NASA के रोवर ने भेजी मंगल ग्रह पर हवाओं के चलने की आवाजें

मंगल ग्रह पर हवाओं के चलने की आवाजें बिल्कुल वैसी ही हैं, जैसे कि धरती पर आंधी-तूफान के वक्त हवाओं के बहने की आवाजें और लेजर स्ट्राइक्स की आवाज दिल के धड़कने जैसी है.

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Nihar Saxena
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पृथ्वी जैसा वातावरण है मंगल ग्रह का. ( Photo Credit : न्यूज नेशन)

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मंगल (Mars) ग्रह पर नासा के पर्सिवरेंस रोवर (Perseverance Rover) का काम जारी है. हाल ही में इसने अपने सुपरकैम इंस्ट्रमेंट से रिकॉर्ड की गई हवाओं के चलने की आवाजें धरती पर भेजी हैं. टूलूज में फ्रांसीसी अंतरिक्ष एजेंसी के संचालन केंद्र में भेजे गए दूसरे ऑडियो संदेश में लेजर स्ट्राइक्स की आवाजें हैं. पर्सिवरेंस के सुपरकैम इंस्ट्रमेंट के मुख्य अन्वेषक रोजर वीन्स ने अपने एक बयान में कहा, 'सुपरकैम को मंगल ग्रह पर इतने अच्छे से काम करते हुए देखने का अनुभव शानदार है. जब हमने आठ साल पहले इस इंस्ट्रुमेंट के होने का सपना देखा था, उस वक्त हमें इस बात की चिंता हुई थी कि क्या हम बहुत ज्यादा महत्वाकांक्षी हो रहे हैं. आज यह वाकई में काम कर रहा है.' यह साउंड (Sound) फाइल लगभग 20 सेकेंड की है. पहली फाइल में मंगल ग्रह पर हवाओं के चलने की आवाजें बिल्कुल वैसी ही हैं, जैसे कि धरती पर आंधी-तूफान के वक्त हवाओं के बहने की आवाजें और लेजर स्ट्राइक्स की आवाज दिल के धड़कने जैसी है.

रोवर 23 कैमरे 2 माइक्रोफोन
इस रोवर में 23 कैमरे और 2 माइक्रोफोन लगे हैं जो धरती पर मिशन कंट्रोल को डेटा भेजेंगे. इसके आधार पर वहां जीवन की खोज की जाएगी. पहले ऑडियो में रोवर ने लाल ग्रह पर चलने वाली हवाओं की आवाज सुनाई दे रही है. इसे रोवर के सुपर कैम माइक्रोफोन ने रिकॉर्ड किया है. यह माइक इसके मास्ट के ऊपर लगा है. जब यह आवाज रिकॉर्ड हुई तो मास्ट नीचे था, इसलिए आवाज धीमी सुनाई दे रही है. दूसरी आवाज लेजर स्ट्राइक्स की है. दिल की धड़कन जैसी एक ताल में सुनाई दे रही आवाज में अलग-अलग तीव्रता है. इसके आधार पर रिसर्चर यह पता लगाएंगे कि लेजर जिस चट्टान से टकरा रही है उसकी बनावट कैसी है.

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ऐसे करते हैं कैमरे और माइक्रोफोन काम 
पर्सिवरेंस में 23 कैमरे और 2 माइक्रोफोन लगे हैं. इसके मास्ट में लगा मास्टकैम-जेड ऐसे टार्गेट्स पर जूम करेगा जहां वैज्ञानिक दृष्टि से रोचक खोज की संभावना हो. मिशन की साइंस टीम पर्सिवरेंस के सुपर कैम को इस टार्गेट पर लेजर फायर करने की कमांड देगी जिससे एक प्लाज्मा क्लाउड जनरेट होगा. इसके विश्लेषण से टार्गेट की केमिकल बनावट को समझा जा सकेगा. अगर इसमें कुछ जरूरी मिला तो रोवर की रोबॉटिक आर्म आगे का काम करेगी.

