जिस तरह हर गुजरते दिन के साथ विज्ञान तरक्की कर रहा है, अनंत ब्रह्मांड (Universe) से जुड़े तमाम रहस्यों का जवाब भी मानव जाति के सामने आ रहा है. ऐसी ही एक पहेली थी कि बौनी आकाशगंगा (Dwarf Galaxy) में सक्रिय तारों की संरचनाएं कैसे होती हैं... अब भारतीय खगोलविदों (Astrophysicist) के नेतृत्व में एक दल ने इसके रहस्य से पर्दा उठाने में सफलता हासिल कर ली है. भारत, अमेरिका और फ्रांस के खगोलविदों ने हालिया स्टडी में ऐसी आकाशगंगा (Milky Way) में नए तारों के निर्माण की प्रक्रिया को देखा है. उन्होंने पाया है कि किस तरह बौनी आकाशगंगा के बाहरी इलाके में तारों का निर्माण होता है और फिर वह सफर तय कर अपने द्रव्यमान व चमक से उसके विकास में योगदान देती हैं. गौरतलब है कि पिछले दो दशक से अंतरिक्ष विज्ञानी हाई-क्वॉलिटी टेलीस्कोप की मदद से बड़ी आकाशगंगा का अध्ययन कर रहे थे. अब वह स्टडी में कह रहे हैं कि अनंत ब्रह्मांड की विशाल आकाशगंगा कई बौनी आकाशगंगा से घिरी हुई हैं. बौनी आकाशगंगा के इस अध्ययन को पुणे स्थित इंटर यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स के प्रोफेसर कनक साहा और तेजपुर यूनिवर्सिटी के इंस्पायर फैलोशिप से सम्मानित अंशुमान बोर्गोहन ने अंजाम दिया.
क्या होती हैं बौनी आकाशगंगा
छोटी आकाशगंगा को डॉफ गैलेक्सी कहते हैं, जो बड़ी आकाशगंगा की तुलना में कहीं छोटी होती हैं. बौनी आकाशगंगा को अमूमन इनके मध्य में केंद्रित तारों की संरचना से पहचाना जाता है. इसे ऐसे समझें अगर बड़ी आकाशगंगा में 200 से 400 बिलियन तारें होते हैं, तो बौनी आकाशगंगा में 1000 से लेकर दसियों बिलियन तारे होते हैं. इन्हें डॉर्फ गैलेक्सी या बौनी आकाशगंगा कहते हैं, जो बड़े मैगलेनिक क्लाउड होते हैं, जिसमें 30 बिलियन तारे तक हो सकते हैं. बौनी आकाशगंगा में एक सितारा किनारे पर जन्म लेता है. फिर यहां से वह धीरे-धीरे आकाशगंगा के केंद्र में जाने लगता है. सितारा जब भीतर की ओर बढ़ता है तो इसके द्रव्यमान और प्रकाश में बढ़ोतरी होती है.
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बौनी आकाशगंगा की रिसर्च
इस खोज को करने वाले दल के मुताबिक लगभग 150 मिलियन पुरानी आकाशगंगा के किनारे से उन्हें कुछ सिग्नल मिले, जिनसे पता चला कि दृश्यता की सीमा से परे वहां सितारों का निर्माण हो रहा है. यह खोज सबसे पहले भारत की पहली एस्ट्रोसेट स्पेस ऑब्जर्वेटरी के अल्ट्रा वॉयलेट इमेजिंग टेलीस्कोप के जरिये की गई. इससे यह समझने में मदद मिली कि गैलेक्सी का विकास कैसे होता है? अंतरिक्ष विज्ञानियों ने पाया कि लगभग 1.5 से 3.9 बिलियन प्रकाश वर्ष दूर ब्लू कॉम्पैक्ट डॉर्फ गैलेक्सी के बाहरी हिस्से से बेहद धुंधला अल्ट्रा वॉयलेट प्रकाश उत्सर्जित हो रहा है. यह खोज आकाशगंगा की संरचना को समझने के लिहाज से एक महत्वपूर्ण खोज है. हालांकि यह इस दिशा में अभी एक छोटा कदम ही है, लेकिन इसने भारी उम्मीदें जगा दी हैं, जिसके जरिये आकाशगंगा के विकास के रहस्य से आने वाले समय में परदा उठाया जा सकेगा.
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यह उम्मीद जगी है इस खोज से
अंतरिक्ष विज्ञानियों को इस बात के सबूत मिले हैं कि बौनी आकाशगंगाएं बाहर से पदार्थ जमा कर रही हैं. टीम ने 11 नीली बौनी गैलेक्सी को देखा जो पृथ्वी से 1.3 अरब से 2.8 अरब प्रकाश वर्ष दूर है. ऐसी फीकी और नीली आकाशगंगा का पता लगाना बेहद मुश्किल होता है, क्योंकि वह अनंत आकाश में बहुत दूर स्थित होती हैं. हालांकि उनके भीतर का द्रव्यमान एक लाख सूर्य के बराबर है. इस खोज से पता चला कि सितारे आकाश गंगा की परिधि पर बनते हैं. फिर एक विशिष्ट सीमा के अंदर आकाशगंगा में जाते रहते हैं, जिससे इनका विकास होता है. इससे संकेत मिलते हैं कि विशालकाय गैलेक्सी बहुत सारी बौनी आकाशगंगा से घिरी हुई हैं. इनका आकार तय नहीं है और इनमें अक्सर तारे बनते रहते हैं. उनका द्रव्यमान मिल्की वे आकाशगंगा से 50 गुना तक कम हो सकता है. हालांकि अभी यह एक पहेली है कि बौनी और बड़ी आकाशगंगा अपने सितारों को कैसे इकट्ठा करती हैं.
HIGHLIGHTS
- बौनी आकाशगंगा में 30 बिलियन तक तारे होते हैं
- बड़ी आकाशगंगा में 400 बिलियन तक तारे होते हैं
- आकाशगंगा की इस खोज से उठेंगे कई रहस्य से पर्दे