अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा (NASA) का मंगल मिशन मार्स पर्सिवरेंस (Mars Perseverance Rover) रोवर 18 फरवरी रात ढाई बजे लाल ग्रह की सतह पर सफलता के साथ उतार चुका है. इस मिशन से अमेरिका और नासा का नाम तो ऊंचा हो ही रहा है, लेकिन इससे दुनिया को भी कई फायदे होने वाले हैं. खासकर हम भारतीयों के लिए भी, क्योंकि भारत इकलौता देश है और इसरो पहली स्पेस एजेंसी, जिसका मंगल मिशन पहली बार में ही सफल रहा था. ऐसे में नासा के मार्स पर्सिवरेंस रोवर से भारत को भी तमाम फायदा होगा. आइए जानते हैं इन फायदों के बारे में...
गौरतलब है कि करीब सात पहले 30 सितंबर 2014 को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन और अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा के बीच एक समझौता हुआ था. इस समझौते में धरती और मंगल ग्रह के मिशन साथ में मिलकर करने की बात हुई थी. उस समय इसरो चीफ थे डॉ. के. राधाकृष्णन और नासा के प्रमुख थे चार्ल्स बोल्डेन. वो उस समय की बात है जब नासा ने मंगल पर अपना मैवेन और इसरो ने मंगलयान भेजा था. टोरंटो में इंटरनेशनल एस्ट्रोनॉटिकल कांग्रेस में शामिल होने गए दोनों साइंटिस्ट अलग से मिले. दोनों ने एक चार्टर पर हस्ताक्षर किया था. इसके बाद नासा और इसरो ने मिलकर नासा-इसरो मार्स वर्किंग ग्रुप बनाया था. मकसद था दोनों देशों की स्पेस एजेंसियों के बीच आपसी सहयोग को बढ़ावा देना. साथ ही मंगल ग्रह के भविष्य के प्रोजेक्ट्स में साथ मिलकर काम करना या फिर एकदूसरे से जरूरी डेटा और जानकारियां शेयर करना.
इसके अलावा नासा-इसरो सिंथेटिक अपर्चर राडार मिशन के लिए आपसी समझौता हुआ. इसके तहत इसरो और नासा 2022 में इस सैटेलाइट को लांच करने जा रहे हैं, जो पूरी दुनिया को हर प्रकार के प्राकृतिक आपदाओं से बचाएगा. यानी आपदा आने से काफी पहले सूचना दे देगा. ये दुनिया का सबसे महंगा अर्थ ऑब्जरवेशन सैटेलाइट होगा. इसकी संभावित लागत करीब 10 हजार करोड़ रुपए आएगी. इससे दोनों देशों को वास्तविक लाभ होंगे. जहां तक बात रही मार्स वर्किंग ग्रुप की तो इसके तहत दोनों देश अपने-अपने मार्स मिशन से मिलने वाली जरूरी जानकारियां शेयर करेंगे. जैसे- मार्स पर्सिवरेंस रोवर मंगल पहुंचा है. भारत अपने मंगलयान-2 की तैयारी कर रहा है. माना जा रहा है इस बार इसरो मंगलयान-2 में मार्स पर लैंडर भेजेगा.
अगर इसरो मंगलयान-2 लांच करेगा तो उसे नासा के मार्स पर्सिवरेंस रोवर से मिलने वाली जानकारियां काम आएंगी. मंगल ग्रह के मौसम, वातावरण, वायुमंडल आदि में हो रहे बदलावों की जानकारी मिलेगी. साथ ही नासा इसरो के साथ मिलकर मंगलयान-2 की टेक्नोलॉजी को अत्याधुनिक बना सकता है. इससे भारत और इसरो की मंगल ग्रह पर लैंडर उतारने की ख्वाहिश पूरी हो सकती है. मार्स वर्किंग ग्रुप से फायदा ये भी होगा कि दोनों देश और उनकी स्पेस एजेंसियां आपस में एकदूसरे के मंगल मिशन के डेटा शेयर करेंगे. इसके अलावा 1993 में एक इंटरनेशनल मार्स एक्सप्लोरेशन वर्किंग ग्रुप भी बनाया गया था. जिसमें दुनिया की सारी स्पेस एजेंसियां शामिल हैं. इस ग्रुप की मीटिंग हर दो साल पर होती है.
अगर भारत को 2024 में मंगलयान-2 की संभावित लांचिंग करनी है तो उसे नासा के मार्स पर्सिवरेंस रोवर से मिले आंकड़ों की जरूरत पड़ेगी. अभी तीन साल बाकी हैं. तब तक नासा का मार्स पर्सिवरेंस रोवर नासा को काफी जानकारियां उपलब्ध करा चुका होगा. ऐसे में उन जानकारियों में से भारत अपने काम की जानकारी नासा से मांग सकता है. इससे भारत का मिशन मंगल न सिर्फ सटीक होगा, बल्कि उसकी तैयारी भी पर्सिवरेंस से मिले आंकड़ों के आधार पर वैज्ञानिक दक्षता के साथ की जा सकेगी.
Source : News Nation Bureau