उपचारात्मक उद्देश्यों के लिए उपयोग किए जाने वाले चिकित्सा उपकरण जैसे पेसमेकर, इंट्रा-ऑक्यूलर लेंस, हार्ट वाल्व, कूल्हे और अन्य मेडिकल प्रत्यारोपण को इंफेक्शन से मुक्त बनाने के लिए आईआईटी दिल्ली ने एक महत्वपूर्ण खोज की है. घुटने के प्रत्यारोपण, चिकित्सा कैथेटर और इस तरह के अन्य प्रत्यारोपण इस खोज के अंतर्गत आते हैं. दरअसल शल्यचिकित्सा से शरीर के अंदर इंप्लांट लगाए जाते हैं. लंबे समय तक उनका इस्तेमाल होता है. कई बार इनसे होने वाले इंफेक्शन या संक्रमण के कारण दुनिया भर में रोगियों की मृत्यु होती है. साथ ही ऐसे इंफेक्शन के कारण अस्पताल में भर्ती भी होना पड़ता है.
इंप्लांट से जुड़े संक्रमणों की समस्या का मुकाबला करने के लिए आम रणनीति के तहत उच्च खुराक वाली एंटीबायोटिक दवाओं का उपयोग किया जा रहा है. लेकिन एंटीबायोटिक निरंतर इस्तेमाल से रोगाणुओं की प्रतिरोधी पीढ़ी पनपने लगती है. इसका एक और नुकसान एंटीबायोटिक खुराक से होने वाली थकावट भी है.
आईआईटी दिल्ली के मेटिरियल सांइस व इंजीनियरिंग विभाग की प्रोफेसर संपा साहा के नेतृत्व में अनुसंधान समूह द्वारा इंफेक्शन रोकने के लिए एक अध्ययन किया गया है. अनुसंधान दल के सदस्यों में शैफाली, प्रो. नीतू सिंह और अक्षय जोशी शामिल हैं.
आईआईटी के मेटिरियल सांइस और इंजीनियरिंग विभाग ने एक गैर-रिसाव योग्य रोगाणुरोधी कोटिंग का प्रस्ताव दिया है. प्रत्यारोपण से संबंधित संक्रमण के खतरे से निपटने के लिए आईआईटी दिल्ली के इस उपाय व अध्ययन को एक अत्यधिक प्रतिष्ठित जरनल 'मेटिरियल सांइस और इंजीनियरिंग सी' में प्रकाशित किया गया है.
प्रोफेसर संपा साहा के मुताबिक, आईआईटी की रिसर्च टीम ने एक बायोडिग्रेडेबल 3 डी प्रिंटेड पॉलीमेरिक इम्प्लांट बनाया. यह एंटी इनफेक्टिव पॉलीमर ब्रश के साथ मॉडिफाइड किया गया है.
उन्होंने बताया कि यह पूरी तरह से बायोडिग्रेडेबल पॉलीस्टरों का मिश्रण है. यह एक प्रकार के एसिड का पॉलिएस्टर है. एक ऐसा प्राकृतिक एसिड जो टमाटर, अंगूर और कच्चे आम और पॉलीएलैक्टिक एसिड में पाया जाता है.
Source : IANS