माघ महीने की अमावस्या को मौनी अमावस्या (Mauni Amavasya) कहा जाता है. इस दिन पवित्र नदियों में स्नान किया जाता है. उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में चल रहे कुंभ मेले (Kumbh 2019) में मौनी अमावस्या (Mauni Amavasya 2019) के दिन शाही स्नान हो रहा है. इस मास को कार्तिक मास के जैसे ही पुण्य महीना माना गया है. इसी वजह से गंगा किनारे लाखों श्रद्धालु डुबकी लगाते हैं. आइए जानें क्यों मनाई जाती है मौनी अमावस्या और इसके पीछे क्या है कथा...
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पौराणिक कथा के अनुसार कांचीपुरी में एक ब्राह्मण अपनी पत्नी धनवती और सात पुत्रों-एक पुत्री के साथ रहता था. उसकी बेटी का नाम गुणवती था. ब्राह्मण ने अपने सभी पुत्रों की शादी के बाद अपनी बेटी का वर ढूंढना चाहा. ब्राह्मण ने बेटी की कुंडली जब एक पंडित को दिखाई तो पंडित बोला कि बेटी विधवा हो जाएगी.
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पंडित ने वैधव्य दोष के निवारण के लिए एक उपाय बताया. उसने बताया कि कन्या अगर धोबिन की पूजा करेगी तो यह दोष दूर हो जाएगा. ये उपाय जान ब्राह्मण ने अपने छोटे पुत्र और पुत्री को सोमा को लेने भेजा. सोमा सागर पार सिंहल द्वीप पर रहती थी.
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छोटा पुत्र सागर पार करने की चिंता में एक पेड़ की छाया के नीचे बैठ गया. उस पेड़ पर गिद्ध का परिवार रहता था. शाम होते ही गिद्ध के बच्चों की मां अपने घोसले में वापस आई तो उसे पता चला कि उसके गिद्ध बच्चों ने भोजन नहीं किया.
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गिद्ध के बच्चे अपनी मां से बोले की पेड़ के नीचे दो लोग सुबह से भूखे-प्यासे बैठे हैं. जब तक वो कुछ नहीं खा लेते, तब तक हम भी कुछ नहीं खाएंगे. ये बात सुन गिद्धों की मां उस दोनों के पास गई और बोली - मैं आपकी इच्छा को जान गई हूं. मैं आपको सुबह सागर पार करा दूंगी. लेकिन उससे पहले कुछ खा लीजिए, मैं आपके लिए भोजन लाती हूं.
दोनों भाई-बहन को अलगे दिन सुबह गिद्ध ने सागर पार कराया. दोनों सोमा के घर पहुंचे और बिना कुछ बताए उसकी सेवा करने लगे. उसका घर लीपने लगे.सोमा ने एक दिन अपनी बहुओं से पूछा कि हमारे घर को रोज़ाना सुबह कौन लीपता है? सबने कहा कि कोई नहीं हम ही घर लीपते-पोतते हैं. लेकिन सोमा को अपने परिवार वालों की बातों का भरोसा नही हुआ.
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एक रात को इस रहस्य को जानने के लिए सुबह तक जागी और उसने पता लगा लिया कि ये भाई-बहन उसके घर को लीपते हैं. सोमा ने दोनों से बात की और दोनों ने सोमा को बहन के दोष और निवारण की बात बताई.सोमा ने गुणवती को उस दोष से निवारण का वचन दे दिया, लेकिन गुणवती के भाई ने उन्हें घर आने का आग्रह किया. सोमा ने ना नहीं किया वो दोनों के साथ ब्राह्मण के घर पहुंची. सोमा ने अपनी बहुओं से कहा कि उसकी अनुपस्थिति में यदि किसी देहांत हो जाए तो उसके शरीर को नष्ट ना करें, मेरा इंतज़ार करें. ये बोलकर वो गुणवती के साथ उसके घर चई गई.
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गुणवती के विवाह का कार्यक्रम तय हुआ. लेकिन सप्तपदी होते ही उसका पति मर गया. सोमा ने तुरंत अपने पुण्यों का फल गुणवती को दिया. उसका पति तुरंत जीवित हो गया. सोमा ने दोनों को आशार्वाद देकर चली गई. गुणवती को पुण्य-फल देने से सोमा के पुत्र, जमाता और पति की मृत्यु हो गई.
सोमा ने पुण्य फल को संचित करने के लिए रास्ते में पीपल की छाया में विष्णुजी का पूजन करके 108 परिक्रमाएं की और व्रत रखा. परिक्रमा पूर्ण होते ही उसके परिवार के मृतक जन जीवित हो उठे. निष्काम भाव से सेवा का फल उसे मिला.
Source : News Nation Bureau