रविवार यानी 12 नवंबर को देशभर में धूमधाम से दिवाली मनाई जाएगी. इस दौरान सभी लोग हिंदू धार्मिक रीति-रिवाजों के अनुसार अपने-अपने घरों में पूजा-पाठ करते हैं. ऐसे में कई लोगों को पूजा की सही विधि नहीं पता होती है. हिंदू धर्म में माना जाता है कि पूजा-पाठ में खिलवाड़ करना यानी भगवान को नाराज करना. जब दिवाली जैसे त्योहार पर पूजा की बात हो तो पूजा की सटीक विधी जानकार पूजा करना ही उचित होता है. ऐसे में आज हम आपको बताएंगे कि दिवाली पर अपने घर में कैसे पूजा करें और कहां पूजा करें.
वास्तु शास्त्र के अनुसार, दिवाली पूजा निम्नलिखित दिशा में करना सर्वोत्तम माना जाता है
1. पूजा का स्थान
पूजा स्थल को पश्चिम या उत्तर-पश्चिम दिशा में स्थापित करें.
2. आसान की स्थिति
पूजा करते समय बैठने की स्थिति को पूर्व दिशा में रखें.
3 मुख का दिशा
पूजा करते समय मुख को पूर्व दिशा में रखें.
4. पूजा सामग्री
पूजा की सामग्री को उत्तर या पूर्व दिशा में रखें.
5. अगरबत्ती और दीपक
अगरबत्ती और दीपकों को पूर्व दिशा में जलाएं.
6. पूजा का समय
पूजा का समय उचित मुहूर्त में चयन करें, जो पंचांग और विधि के अनुसार हो.
7. लक्ष्मी पूजा
लक्ष्मी पूजा के लिए पश्चिम दिशा में या दीवार पर मूर्ति को स्थापित करें.
8. दीपावली के दीपों की स्थिति
दीपावली के दीपों को पूजा स्थल के चारों ओर रखें, विशेषकर पश्चिम दिशा में.
9. धनतेरस की पूजा
धनतेरस को धन, समृद्धि, और धन्यता की ओर इशारा करने के लिए पूजा स्थल को उत्तर दिशा में स्थापित करें.
10. शुभ मुहूर्त
शुभ मुहूर्त के लिए ज्योतिषशास्त्र का आधार लें और पूजा को उसी समय करें.
यह वास्तु उपाय आपको एक शांतिपूर्ण और सकारात्मक पूजा अनुभव करने में मदद कर सकते हैं.
धनतेरस का पर्व क्यों मनाया जाता है?
धनतेरस का पर्व क्यों मनाया जाता है और इसकी शुरुआत कैसे हुई ये सब जानना चाहते हैं. दिवाली से पहले आने वाली कार्तिक मास की त्रयोदशी तिथि को धनतेरस के रूप में मनाया जाता है. इस दिन यम का दीपक भी जगाते हैं जिसकी मान्यता है कि इससे अकाल मृत्यु का भय समाप्त हो जाता है. पौराणिक कथा के अनुसार जब अमृत प्राप्ति के लिए देवताओं और दानवों के द्वारा समुद्र मंथन किया गया था, तो एक-एक करके उससे क्रमशः चौदह रत्नों की प्राप्ति हुई.
लेकिन समुद्र मंथन के समय सबसे बाद में अमृत की प्राप्ति हुई थी. कथाओं के अनुसार कहा जाता है कि भगवान धनवंतरी समुद्र से अपने हाथों में अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे. जिस दिन भगवान धन्वंतरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए वह कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि थी, इसलिए धनतेरस या धनत्रयोदशी के दिन धनवंतरी देव की पूजा का महत्व है.
Source : News Nation Bureau