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Pitru Paksha 2020 : गया और नासिक में इस बार नहीं हो पाएगा तर्पण, उज्जैन में कोरोना से बचाव के साथ पिंडदान

2 सितंबर यानी अगले बुधवार से 16 दिवसीय श्राद्ध पक्ष यानी पितृ पक्ष आरंभ हो रहा है. पितृ पक्ष में पितरों के लिए पिंडदान किया जाता है.

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Sunil Mishra
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गया और नासिक में नहीं हो पाएगा तर्पण, उज्जैन में कर सकेंगे पिंडदान( Photo Credit : File Photo)

2 सितंबर यानी अगले बुधवार से 16 दिवसीय श्राद्ध पक्ष यानी पितृ पक्ष (Pitru Paksha) आरंभ हो रहा है. पितृ पक्ष में पितरों के लिए पिंडदान (Pind Dan) किया जाता है. पितृ पक्ष में आम तौर पर हर साल बिहार के गया, महाराष्ट्र के नासिक, मध्यप्रदेश के उज्जैन और उत्तराखंड के ब्रह्मकपाल में लाखों लोग पिंडदान करने जाते थे, लेकिन इस बार कोरोना महामारी के चलते हालात बदले हुए हैं. श्राद्ध (Shradh) और तर्पण (Tarpan) के इन प्रमुख तीर्थों से रौनक गायब सी हो गई है.

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बिहार के गया में पितृ पक्ष में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ जमा होती है, लेकिन इस साल ऐसा नहीं होने वाला. इस साल कोरोना के चलते गया में लगने वाला मेला स्थगित कर दिया गया है. हर साल गया में 10 लाख से ज्यादा लोग श्राद्ध के दिनों में तर्पण और पिंडदान के लिए आते हैं. इन्‍हीं दिनों की कमाई से यहां के हजारों परिवार साल भर अपना पेट पालते हैं लेकिन पांच माह से सब बंद है. गया के पुरोहित प्रशासन से सोशल डिस्टेंसिंग, मास्क और सेनेटाइजेशन के नियमों का पालन करते हुए पिंडदान प्रारंभ करने की बात कह रहे हैं.

गया में विष्णुपद, फल्गु नदी के किनारे अक्षयवट के आसपास पिंडदान किया जाता है. वैसे तो गया में कभी भी पिंडदान कर सते हैं, लेकिन पितृपक्ष में यहां पिंडदान का विशेष लाभ मिलता है, ऐसा जानकारों का कहना है.

बताया जाता है कि प्राचीन काल में गयासुर नाम के दैत्य को देखने से या छूने से ही लोगों के पाप दूर हो जाते थे. गयासुर ने गया में ही देवताओं को यज्ञ के लिए अपना शरीर दिया था. यहां मुख्य रूप से फल्गु नदी, विष्णुपद मंदिर, नदी के किनारे अक्षयवट पर पिंडदान किया जाता है.

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इसी तरह उत्तराखंड में बद्रीनाथ धाम के पास अलकनंदा नदी के किनारे स्‍थित ब्रह्मकपाल तीर्थ में हर साल पितृ पक्ष में करीब एक लाख लोग पिंडदान करने आते हैं. इस बार यहां भी रौनक गायब रहने वाली है. यहां पिंडदान हो पाएंगे कि नहीं, इस बारे में प्रशासन ने अभी तक कोई निर्णय नहीं ले पाया है. ब्रह्मकपाल के बारे में मान्‍यता है कि प्राचीन काल में शिवजी ने अपने त्रिशूल से ब्रह्माजी का एक सिर काट दिया था. तब ब्रह्माजी का सिर त्रिशूल पर चिपक गया था. ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति के लिए शिवजी बद्रीनाथ के पास अलकनंदा नदी के किनारे पहुंचे़, जहां त्रिशूल से ब्रह्माजी का सिर मुक्त हो गया. उसके बाद से यह जगह ब्रह्मकपाल के नाम से प्रसिद्ध हो गया. कहा जाता है कि पांडवों ने इसी जगह पर अपने पितरों के लिए तर्पण किया था.

मध्य प्रदेश के उज्जैन के सिद्धनाथ घाट की बात करें तो कोरोना महामारी के प्रकोप के चलते यहां भी तमाम तरह की बंदिशें लगाई गई हैं. बताया जा रहा है कि वहां श्राद्ध पक्ष तैयारी चल रही है और सोशल डिस्टेंसिंग व मास्क लगाकर तर्पण कराया जा सकता है. वहां घाटों को सैनेटाइज कराया जा रहा है, लेकिन शिप्रा नदी में स्नान वर्जित है. स्‍नान के लिए ट्यूबवेल की व्‍यवस्‍था की गई है. यहां हर साल 2 लाख से अधिक लोग तर्पण के लिए आते हैं. त्र्यंबकेश्वर त्रिदेवों का स्थान है. त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग में ब्रह्मा, विष्णु और महेश के स्वरूप में तीन शिवलिंग स्थापित हैं. पवित्र गोदावरी नदी का उद्गम भी यही है. यहां पिंडदान के साथ ही कालसर्प दोष की भी खासतौर पर पूजा की जाती है.

Source : News Nation Bureau

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