आईआईटी मद्रास ने खून की नलियों के स्वास्थ्य का हाल जानने और उम्र का असर समझने के लिए एक गैर-शल्य उपकरण बनाया है। इससे हृदय रोगों की शुरूआती जांच बहुत आसानी से होगी। आर्टसेंस नामक यह उपकरण इस तरह बना है कि जो विशेषज्ञ नहीं हैं वे भी सामान्य चिकित्सा जांच में आसानी से इसका उपयोग कर खून की नलियों के स्वास्थ्य का हाल जान सकते हैं।
इस उपकरण की रिपोर्ट के आधार पर रोगियों को भविष्य में सचेत रहने की सलाह दी जा सकती है। डिवाइस में एक प्रोपराइटरी नॉन-इमेजिंग प्रोब और एक इंटेलिजेंट कंप्यूटिंग प्लेटफॉर्म है और इसका विकास आईआईटी मद्रास के हेल्थकेयर टेक्नोलॉजी इनोवेशन सेंटर (एचटीआईसी) ने किया है।
आईआईटी मद्रास के मुताबिक डिवाइस का परीक्षण 5,000 से अधिक मनुष्यों पर किया जा चुका है। इस टेक्नोलॉजी को यू.एस., यूरोपीय संघ और भारत में पांच युटिलिटी पेटेंट, 10 डिजाइन पेटेंट प्राप्त हैं और विभिन्न अधिकार क्षेत्रों में 28 पेटेंट मिलने वाले हैं।
आईआईटी का कहना है कि यह प्रोडक्ट व्यापक परीक्षण के बाद टेक्नोलॉजी ट्रांस्फर और व्यावसायीकरण के लिए तैयार है। आईआईटी मद्रास की टीम ने इसके उपयोग से सालाना एक लाख से अधिक वैस्कुलर स्क्रीनिंग (रक्त वाहिकाओं की आरंभिक जांच) का लक्ष्य रखा है।
इस उपकरण की टेक्नोलॉजी और कार्यक्षेत्र से प्राप्त परिणाम अब तक 100 से अधिक वैज्ञानिक सहकर्मी-समीक्षित प्रकाशनों में छप चुके हैं। नवीनतम शोध पत्र का प्रकाशन एक प्रतिष्ठित, पीयर-रिव्यू जर्नल ऑफ हाइपरटेंशन और अमेरिकन जर्नल ऑफ फिजियोलॉजी-हार्ट एंड सकुर्लेटरी फिजियोलॉजी में किया गया।
आर्टसेंस की खासियत बताते हुए आईआईटी मद्रास के इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग विभाग में सहायक प्रोफेसर डॉ. जयराज जोसेफ ने कहा, यह बिल्कुल गैर-शल्य प्रक्रिया से जरूरी माप लेता है और सटीक परिणाम देता है। आर्टसेंस की मदद से बड़ी आबादी के लिए रक्त वाहिकाओं की आयु का आसानी से आकलन किया जा सकता है। विशेष कर क्लिनिक और अन्य स्थानों जैसे जिम और सामान्य स्वास्थ्य केंद्र दोनों जगहों पर संभव होगा।
भारत, अमेरिका और यूरोप में आर्टसेंस के क्लिनिकल अध्ययन को मंजूरी मिल गई है। एम्स नई दिल्ली में बड़ा क्लिनिकल अध्ययन चल रहा है। नीदरलैंड में रेडबौड यूनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर के वैज्ञानिक इस उपकरण का उपयोग कर धमनियों की उम्र, शारीरिक श्रम (अभाव) और दिल की बीमारियों के बीच संबंध समझने का प्रयास कर रहे हैं और एम्स नई दिल्ली के शोधकर्ता इसकी मदद से विभिन्न बीमारियों में धमनियों की उम्र बढ़ने के शारीरिक आधार का अध्ययन करने और समझने में संलग्न हैं।
इस प्रोजेक्ट में सहयोगी रहे प्रो. डिक थिजसेन, रेडबौड यूएमसी, नीदरलैंड ने उपकरण की क्लिनिकल उपयोगिता बताते हुए कहा, हम ने हाल के क्लिनिक अध्ययनों में 600 से अधिक प्रतिभागी मनुष्यों पर आर्टसेंस डिवाइस का उपयोग किया है। यह पोर्टेबल डिवाइस उपयोग करना आसान है। इसकी मदद से बहुत व्यापक अनुसंधान अध्ययन कर खून की नलियों की उम्र बढ़ने की सटीक जानकारी मिल सकती है। खून की नलियों की सेहत का आसानी से पता लगाने वाले इस डिवाइस से क्लिनिकल काम आसान होगा और इसे व्यापक स्तर पर अपनाया जा सकेगा।
आईआईटी मद्रास में एचटीआईसी के प्रभारी फैकल्टी डॉ. मोहनशंकर शिवप्रकाशम ने बताया, आर्टसेन्स पोर्टेबल है और इसका उपयोग करना भी आसान है। सबसे बड़ी बात कि यह स्वदेशी है और अब पूरी दुनिया में इसे मान्यता मिल रही है। इससे यह संभावना बनती है कि यह उपकरण सस्ता होगा और अधिक से अधिक लोगों की जांच सुनिश्चित करेगा। शुरूआती दौर में ही बीमारियों की रोकथाम करने में लगे संगठन और लोगों के लिए यह एक नए दौर की शुरूआत है।
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Source : IANS