उत्तराखंड के हरिद्वार में 1 अप्रैल से महाकुंभ मेले की शुरुआत होने जा रही है. ऐसे में उत्तराखंड सरकार मेले की तैयारी पूरी करने में जुट गई है. वहीं कोरोना के संक्रमण को देखते हुए भी कुंभ में कड़ी व्यवस्था की गई है. मेले में चिकित्सा देखभाल और सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था की समीक्षा करने एक केंद्रीय टीम जाएगी. स्वास्थ्य मंत्रालय ने सोमवार को यह जानकारी दी. टीम कुंभ के दौरान कोविड-19 के फैलाव को रोकने के लिए निवारक उपायों के संबंध में स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी कुंभ मेले के लिए मानक संचालन प्रक्रियाओं (एसओपी) के कार्यान्वयन की स्थिति पर ध्यान केंद्रित करेगी.
हरिद्वार में कुंभ मेला का आयोजन हर की पौड़ी घाट पर गंगा किनारे होता है. हिंदू धर्म में कुंभ स्नान का विशेष महत्व बताया गया है. वहीं अगर आप कुंभ के दौरान होने वाले शाही स्नान के दिन स्नान करते हैं तो ऐसी मान्यता है कि व्यक्ति को अमरत्व के समान पुण्य की प्राप्ति होती है, शरीर और आत्मा शुद्ध हो जाती है, रोग विकार समाप्त हो जाता है. वहीं साधु-संतों को अपने तपोकर्मों का विशिष्ट फल मिलता है. पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक, कुंभ स्नान करने वाले श्रद्धालुओं को सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है. वहीं बता दें कि कुंभ मेला हरिद्वार के अलावा उज्जैने में शिप्रा नदी में, नासिक में गोदावरी किनारे और प्रयागराज (इलाहाबाद) के गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम स्थल पर लगता हैं.
हरिद्वार सबसे पवित्र धार्मिक स्थल के रूप में जाना जाता है. मान्यता है कि हर की पौड़ी पर भगवान हरि यानि कि विष्णु जी के चरण पड़े थे, तभी से इस स्थान का नाम हरि कि पौड़ी पड़ा. हरिद्वार में गंगा नदी के अलावा ऐसे और कई पवित्र स्थान हैं, जो धर्म के नजरिए से विशेष महत्व रखता हैं. हरिद्वार में हर की पौड़ी के अलावा मंसा देवी, चंडी देवी, दक्षा प्रजापति मंदिर , पारद शिवलिंग और माया देवी मंदिर है.
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मनसा देवी मंदिर
हर की पैड़ी से प्रायः पश्चिम की ओर शिवालिक श्रेणी के एक पर्वत-शिखर पर मनसा देवी का मंदिर स्थित है. मनसा देवी का शाब्दिक अर्थ है वह देवी जो मन की इच्छा (मनसा) पूर्ण करती हैं. मुख्य मंदिर में दो प्रतिमाएं हैं, पहली तीन मुखों और पांच भुजाओं के साथ जबकि दूसरी आठ भुजाओं के साथ. मान्यता है कि इस मंदिर में जो भी भक्त सच्चे दिल से प्रार्थना करता है माता रानी उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं.
चंडी देवी मंदिर
हिमालय की दक्षिण पर्वत माला के नील पर्वत के ऊपर स्थित है चंडी माता मंदिर. इस मंदिर की मुख्य मूर्ति की स्थापना 8वीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य ने की थी. जबकिॉ मंदिर का निर्माण राजा सुचात सिंह ने 1929 में कराया. स्टेशन से इस मंदिर की दूरी करीब 5 किलोमीटर है.
स्कन्द पुराण की एक कथा के अनुसार, स्थानीय राक्षस राजाओं शुम्भ-निशुम्भ के सेनानायक चण्ड-मुण्ड को देवी चण्डी ने यहीं मारा था; जिसके बाद इस स्थान का नाम चण्डी देवी पड़ गया. मान्यता है कि मुख्य प्रतिमा की स्थापना आठवीं सदी में आदि शंकराचार्य ने की थी. मंदिर चंडीघाट से ३ किमी दूरी पर स्थित है. मनसा देवी की तुलना में यहाँ की चढ़ाई कठिन है, किन्तु यहाँ चढ़ने-उतरने के दोनों रास्तों में अनेक प्रसिद्ध मंदिर के दर्शन हो जाते हैं.
माया देवी मंदिर
माया देवी (हरिद्वार की अधिष्ठात्री देवी) प्राचीन मंदिर एक सिद्धपीठ माना जाता है. इसे देवी सती की नाभि और हृदय के गिरने का स्थान कहा जाता है. यह उन कुछ प्राचीन मंदिरों में से एक है जो अब भी नारायणी शिला व भैरव मंदिर के साथ खड़े हैं.
दक्षा प्रजापति मंदिर
माता सती के पिता राजा दक्ष प्रजापति के नाम पर बना है दक्ष प्रजापति मंदिर. पौराणिक कथाओं के अनुसार, कनखल स्थित यही वह स्थान है जहां राजा दक्ष ने भव्य यज्ञ का आयोजन किया और भगवान शिव जी को नहीं बुलाया. इसके बाद जब मां सती वहां पहुंची तो दक्ष प्रजापति ने महादेव का बेहद अपमान किया. अपने पति के अपमान को मां सती बर्दाश्त नहीं कर पाई और उसी यज्ञ कुंड में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए थे.
पारद शिवलिंग
कनखल में श्री हरिहर मंदिर के निकट ही दक्षिण-पश्चिम में पारद शिवलिंग का मंदिर है. इसका उद्घाटन पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने 8 मार्च 1986 को किया था. यहां पारद से निर्मित 151 किलो का पारद शिवलिंग है. मंदिर के प्रांगण में रुद्राक्ष का एक विशाल पेड़ है जिस पर रुद्राक्ष के अनेक फल लगे रहते हैं जिसे देखकर पर्यटक बेहद ही आश्चर्यचकित और आनंदित महसूस करते हैं.