श्रीहरिकोटा से आज यानी सोमवार को भारतीय स्पेस एजेंसी इसरो (ISRO)ने नया इतिहास रच दिया. चंद्रयान-2 की सफल लॉन्चिंग के साथ ही भारत का डंका अब अंतरिक्ष में बजने लगा है. 22 जुलाई को दोपहर 2.43 बजे देश के सबसे ताकतवर बाहुबली रॉकेट GSLV-MK3 से सफल लॉन्चिंग के बाद वैज्ञानिकों ने तालियां बजाकर मिशन का स्वागत किया तो पीएम मोदी के चेहरे पर चमक बिखर गई. साथ ही देश की 130 करोड़ जनता का सीना गर्व से चौड़ा हो गया. आइए इस मिशन मून की उन बातों को समझे जिन्हें आपके लिए जानना जरूरी है..
48 दिन बाद चंद्रयान-2 चांद की कक्षा में पहुंचेगा
- चंद्रयान-2 के तीन हिस्से हैं, जिनके नाम ऑर्बिटर, लैंडर (विक्रम) और रोवर (प्रज्ञान).इस प्रोजेक्ट की लागत 800 करोड़ रुपए है.
- अगर मिशन सफल हुआ तो अमेरिका, रूस, चीन के बाद भारत चांद पर रोवर उतारने वाला चौथा देश होगा.
- चंद्रयान-2 इसरो (ISRO)के सबसे ताकतवर रॉकेट जीएसएलवी मार्क-3 से पृथ्वी की कक्षा के बाहर छोड़ा गया है. फिर उसे चांद की कक्षा में पहुंचाया जाएगा.
- करीब 48 दिन बाद चंद्रयान-2 चांद की कक्षा में पहुंचेगा. फिर लैंडर चांद की सतह पर उतरेगा. इसके बाद रोवर उसमें से निकलकर विभिन्न प्रयोग करेगा.
- चांद की सतह, वातावरण और मिट्टी की जांच करेगा. वहीं, ऑर्बिटर चंद्रमा के चारों तरफ चक्कर लगाते हुए लैंडर और रोवर पर नजर रखेगा. साथ ही, रोवर से मिली जानकारी को इसरो (ISRO)सेंटर भेजेगा.
एक दिन पहले की गई थी लॉन्च रिहर्सल
शनिवार को चंद्रयान-2 की लॉन्च रिहर्सल पूरी की हुई थी. 15 जुलाई की रात मिशन की शुरुआत से करीब 56 मिनट पहले इसरो (ISRO)ने ट्वीट कर लॉन्चिंग आगे बढ़ाने का ऐलान किया था. चंद्रयान-2 की लॉन्चिंग 15 जुलाई की रात 2.51 बजे होनी थी, जो तकनीकी खराबी के कारण टाल दी गई थी. इसरो (ISRO)ने एक हफ्ते के अंदर सभी तकनीकी खामियों को ठीक कर लिया है.
चंद्रयान-2 पृथ्वी का एक चक्कर कम लगाएगा
चंद्रयान-2 चांद पर तय तारीख 7 सितंबर को ही पहुंचेगा. चंद्रयान पृथ्वी का एक चक्कर कम लगाएगा. पहले 5 चक्कर लगाने थे, पर अब 4 चक्कर लगाएगा. इसकी लैंडिंग ऐसी जगह तय है, जहां सूरज की रोशनी ज्यादा है. रोशनी 21 सितंबर के बाद कम होनी शुरू होगी. लैंडर-रोवर को 15 दिन काम करना है, इसलिए समय पर पहुंचना जरूरी है.
7,500 लोगों ने ऑनलाइन पंजीकरण कराया
भारत के रॉकेट जियोसिंक्रोनिक सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल- मार्क तृतीय (जीएसएलवी -एमके तृतीय) का प्रक्षेपण देखने के लिए 7,500 लोगों ने इसरो (ISRO)में ऑनलाइन पंजीकरण कराया था. लॉन्च देखने के लिए विभिन्न स्थानों के लोगों ने पंजीकरण कराया है.