दो तरह की आ रही हैं आवाजें
अमेरिका की अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने बताया है कि मंगल ग्रह में कुछ आवाजें सुनी गई हैं. ये आवाज अमेरिका के रोवर ने रिकॉर्ड की हैं और अब हम पृथ्वी ग्रह में इन्हें सुन सकते हैं. 5 अरब 46 लाख किलोमीटर दूर से आई  मंगल ग्रह पर सुनी गई ये आवाज दो तरह की है.  एक जब रोवर मंगल ग्रह पर उतरते समय सतह से टकराता है और दूसरी आवाज वहां चलने वाली हवा की है. आवाज को सुनने के लिए माध्यम का होना जरूरी है. माध्यम के घनत्व में अंतर से आवाज के आने-जाने के स्वरूप में भी काफी बदलाव हो जाता है.  मंगल ध्वनि से पता चलेगा कि मंगल ग्रह मनुष्यों के रहने के लायक है या नहीं. 

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वैज्ञानिक इन आवाजों से पता लगाएंगे यह 
वैज्ञानिक इन आवाजों का अध्ययन कर रहे हैं. सवाल उठता है कि वैज्ञानिक क्यों आवाज को सुनना चाहते हैं? दरअसल, जब ध्वनि की तरंगे किसी चीज से टकरा कर लौटती हैं, तो वैज्ञानिक उनकी गति और लौटने में लगे समय से ये जानने की कोशिश करते हैं कि ग्रह का आकार और वहां का माहौल क्या है? इसलिए वैज्ञानिकों का पूरा ध्यान आवाज की तरफ है. रोवर में आवाज रिकॉर्ड करने के लिए एक यंत्र लगाया है, जिसका नाम सिस्‍मोमीटर है. ये मनुष्य के कान की तरह काम करता है. ये धीमी से धीमी आवाज को भी सुन सकता है. अब तक हुई रिसर्च से पता चला है कि जिस तरह से पृथ्वी पर आवाज सुनाई देती है. मंगल ग्रह पर उस तरह से सुनाई नहीं देती. इसकी वजह, मंगह ग्रह के वायुमंडल का घनत्व है जो कि पृथ्वी से 100 गुना कम है. 

पृथ्वी जैसी है मंगल की बनावट
मंगल ग्रह की बनावट करीब-करीब हमारे ग्रह पृथ्वी की तरह ही है. इसका एक कोर है और हमारे ग्रह का भी एक कोर है. कोर का मतलब ग्रह के अंदर की बनावट होती है, जिस पर पूरा ग्रह टिका होता है, इससे यह पता चलता है कि ग्रह का बाहरी वातावरण कैसा होगा. पर ग्रैविटी यानि गुरुत्वाकर्षण, मतलब वो बल जिसकी वजह से हम सीधे चल पाते हैं और चीजें स्थिर हो पाती हैं. जहां गुरूत्वकर्षण नहीं होता, वहां चीजें और लोग हवा में तैरते रहते हैं.  मंगल ग्रह पर गुरूत्वाकर्षण बल पृथ्वी से करीब 62 फीसदी कम है. इसे ऐसे समझें कि अगर हम पृथ्वी पर कोई 45 किलोग्राम का पत्थर फेंकते हैं तो वह सतह से टकराने के बाद एक मीटर तक ऊपर जाएगा और यही पत्थर मंगल ग्रह पर तीन मीटर तक ऊपर जाएगा और पृथ्वी की अपेक्षा ज्यादा दूर जाकर गिरेगा. इसी तरह से पृथ्वी पर अगर कोई व्यक्ति 45 किलोग्राम का हो तो वह मंगल ग्रह पर मात्र 17 किलोग्राम का रह जाता है. मतलब उसका वजन 28 किलोग्राम घट जाता है. ऐसा मंगल ग्रह में ग्रैविटी कम होने के कारण होता है. 

HIGHLIGHTS

  • मंगला से आईं आवाजें, पर्सिवरेंस रोवर ने की रिकॉर्ड
  • पृथ्वी जैसा वातावरण है मंगल का, हवाओं से सिद्ध
  • गुरुत्वार्षण कम होने से पड़ता है भार पर असर
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