चंद्रयान-2 की लॉन्चिंग तकनीकी खामियों की वजह से फिलहाल रोक दिया गया है. 15 जुलाई 2.51 बजे चंद्रयान को देश के सबसे ताकतवर बाहुबली रॉकेट GSLV-MK3 से लॉन्च किया जाना था लेकिन 56.24 मिनट पहले काउंटडाउन रोक दिया गया. भारत को इस मिशन को पूरा करने में थोड़ा वक्त और लगेगा. तत्काल इसरो वैज्ञानिक ये पता करने की कोशिश में जुट गए कि लॉन्च से ठीक पहले ये तकनीकी कमी कहां से आई. चलिए चंद्रयान-2 से जुड़ी तमाम बातें जानते हैं.
चंद्रयान के चार बाहुबली मिशन को करेंगे पूरा
मिशन की कुल लागत 976 करोड़ रुपये है. चंद्रयान-2 का वजन 3,877 किग्रा है. ये चंद्रयान-1 से करीब तीन गुना ज्यादा वजनी है. चंद्रयान-2 में 13 पेलोड शामिल हैं. इनमें 8 पेलोड ऑर्बिटर में... 3 लैंडर में...और 2 रोवर में रहेंगे. चंद्रयान-2 के 4 बाहुबली हैं जिनकी बदौलत चांद को फतह करने की तैयारी है. जीएसएलवी मार्क-3, आर्बिटर, लैंडर 'विक्रम' और रोवन 'प्रज्ञान'. यही वो चार बाहुबली हैं जिनके कंधों पर इंडिया को स्पेस का सुपर पावर बनाने की जिम्मेदारी है. इन्हीं की कामयाबी से तय होगी मिशन चंद्रयान-2 की सफलता. क्या काम है इन बाहुबलियों का और कैसे ये चांद को अपनी मुट्ठी में करेंगे. ये समझिए.
पहला बाहुबली - GSLV मार्क-3
जीएसएलवी मार्क-3 (#GSLVMkIII) वो रॉकेट है जो चंद्रयान को चांद की कक्षा तक पहुंचाएगा. इसे भारत का बाहुबली रॉकेट भी कहा जाता है. जीएसएलवी मार्क-3 का वजन 640 टन है. इसमें मौजूद है 3,877 किलो वजनी मॉड्यूल. थ्री स्टेज वाले इंजन से लैस है इस रॉकेट में पहले स्टेज में ठोस ईंधन काम करेगा. फिर इसमें लगी दो मोटर तरल ईंधन से चलेंगी. दूसरे स्टेज में इंजन तरल ईंधन से चलता है, जबकि तीसरा इंजन क्रायोजेनिक है.
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दूसरा बाहुबली - ऑर्बिटर
चंद्रयान-2 का पहला मॉड्यूल 2,379 किलो वाला ऑर्बिटर है. इसका काम है चांद की सतह का निरीक्षण करना. यह पृथ्वी और लैंडर विक्रम के बीच कम्युनिकेशन का काम भी करेगा. चांद की कक्षा में पहुंचने के बाद यह एक साल तक काम करेगा. ऑर्बिटर चांद की सतह से 100 किमी ऊपर चक्कर लगाएगा. इसके साथ 8 पेलोड भेजे जा रहे हैं, जिनके अलग-अलग काम होंगे. मसलन चांद की सतह का नक्शा तैयार करना, सिलिकॉन और टाइटेनियम जैसे खनिज का पता लगाना, सोलर रेडिएशन की तीव्रता को मापना, चांद की सतह की हाई रिजॉल्यूशन तस्वीरें खींचना और लैंडर की सॉफ्ट लैंडिंग के लिए जगह तलाशना. इसके अलावा ये ऑर्बिटर चांद के दक्षिणी ध्रुव पर पानी या बर्फ की मौजूदगी का पता लगाएगा और और चंद्रमा के बाहरी वातावरण को स्कैन करेगा.
तीसरा बाहुबली - लैंडर 'विक्रम'
करीब 1471 किलो वजनी लैंडर विक्रम का काम सबसे अहम है. इसरो का ये पहला मिशन है जिसमें लैंडर जा रहा है. रूस के मना करने के बाद ये लैंडर खुद इसरो ने बनाया है. इसका नाम भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक विक्रम साराभाई के नाम पर रखा गया है. विक्रम लैंडर ही चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करेगा यानी बिना किसी नुकसान के चांद की सतह पर उतरेगा. इसके साथ 3 पेलोड हैं जिनका काम है चांद की सतह के पास इलेक्ट्रॉन डेंसिटी को मापना. वहां के तापमान में होने वाले उतार-चढ़ाव और सतह के नीचे होने वाली हलचल की गति और तीव्रता का पता लगाना.
चौथा बाहुबली - रोवर 'प्रज्ञान'
27 किलो वजन वाला प्रज्ञान रोवर लैंडर के अंदर से चांद की सतह पर उतरेगा और करीब 1 सेंटीमीटर प्रति सेकंड की रफ्तार से चांद की सतह पर 500 मीटर तक चलेगा. ये चंद्रमा पर 14 दिन तक काम करेगा. इसके साथ 2 पेलोड जा रहे हैं जिनका मकसद है लैंडिंग साइट के पास तत्वों की मौजूदगी और चांद के चट्टानों और मिट्टी की मौलिक संरचना का पता लगाना. पेलोड के जरिए रोवर ये डेटा जुटाकर लैंडर को भेजेगा. जिसके बाद लैंडर यह डाटा इसरो तक पहुंचाएगा.
