चांद हमेशा से ही इंसान के लिए एक उत्सुकता का विषय रहा है. खासकर हम भारतीयों के लिए तो यह विज्ञान के मायनों से भी परे है.....हमारे कितने ही कवियों ने इसको लेकर प्रेम रस में डूबी हुईं कविताएं लिखीं. लेकिन अब वक्त बदल रहा है इंसान तकनीकी के दम पर चांद को मात देने पर तुला है. अब जो हम आपको बताने वाले हैं उसे सुनकर आप अचरज में पड़ जाएंगे... लेकिन पहले जरा सोचिए कैसा हो अगर रात के वक्त काली अंधेरी रात न हो सूरज ढलते ही एक कृत्रिम चांद आपकी सेवा में आसामान में प्रकाशित हो जाए और जिसकी रोशनी इतनी होगी कि सरकार रोड़ों से स्ट्रीट लाइट तक हटवाले.. क्योंकि फिर उसकी जरूरत ही नहीं होगी.
जी हां आपको बतादें हमारा पड़ोसी मुल्क चीन एक ऐसी ही तकनीक पर सालों से काम कर रहा है और उसके दावे के अनुसार वह इसे 2020 तक पूर्णता इस्तेमाल में भी लेना शुरू कर देगा. चीनी कंपनी ने कुछ समय पहले एक घोषणा की थी कि वह एक नकली चांद को चीन के आसमान पर भेजने की योजना बना रही है, जिससे रात में चीन का आसमान चांदनी रात से गुलज़ार रहेगा.
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चीन के अख़बार पीपल्स डेली के अनुसार चेंगडु इलाक़े में स्थित एक निजी एयरोस्पेस संस्थान में अधिकारियों ने कहा कि वे साल 2020 तक पृथ्वी की कक्षा में एक चमकदार सैटेलाइट भेजने की योजना बना रहे हैं, जिससे स्ट्रीट लाइट लगाने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी. इस ख़बर के सामने आने के बाद दुनियाभर के वैज्ञानिकों के बीच खलबली मच गई और कई तरह की प्रतिक्रियाएं सामने आने लगीं.
क्या योजना है यह
अभी तक इस योजना के बारे में बहुत अधिक जानकारियां सार्वजनिक नहीं हुई हैं और जितनी भी जानकारी सामने आई है उन पर भी कई तरह के सवाल उठाए जा रहे हैं. सबसे पहले पीपल्स डेली ने इस ख़बर को प्रकाशित किया था. इसमें उन्होंने वु चेनफ़ेंग चेंगडु जो एयरोस्पेस साइंस इंस्टिट्यूट माइक्रोइलेक्ट्रॉनिक सिस्टम रिसर्च इंस्टिट्यूट के चेयरमैन हैं का बयान जारी किया था.
जिसमें वु ने कहा था कि इस योजना पर पिछले कुछ सालों से काम चल रहा है और अब यह अपने अंतिम चरण पर है. साल 2020 तक इस सैटेलाइट को भेजने की योजना है. चाइना डेली अख़बार ने वु के हवाले से लिखा है कि साल 2022 तक चीन ऐसे तीन और सैटेलाइट भेज सकता है. हालांकि किसी भी रिपोर्ट में यह नहीं बताया गया है कि क्या इस योजना के पीछे सरकारी हाथ है या नहीं.
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ऐसे काम करेगा नकली चांद
चाइना डेली के अनुसार यह नकली चांद एक शीशे की तरह काम करेगा, जो सूर्य की रौशनी को प्रतिबिंबित कर धरती पर भेजेगा. यह धरती से 500 किलोमीटर की धूरी पर स्थित होगा, लगभग इतनी ही दूरी पर अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन (ISS) भी स्थित है. इसके मुक़ाबले धरती के असली चांद की दूरी तीन लाख 80 हज़ार किलोमीटर है.
हालांकि रिपोर्टों में यह नहीं बताया गया है कि यह चांद दिखने में कैसा होगा, लेकिन वु के हवाले से इतना ज़रूर बताया गया है कि इस चांद की रौशनी लगभग 80 किलोमीटर के बीच फैली होगी और यह असली चांद के मुक़ाबले 8 गुना अधिक रौशनी देगा. वु के अनुसार इस नक़ली चांद की रौशनी को नियंत्रित भी किया जा सकेगा.