A spectacular success for the Indian scientists, particularly the whole @isro team. This is truly a massive step for Indian space mission. Every Indian should be proud and this is a moment to celebrate for India. Fantastic. -Sg #Chandrayaan2 #ISRO #GSLVMkIII #IndiaMoonMission pic.twitter.com/br4z5yUiRH
— Sadhguru (@SadhguruJV) July 22, 2019
तीन मॉडयूल हैं चंद्रयान-2 के
- चंद्रयान-2 दूसरा चंद्र अभियान है और इसमें तीन मॉडयूल हैं ऑर्बिटर, लैंडर (विक्रम) और रोवर (प्रज्ञान).
- ऑर्बिटर- 1 साल, लैंडर (विक्रम)- 15 दिन, रोवर (प्रज्ञान)- 15 दिन
- चंद्रयान-2 का कुल वजनः 3877 किलो
- ऑर्बिटर- 2379 किलो, लैंडर (विक्रम)- 1471 किलो, रोवर (प्रज्ञान)- 27 किलो
- ऑर्बिटरः चांद से 100 किमी ऊपर इसरो (ISRO)का मोबाइल कमांड सेंटर
रूस के मना करने पर इसरो (ISRO)ने बनाया स्वदेशी लैंडर
लैंडर का नाम इसरो (ISRO)के संस्थापक और भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक विक्रम साराभाई के नाम पर रखा गया है. यह 15 दिनों तक वैज्ञानिक प्रयोग करेगा. इसकी शुरुआती डिजाइन इसरो (ISRO)के स्पेस एप्लीकेशन सेंटर अहमदाबाद ने बनाया था. बाद में इसे बेंगलुरु के यूआरएससी ने विकसित किया. चंद्रयान-2 का ऑर्बिटर चांद से 100 किमी ऊपर चक्कर लगाते हुए लैंडर और रोवर से प्राप्त जानकारी को इसरो (ISRO)सेंटर पर भेजेगा. इसरो (ISRO)से भेजे गए कमांड को लैंडर और रोवर तक पहुंचाएगा. इसे हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड ने बनाकर 2015 में ही इसरो (ISRO)को सौंप दिया था.
प्रज्ञान रोवरः इस रोबोट के कंधे पर पूरा मिशन, 15 मिनट में मिलेगा डाटा
- 27 किलो के इस रोबोट पर ही पूरे मिशन की जिम्मदारी है.
- चांद की सतह पर यह करीब 400 मीटर की दूरी तय करेगा.
- इस दौरान यह विभिन्न वैज्ञानिक प्रयोग करेगा. फिर चांद से प्राप्त जानकारी को विक्रम लैंडर पर भेजेगा.
- लैंडर वहां से ऑर्बिटर को डाटा भेजेगा. फिर ऑर्बिटर उसे इसरो (ISRO)सेंटर पर भेजेगा.
- इस पूरी प्रक्रिया में करीब 15 मिनट लगेंगे. यानी प्रज्ञान से भेजी गई जानकारी धरती तक आने में 15 मिनट लगेंगे.
11 साल लगे चंद्रयान-2 की लॉन्चिंग में
- नवंबर 2007 में रूसी अंतरिक्ष एजेंसी रॉसकॉसमॉस ने कहा था कि वह इस प्रोजेक्ट में साथ काम करेगा. वह इसरो (ISRO)को लैंडर देगा.
- 2008 में इस मिशन को सरकार से अनुमति मिली.
- 2009 में चंद्रयान-2 का डिजाइन तैयार कर लिया गया.
- जनवरी 2013 में लॉन्चिंग तय थी, लेकिन रूसी अंतरिक्ष एजेंसी रॉसकॉसमॉस लैंडर नहीं दे पाई. फिर इसकी लॉन्चिंग 2016 में तय की गई. हालांकि, 2015 में ही रॉसकॉसमॉस ने प्रोजेक्ट से हाथ खींच लिए.