इस मिशन की क्या है अहमियत
करीब दो दशकों से भारत मिशन मून में जुटा है. कोशिश है चांद पर पहुंचकर उसे करीब से देखना. चांद की सतह को समझना. उसके वायुमंडल को महसूस करना. चांद पर सदियों से मौजूद अंतरिक्ष के रहस्यों की पड़ताल करना. वहां जीवन की संभावना को तलाशना. वहां दफन बेशकीमती कुदरती खजाने का पता लगाना.
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चांद के रहस्यों को जानने समझने के मकसद से ही 11 साल पहले भारत का चंद्रयान 2 अंतरिक्ष में गया था. जिसने वहां बर्फ की मौजूदगी का संकेत देकर पूरी दुनिया को हैरान कर दिया था पर तकनीकी वजहों से वो मिशन अधूरा रह गया था. भारत का लक्ष्य उसी अधूरे मिशन को मुकम्मिल अंजाम तक पहुंचाना है और उसके लिए चांद के साउथ पोल यानी दक्षिणी ध्रुव पर लैंड करने की योजना है. जो आज से पहले कभी कोई नहीं कर पाया.
चांद के दक्षिणी ध्रुव पर दो गड्ढे हैं. मंजिनस सी और सिमपेलियस एन. इन्हीं के बीच में चंद्रयान-2 लैंड करेगा. दरअसल चांद के दक्षिणी ध्रुव पर मौसमी और भौगोलिक परिस्थितियां इतनी विपरीत है कि इससे पहले कोई भी अंतरिक्ष यान वहां तक नहीं पहुंच पाया पर जो कोई नहीं कर पाया उसे हिंदुस्तान का चंद्रयान-2 कर दिखाने वाला है, इन चार बाहुबलियों की बदौलत.
भारत ने साल 2008 में भी की थी चांद को फतह करने की कोशिश
हालांकि भारत की ओर से चांद को फतह करने की पहली कोशिश साल 2008 में हुई थी. 11 साल पहले जब भारत का पहला चंद्रयान अंतरिक्ष के लिए रवाना हुआ तो हिंदुस्तान का नाम दुनिया के उन गिने चुने देशों में शामिल हो गया. जिन्हें स्पेस साइंस का सुपर पावर कहा जाता है. चंद्रयान-1 भारत का पहला इंटरप्लेनेटरी मिशन था. उससे पहले अमेरिका, रूस और चीन जैसे देशों के अंतरिक्ष यान चांद पर पहुंचे थे. इसलिए चंद्रयान-1 पर पूरी दुनिया की नजर थी. जिसे इसरो के वैज्ञानिकों ने पूरी कामयाबी के साथ चांद की कक्षा में पहुंचा दिया.
चंद्रयान-2 को एम अन्नादुरई की देखरेख में बनाया गया था. चंद्रयान-1 को भी श्रीहरिकोटा स्पेस सेंटर से लॉन्च किया गया. 8 नवंबर 2008 को चंद्रयान-1 चांद की कक्षा में दाखिल हुआ. चंद्रयान-1 को भेजने का मकसद था चांद की सतह पर पहुंचकर उसकी तस्वीरें लेना. मिट्टी और चट्टान के नमूने इकट्ठा करना. वहां के मौसम और भौगोलिक हालात का पता लगाना और उसके बिनाह पर वैज्ञानिक रिसर्च के लिए आंकड़े जुटाना. चंद्रयान-1 का वजन था 1380 किलोग्राम. इसे 2 साल तक अंतरिक्ष में काम करना था पर 312 दिन के बाद ही काम करना बंद कर दिया.
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दरअसल ईंधन के रिसाव और खराब मौसम की वजह से ये मिशन अधूरा रह गया. बताया जाता है कि चांद पर अत्यधिक तापमान चंद्रयान-1 के आड़े आ गया. ऐसा अनुमान लगाया गया था कि चंद्रमा पर 75 डिग्री सेल्सियस के आसपास तापमान होगा पर ये अनुमान गलत निकला. लक्ष्य था कि चंद्रयान-1 चंद्रमा की कक्षा में 100 किमी की रेंज में स्थापित किया जाएगा पर वहां तापमान ज्यादा होने की वजह से ये दूरी बढ़ाकर 200 किलोमीटर करनी पड़ी.
स्टार सेंसर गर्मी के कारण 16 मई 2009 को फेल हुआ मिशन
दरअसल चंद्रयान-1 का महत्वपूर्ण स्टार सेंसर गर्मी के कारण 16 मई 2009 को फेल हो गया. इससे चांद पर होने वाले कई बड़े परीक्षण भी खतरे में पड़ गए. स्टार सेंसर यान की ऊंचाई मापने का काम करता है. इसके अलावा ये सेंसर चंद्रमा से आकाशगंगा में तारों पर नजर रखने के लिए यान की सही पोजीशन भी तय करता है. कहा तो ये भी जाता है कि लॉन्च से एक दिन पहले ही ईंधन लोडिंग ऑपरेशन के दौरान लीक हुआ था. बावजूद इसके रिपयेरिंग के बाद यान को चांद पर भेजा गया. खास बात ये रही कि कमजोर स्थिति में होने के बावजूद चंद्रयान-1 ने चांद पर बर्फ के होने की संभावना का पता लगाया. जिसके बाद दुनिया भर में बैक टू मून यानी चांद पर दोबारा जाने की होड़ मची.
दो साल के लिए निर्धारित चंद्रयान-1 ने एक साल से भी कम की मियाद में काम करना बंद कर दिया पर ये असफलता भी वैज्ञानिकों के लिए बड़ी सीख बन गई. चंद्रयान-1 के प्रदर्शन के आधार पर ही वैज्ञानिकों ने चंद्रयान-2 को ज्यादा आधुनिक तकनीक और ताकत से लैस किया है.. जो अब चांद पर नया इतिहास रचने के लिये तैयार है.