इस साल 15 जनवरी को देशभर में मकर संक्रांति मनाई जाएगी. हिंदी कैलेंडर के अनुसार मकर संक्रांति माघ मास के कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि से आरंभ होकर माघ मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि तक चलती है. इसे हिंदू कैलेंडर में एक महत्वपूर्ण त्योहार माना जाता है और इसे मकर संक्रांति, माघी, खिचड़ी, उत्तरायण संक्रांति, तिल संक्रांति या लोहड़ी जैसे विभिन्न नामों से जाना जाता है. मकर संक्रांति का इतिहास विभिन्न सांस्कृतिक परंपराओं और प्राचीन ग्रंथों में मिलता है. यह सूर्य ग्रहण का समय माना जाता है, जब सूर्य दक्षिणायणी यानी कर्क राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है.
इस समय को उत्तरायण कहा जाता है और सूर्य का उत्तरायण पृथ्वी पर शुभ माना जाता है.साथ ही ये भी माना जात है कि इस दिन भगवान भास्कर अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उनके घर जाते हैं. बता दें कि शनिदेव मकर राशि के स्वामी हैं तो इस दिन को मकर संक्रांति भी कहते हैं.
हिंदुओं के लिए क्यों होता है महत्वपूर्ण
मकर संक्रांति का त्योहार हिंदू धर्म में अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग रूपों में मनाया जाता है, लेकिन इसका मुख्य उद्देश्य सूर्य भगवान की पूजा करना होता है. इस दिन लोग स्नान, दान, तिल-गुड़ खाना, पितरों को तर्पण, सूर्य देव की पूजा और मेलों का आयोजन करते हैं. यह किसानों के लिए भी एक महत्वपूर्ण त्योहार माना जाता है, क्योंकि यह गन्ने की कटाई के साथ मेल खाता है और नए कृषि मौसम की शुरुआत का प्रतीक माना जाता है.
आखिर हर साल क्यों बदलती है तारीख?
कई इतिहासकारों के मुताबिक, पहली मकर संक्रांति 14 जनवरी 1902 में मनाई गई थी. इससे पहले 18 वीं सदी में 12 और 13 जनवरी को मनाई जाती थी. वहीं, साल 1964 में 15 जनवरी को मकर संक्रांति मनाई गई थी. इसके बाद हर तीसरे साल अधिकमास होने से दूसरे और तीसरे साल 14 जनवरी को चौथे साल में 15 जनवरी को आने लगी. यानी 2077 में आखिरी बार 14 जनवरी को मकर संक्रांति मनाई जाएगी.
बता दें कि जब सूर्य के धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है तो उसे मकर संक्रांति कहते हैं. हर साल सूर्य का धनु से मकर राशि में प्रवेश 20 मिनट की देरी से होता है. इस प्रकार प्रत्येक तीन वर्ष बाद सूर्य मकर राशि में एक घंटे की देरी से और प्रत्येक 72 वर्ष बाद एक दिन की देरी से प्रवेश करता है. इसके अनुसार 2077 से मकर संक्रांति 15 जनवरी को ही होगी.
Source : News Nation Bureau