चंद्रयान-2 (chandrayaan-2 landin live) के चांद पर कदम रखने में अब कुछ घंटे रह गए हैं. बेंगलुरु के भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (ISRO) में वैज्ञानिक अपनी तैयारियों में जुटे हुए हैं. 48 दिनों के सफर के बाद चंद्रयान 2 (Chandrayaan 2) के दो हिस्से लैंडर विक्रम और रोवर प्रज्ञान चांद की सतह पर उतरेंगे. सोने की चादर में लिपटे लैंडर विक्रम और रोवर प्रज्ञान के बारे में बहुत सी ऐसी चीजें हैं जो आप नहीं जानते होंगे. शायद यह भी नहीं जानते होंगे कि दोनों के ऊपर सोने के पत्तर क्यों चढ़ाए गए हैं? तो चलिए आपको बताते हैं विक्रम और प्रज्ञान के हर जानकारी जिसे जानना चाहेंगे आाप? पहले देखें कैसे चांद को चूमेगा विक्रम...
- चंद्रयान-2 के तीन हिस्से हैं, जिनके नाम ऑर्बिटर, लैंडर (विक्रम) और रोवर (प्रज्ञान) हैं.
- ऑर्बिटर- 2379 किलो, लैंडर (विक्रम)- 1471 किलो, रोवर (प्रज्ञान)- 27 किलो
- इस प्रोजेक्ट की लागत 800 करोड़ रुपए है.
- अगर मिशन सफल हुआ तो अमेरिका, रूस, चीन के बाद भारत चांद पर रोवर उतारने वाला चौथा देश होगा.
- चंद्रयान-2 इसरो के सबसे ताकतवर रॉकेट जीएसएलवी मार्क-3 से पृथ्वी की कक्षा के बाहर छोड़ा जाएगा. फिर उसे चांद की कक्षा में पहुंचाया जाएगा.
- चांद की सतह, वातावरण और मिट्टी की जांच करेगा. वहीं, ऑर्बिटर चंद्रमा के चारों तरफ चक्कर लगाते हुए लैंडर और रोवर पर नजर रखेगा. साथ ही, रोवर से मिली जानकारी को इसरो सेंटर भेजेगा.
There’s one thing we can’t measure here though — the hopes and dreams of millions of Indians riding on #Chandrayaan2! #ISRO #MoonMission pic.twitter.com/8LGFuf4Lfy
— ISRO (@isro) August 16, 2019
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प्रज्ञान रोवरः इस रोबोट के कंधे पर पूरा मिशन, 15 मिनट में मिलेगा डाटा
- 27 किलो के इस रोबोट पर ही पूरे मिशन की जिम्मदारी है.
- चांद की सतह पर यह करीब 400 मीटर की दूरी तय करेगा.
- इस दौरान यह विभिन्न वैज्ञानिक प्रयोग करेगा. फिर चांद से प्राप्त जानकारी को विक्रम लैंडर पर भेजेगा.
- लैंडर वहां से ऑर्बिटर को डाटा भेजेगा. फिर ऑर्बिटर उसे इसरो सेंटर पर भेजेगा.
- इस पूरी प्रक्रिया में करीब 15 मिनट लगेंगे. यानी प्रज्ञान से भेजी गई जानकारी धरती तक आने में 15 मिनट लगेंगे.
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दरअसल अंतरिक्ष में भेजे जाने वाले सैटेलाइट को बनाने में सोने (Gold) का अहम खास रोल होता है. सोने के कुछ विशिष्ट गुणों के कारण एयरोस्पेस उद्योग में इसका विशेष प्रयोग किया जाता है. दरअसल यह सैटेलाइट की परिवर्तनशीलता, चालकता (कंडक्टिविटी) और जंग के प्रतिरोध को रोकता है. वहीं यह सैटेलाइट में अंतरिक्ष की हानिकारक इनफ्रारेड रेडिएशन को रोकने में मदद करता है. ये रेडिएशन इतना खतरनाक होता है कि वो अंतरिक्ष में सैटेलाइट को बहुत जल्द नष्ट करने की क्षमता रखता है.
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अपोलो लूनर मॉड्यूल में भी नासा ने सैटेलाइट बनाने में सोने का इस्तेमाल किया था. नासा के इंजीनियरों के अनुसार, गोल्ड प्लेट की एक पतली परत ( गोल्ड प्लेटिंग) का उपयोग एक थर्मल ब्लैंकेट की शीर्ष परत के रूप में किया गया था जो मॉड्यूल के निचले हिस्से को कवर कर रहा था. ये ब्लैंकेट अविश्वसनीय रूप से 25 परतों में जटिलता से तैयार किया गया. इन परतों में कांच, ऊन, केप्टन, मायलर और एल्यूमीनियम जैसी धातु भी शामिल की गई. ये गोल्ड दरअसल अलग ही नाम से जाना जाता है.