अशोक की लाट और इसरो के 'लोगो' की छाप होगी चांद की सतह पर, जानें कैसे

चंद्रयान-2 का रोवर 'प्रज्ञान' चांद की सतह की जांच के दौरान जगह-जगह 'अशोक की लाट' और इसरो का 'लोगो' बनाएगा. इसके लिए रोवर में खास तकनीक का इस्तेमाल किया गया है.

author-image
Nihar Saxena
New Update
अशोक की लाट और इसरो के 'लोगो' की छाप होगी चांद की सतह पर, जानें कैसे

रोवर प्रज्ञान चांद की सतह पर छोड़ेगा भारत के निशान.

Advertisment

अमेरिका के लूनर मिशन 'अपोलो' पर सवार एस्ट्रोनॉट्स ने चांद की सतह पर उतरते ही अमेरिकी झंडा फहराया था. हालांकि भारत का चंद्रयान-2 चांद की सतह पर ऐसी अमिट छाप छोड़ेगा, जो सदियों बाद तक चंद पर पहुंचने वाले अंतरिक्ष यात्रियों और लूनर मिशन के लिए पथप्रदर्शक की भूमिका निभाती रहेंगी. इसरो के मुताबिक चंद्रयान-2 का रोवर 'प्रज्ञान' चांद की सतह की जांच के दौरान जगह-जगह 'अशोक की लाट' और इसरो का 'लोगो' बनाएगा. इसके लिए रोवर में खास तकनीक का इस्तेमाल किया गया है.

यह भी पढ़ेंः Chandrayaan 2 Landing Video : जानें सोने की चादर में क्‍यों लिपटे लैंडर विक्रम और रोवर प्रज्ञान जो चांद को चूमने को हैं तैयार

कैसे सतह पर उभरेगी अशोक की लाट और इसरो का लोगो
गौरतलब है कि अमेरिका ने चांद पर भेजे गए अपने पहले मानव मिशन अपोलो 2011 के दौरान चांद पर झंडा लहराया था. अमेरिका का अपोलो 2011, 20 जुलाई 1969 को चांद पर उतरा था. वहीं, भारत चंद्रयान 2 की लैंडिंग के बाद चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर चप्पे-चप्पे पर सदियों के लिए अपनी उपस्थिति का निशान दर्ज करा देगा. चंद्रमा पर रिसर्च के दौरान छह पहियों वाला रोवर चांद पर भारत सरकार के चिन्ह 'अशोक की लाट' और इसरो के 'लोगो' को अंकित करेगा. इसके लिए रोवर के पहियों में अशोक लाट और इसरो के प्रतीक का चिन्ह बनाया गया है. जाहिर है रोवर के चंद्रमा पर चलने के दौरान ये चिन्ह सतह पर अपने आप ही बनते जाएंगे.

यह भी पढ़ेंः आंतरिक दबाव से घिरे हुए इमरान खान 'बहादुर' बनने के लिए पहुंचे LOC, जानें फिर क्या हुआ

दक्षिणी ध्रुव पर ही लैंडिंग क्यों
तमाम चुनौतियों के बावजूद चंद्रयान 2 को दक्षिणी ध्रुव पर उतारने की सबसे बड़ी वजह यही है कि चांद के इस हिस्से की अब तक जांच नहीं की गई है. चंद के इस क्षेत्र का ज्यादातर हिस्सा हमेशा अंधेरे में रहता है और सूरज की किरणें न पड़ने के कारण यहां बहुत ठंड रहती है. ऐसे में यहां पानी और खनिज होने की संभावना बहुत ज्यादा है. अंतरिक्ष विज्ञानियों के मुताबिक चांद का दक्षिणी ध्रुव ज्वालामुखियों और उबड़-खाबड़ जमीन वाला है. अगर दक्षिणी ध्रुव पर पानी मिलता है, तो भविष्य में इंसानों के चांद पर बसने में ये मददगार साबित हो सकता है. चंद्रमा की बाहरी सतह की जांच से इस ग्रह के निर्माण की गुत्थियों के सुलझाने में काफी मदद मिलेगी.

यह भी पढ़ेंः चंद्रयान-2 की शानदार तस्वीर नाखून पर बनाकर इस आर्टिस्ट ने पीएम मोदी और वैज्ञानिकों को दी बधाई

क्या हैं लैंडर और रोवर?
वॉशिंगटन पोस्ट से बातचीत में मुंबई स्थित थिंक टैंक गेटवे हाउस के स्पेस एंड ओशन स्टडीज के रिसर्चर चैतन्य गिरी ने कहा था, 'चांद के रहस्यमयी दक्षिणी ध्रुव पर पहली बार कोई अंतरिक्षयान उतरेगा. इस मिशन में लैंडर का नाम मशहूर वैज्ञानिक विक्रम साराभाई के नाम पर 'विक्रम' रखा गया है और रोवर का नाम 'प्रज्ञान' है. विक्रम भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रमों के पहले प्रमुख थे. लैंडर वह है जिसके जरिए चंद्रयान चांद पर पहुंचेगा. रोवर का मतलब लैंडर में मौजूद उस रोबोटिक वाहन से है, जो चांद पर पहुंचकर वहां की चीजों को समझेगा और रिसर्च करेगा.'

यह भी पढ़ेंः भारतीय वायुसेना की ताकत होगी दोगुनी, खरीदेगी 83 तेजस, HAL को मिला 45000 करोड़ का ऑर्डर

पानी और जीवाश्म की संभावना
2008 के मिशन चंद्रयान-1 के बाद भारत का ये दूसरा लूनर मिशन है. पहले लूनर मिशन में भारत ने चांद पर पानी की खोज की थी. भारत ने 1960 के दशक में अंतरिक्ष कार्यक्रम शुरू किया था. दूसरे मिशन के लिए भारत ने चांद के उस हिस्से (दक्षिणी ध्रुव) का चुनाव किया है, जहां अब तक कोई नहीं पहुंचा. माना जाता है कि चांद का दक्षिणी ध्रुव बेहद जटिल है. वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि चांद के इस हिस्से में पानी और जीवाश्म मिल सकते हैं.

HIGHLIGHTS

  • रोवर 'प्रज्ञान' चांद की सतह पर 'अशोक की लाट' और इसरो का 'लोगो' बनाएगा.
  • इसके लिए रोवर में खास तकनीक का इस्तेमाल किया गया है.
  • रोवर के पहियों में अशोक लाट और इसरो का लोगो बनाया गया.
isro Chandrayaan 2 Vikram Lunar Surface Ashok Emblem pragyan Rover
Advertisment
Advertisment
Advertisment