाया जाता है. ऐसे संपन्न होती है नागा बनने की प्रक्रिया.
दीक्षा लेने का स्थान
महाकुंभ भारत के चार शहरों, हरिद्वार, उज्जैन, नासिक और इलाहाबाद में लगता है इसलिए नागा साधु बनाए जाने की प्रक्रिया भी इन्हीं चार शहरों में होती है. नागा साधुओं का नाम भी अलग-अलग होता है जिससे कि यह पहचान हो सके कि उन्होंने किस स्थान से दीक्षा ली है.
चार नाम
जैसे कि प्रयाग (इलाहाबाद) के महाकुंभ में दीक्षा लेने वालों को नागा, उज्जैन में दीक्षा लेने वालों को खूनी नागा, हरिद्वार में दीक्षा लेने वालों को बर्फानी व नासिक में दीक्षा वालों को खिचड़िया नागा के नाम से जाना जाता है.
मुर्दे की राख से भस्म की चादर
नागा साधु बनने के बाद वे अपने शरीर पर भभूत की चादर चढ़ा देते हैं. यह भस्म या भभूत बहुत लंबी प्रक्रिया के बाद तैयार की जाती है. या तो किसी मुर्दे की राख को शुद्ध करके उसे शरीर पर मला जाता है या फिर हवन या धुनी की राख से शरीर ढका जाता है.
भस्म बनाने की क्रिया
अगर मुर्दे की राख उपलब्ध नहीं है तो हवन कुंड में पीपल, पाखड़, सरसाला, केला और गाय के गोबर को जलाकर उस राख को एक कपड़े से छानकर दूध की सहायता से लड्डू बनाए जाते हैं. इन लड्डुओं को सात बार अग्नि में तपाकर उसे फिर कच्चे दूध से बुझा दिया जाता है. इस तरह भस्म तैयार होती है जिसे समय-समय पर नागा अपने शरीर पर लगाते हैं. यही भस्म उनके वस्त्र होते हैं.
Source : News Nation Bureau