चांद पर इस तरह काम करेगा चंद्रयान-2 मिशन
इसरो (ISRO)के चेयरमैन के सिवान के मुताबिक, हम चांद पर एक ऐसी जगह जा रहे हैं, जो अभी तक दुनिया से अछूती रही है. यह है चंद्रमा का दक्षिणी ध्रुव.अंतरिक्ष विभाग की ओर से जारी एक बयान के मुताबिक, इस मिशन के दौरान ऑर्बिटर और लैंडर आपस में जुड़े हुए होंगे. इन्हें इसी तरह से GSLV MK III लॉन्च व्हीकल के अंदर लगाया जाएगा. रोवर को लैंडर के अंदर रखा जाएगा.लॉन्च के बाद पृथ्वी की कक्षा से निकलकर यह रॉकेट चांद की कक्षा में पहुंचेगा. इसके बाद धीरे-धीरे लैंडर, ऑर्बिटर से अलग हो जाएगा. इसके बाद यह चांद के दक्षिणी ध्रुव के आस-पास एक पूर्वनिर्धारित जगह पर उतरेगा. बाद में रोवर वैज्ञानिक परीक्षणों के लिए चंद्रमा की सतह पर निकल जाएगा.
चंद्रयान-1, पहली बार इसरो (ISRO)ने चांद को छुआ
- भारत ने 22 अक्टूबर 2008 में चांद पर अपना पहला मिशन चंद्रयान-1 लॉन्च किया था.
- 392 दिन काम करने के बाद ईंधन की कमी से मिशन 29 अगस्त 2009 को खत्म हो गया.
- इस दौरान चंद्रयान-1 ने चांद के 3400 चक्कर लगाए थे.
- अभी तक चांद पर सॉफ्ट लैंडिंग कराने वाले देश अमेरिका, रूस और चीन ही हैं.
- चंद्रयान-1 ने चांद पर पानी के सबूत भी जुटाए थे.
चंद्रयान-1 की खासियत
- चंद्रयान-1, 11 पेलोड लेकर गया था. इसमें से 5 पेलोड भारत के थे. तीन पेलोड यूरोप के और 2 अमेरिका के थे.
- एक पेलोड बुल्गारिया का भी था.
- 2008 में, हमने अपना पहला सैटेलाइट सफलतापूर्वक चांद पर भेजा था.
- इसने चंद्रमा के बारे में बहुत सारी जानकारियां इकट्ठा की थीं.
- इसने भी वहां होने वाले खनिजों आदि के बारे में पता किया था.
- दौरान भारतीय झंडा भी चांद की सतह पर फहराया था."
- चंद्रयान-1 को चंद्रमा की सतह पर पानी खोजने का श्रेय दिया जाता है.
- 1.4 टन के इस स्पेसक्राफ्ट को PSLV के जरिये लॉन्च किया गया था.
- उस वक्त इसका ऑर्बिटर चंद्रमा के 100 किमी ऊपर कक्षा में चक्कर लगा रहा था.
दक्षिणी ध्रुव पर पहली बार
अभी तक चांद के जितने भी मिशन रहे हैं वे दक्षिणी ध्रुव पर नहीं उतरे हैं. चांद के इस हिस्से के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है. इतना ही नहीं चांद पर पहुंच चुके अमेरिका, रूस और चीन ने भी अभी तक इस जगह पर कदम नहीं रखा है. भारत के चंद्रयान-1 मिशन के दौरान ही दक्षिणी ध्रुव पर पानी के बारे में पता चला था.
इस महत्वाकांक्षी मिशन की चुनौतियां
- एक्युरेसी की मुश्किल, पृथ्वी से चांद की दूरी 3,84,403 किलोमीटर है.
- ट्राजेक्टरी एक्युरेसी मुख्य चीज है. यह चांद की ग्रेवेटी से प्रभावित है.
- चांद पर अन्य खगोलविद संस्थाओं की मौजूदगी और सोलर रैडिएशन का भी इस पर प्रभाव पड़ने वाला है.
- डीप-स्पेस कॉम्युनिकेशन में देरी भी एक बड़ी समस्या होगी.
- कोई भी संदेश भेजने पर उसके पहुंचने में कुछ मिनट लगेंगे.
- सिंग्ल्स वीक हो सकते हैं.
- बैकग्राउंड का शोर भी संवाद को प्रभावित करेगा.