पैसे बचाएगा यह चांद
चेंगडु एयरोस्पेस के अधिकारियों की मानें तो इस नक़ली चांद का मक़सद पैसा बचाना है. जी हां, यह बात सुनने में भले ही अजीब लगे, लेकिन अधिकारियों का कहना है कि जितना खर्च स्ट्रीट लाइट पर आता है उसकी तुलना में यह चांद सस्ता पड़ेगा.
चाइना डेली ने वु के हवाले से लिखा है कि नक़ली चांद से 50 वर्ग किलोमीटर के इलाक़े में रौशनी करने से हर साल बिजली में आने वाले खर्च में 1.2 अरब युआन यानी 17.3 करोड़ डॉलर बचाए जा सकते हैं.
इसके अलावा प्राकृतिक आपदा जैसे भूकंप या बाढ़ जैसे हालात में जब ब्लैक आउट हो जाता है, उस समय भी यह नक़ली चांद रौशनी दे सकता है.
पड़ेगा बुरा असर
हार्बिन इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी के निदेशक कैंग वीमिन ने पीपल्स डेली से कहा है कि यह नक़ली चांद धुंधला सा दिखेगा और जानवरों के दैनिक कामों पर इसका असर नहीं पड़ेगा. इस खबर के सामने आने के बाद चीन में सोशल मीडिया पर इस चांद के बारे में काफी चर्चाएं और चिंताएं लोगों ने शेयर कीं.
कुछ लोगों का कहना है कि इस चांद की वजह से रात को जागने वाले जानवरों पर असर पड़ेगा. वहीं कुछ लोग मानते हैं कि चीन में पहले से ही रौशनी से जुड़ा प्रदूषण है और इस चांद से इसमें वृद्धि होगी.
इंटरनेशनल डार्क स्काई असोसिएशन में पब्लिक पॉलिसी के निदेशक जॉन बैरेनटीन ने फॉर्ब्स को बताया, ''इस चांद की वजह से निश्चित तौर पर रात के वक़्त रौशनी बढ़ेगी जिस वजह से पहले से ही रौशनी से जुड़े प्रदूषण का सामना कर रहे चेंगडु वासियों को और तकलीफ़ होगी. यहां रहने वाले लोग पहले ही रात के वक़्त गैरज़रूरी रौशनी से परेशान हैं.''
डॉक्टर सिरिओटी ने बीबीसी से कहा कि अगर इस नक़ली चांद की रौशनी बहुत अधिक होगी तो इसका असर प्रकृति पर पड़ेगा और जानवर इसका शिकार बनेंगे.
वे कहते हैं, ''इसके उलट अगर इसकी रौशनी बहुत ज़्यादा नहीं होती है तो सवाल उठेगा कि आख़िर इसे लगाने की ज़रूरत ही क्या है''
ये पहली कोशिश नहीं है
इससे पहले भी रातों को रौशन करने के लिए इस तरह के नक़ली चांद बनाने की योजनाएं बन चुकी हैं. साल 1993 में रूस के वैज्ञानिकों ने 20 मीटर चौड़ा एक रिफ़्लेक्टर मिर स्पेस स्टेशन की तरफ भेजा था, इस रिफ़्लेक्टर का ऑर्बिट 200 किलोमीटर से 420 किलोमीटर के बीच था. नाम्या 2 नामक एक सैटेलाइट धरती के 5 किलोमीटर के व्यास पर रौशनी के लिए भेजा गया था. लेकिन यह सैटेलाइट जलकर ख़त्म हो गया था.
इसके बाद 90 के दशक के अंत में नाम्या का एक बड़ा मॉडल बनाने की कोशिश की गई लेकिन यह भी नाकाम रही. अब यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा कि आखिर इंसान की बढ़ती इन इच्छाओं का भविष्य में इंसानी जन-जीवन पर क्या असर पड़ेगा.
Source : News Nation Bureau