बीती सदी में 90 के दशक में एक हॉलीवुड फिल्म आई थी 'डिमोलिशन मैन', जिसमें सिल्वेस्टर स्टॉलन, वैस्ली स्नाइप्स और सैंड्रा बुलक्स ने केंद्रीय भूमिका निभाई थीं. इस विज्ञान फंतासी फिल्म में दुर्दांत अपराधी साइमन फीनिक्स (Wesley Snipes) के बंधकों को छुड़ाने के नाकाम अभियान के बाद पुलिस अधिकारी जॉन स्पार्टन (Sylvester Stallone) भी कठघरे में आ जाता है. बतौर सजा साइमन फीनिक्स और जॉन स्पार्टन को क्राइजोनिक फ्रीज करने की सजा सुनाई जाती है. यानी उन्हें तरल नाइट्रोजन (Nitrogen) में कई सौ माइनस डिग्री तापमान पर फ्रीज कर दिया जाता है. क्लाइमेक्स में जॉन साइमन को मारने के लिए इसी तरल नाइट्रोजन का इस्तेमाल करता है. पहले जॉन साइमन को फ्रीज करता है, फिर उसके फ्रीज पुतले को चूर-चूर कर देता है. अब इसी तकनीक का इस्तेमाल चीन (China) प्रायोगिक तौर पर वुहान (Wuhan) में कर रहा है, क्योंकि बढ़ती कोरोना मौतों (Corona Deaths) के अंतिम संस्कार के लिए श्मशान गृहों और कबिस्तानों में कई-कई हफ्तों की लाइन लग रही है. ऐसे में शी जिनपिंग (Xi Jinping) प्रशासन ने आइस बेरियल तकनीक से कोरोना लाशों को ठिकाने लगाने की योजना पर काम शुरू किया है.
लाशों को तरल नाइट्रोजन में फ्रीज कर बनाया जा रहा उनका पाउडर
असुविधाजनक सत्य के नाम पर चीन और सत्तारूढ़ चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के बारे में फर्स्ट हैंड जानकारियां देने वाली जेनिफर जेंग ने इसका खुलासा किया है. जेंग के मुताबिक कोविड-19 मामलों में जबर्दस्त उछाल और हर रोज दसियों हजार हो रही मौतों के अंतिम संस्कार से निपटने के लिए आइस बेरियल तकनीक पेश की है. इस प्रकार का अंतिम संस्कार परीक्षण के आधार पर वुहान शहर में चलाया गया है. इसमें लाशों को तरल नाइट्रोजन में माइनस 196 डिग्री पर जमाया जाता है और फिर पाउडर के रूप में बदल दिया जाता है. मृतक के परंपरागत दाह संस्कार की तुलना में यह प्रक्रिया बहुत तेज गति से पूरी होती है. जेंग के इस खुलासे पर एक ट्विटर यूजर ने कहा कि आइस बेरियल तकनीक संबंधित लेख मार्च 2022 में प्रकाशित हुआ था, तो जेनिफर ज़ेंग ने कहा कि वीडियो सितंबर 2020 में बनाया गया था. यानी कोरोना महामारी के पहले चरण के दौरान ही चीन ने इसकी तैयारी शुरू कर दी थी.
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पहले भी इस तकनीक का हुआ है इस्तेमाल
गौरतलब है कि यह पहली बार नहीं है जब मृत शरीर का अंतिम संस्कार करने के लिए आइस बेरियल तकनीक का इस्तेमाल किया गया है. 2016 में एक स्वीडिश और एक आयरिश कंपनी अंतिम संस्कार के नए-नए विकल्पों पर काम कर रही थी, उन दिनों इन्हीं कंपनियों ने इस तकनीक को ईजाद किया था. अंतिम संस्कार से जुड़ी इस विवादास्पद तकनीक में मृत शरीर को जमाने और फिर चूर-चूर करने के लिए तरल नाइट्रोजन का उपयोग किया जाता है. आइस बरेयिल तकनीक को उस वक्त प्रॉमिशन नाम दिया गया था. न्यूयॉर्क पोस्ट के मुताबिक प्रॉमिशन के जरिये मृत शरीर को एक कस्टमाइज्ड मशीन में डालते थे. फिर मशीन ऑटोमेटिक तरीके से ताबूत के ढक्कन को हटा लाश के भीतर मौजूद पानी को वाष्प बना देती है. फिर तरल नाइट्रोजन के जरिये लाश को फ्रीज करने के बाद उसे चूर-चूर यानी पाउडर बना दिया जाता है. यही नहीं, मृत शरीर का पाउडर लगभग एक साल मिट्टी बन जाता था.
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अंतिम संस्कार में भारी मददगार साबित हो सकती है तकनीक
लाश को फ्रीज कर सुखाने की तकनीक प्रॉमिशन में प्रोमेटर नामक एक प्रणाली शामिल रहती है, जिसमें मृत शरीर शून्य से 18 डिग्री सेल्सियस तक जम जाता है. फिर इसे तरल नाइट्रोजन में डूबाया जाता है और शरीर फिर भी जमा रहता है क्योंकि तरल नाइट्रोजन हानिरहित गैस में वाष्पित हो चुकी होती है. फिर इस जमे मृत शरीर को कंपन प्रक्रिया के जरिये कार्बनिक पाउडर में बदल दिया जाता है. जाहिर है चीन अब इसी तकनीक का इस्तेमाल कोरोना से मरने वाले लोगों के अंतिम संस्कार में कर रहा है. गौरतलब है कि सख्त जीरो कोविड पॉलिसी के खिलाफ आम जनता के विरोध के दबाव में जिनपिंग प्रशासन ने तेजी से कोरोना प्रतिबंधों में ढील देनी शुरू कर दी. परिणामस्वरूप कोरोना मामलों में न सिर्फ तेज उछाल आया, बल्कि मृतक संख्या भी दसियों हजार रोजाना तक पहुंच चुकी है. श्मशान घाटों पर इस फेर में भारी दबाव आ गया है और कोरोना मृतकों के अंतिम संस्कार में परिजनों को हफ्तों इंतजार करना पड़ रहा है. ऐसे में आइस बरेयिल तकनीक अंतिम संस्कार में भारी मददगार साबित हो सकती है.
HIGHLIGHTS
- कोरोना महामारी के जनक वुहान शहर में चल रहा है ट्रायल
- इस तकनीक में लाश को तरल नाइट्रोजन में फ्रीज किया जाता है
- फिर जमी लाश को चूर-चूर कर पाउडर में बदल दिया जाता है