भारत का बहुप्रतीक्षित मिशन चंद्रयान 2 (Chandrayaan 2) से आखिरी वक्त में इसरो से संपर्क टूट गया. तब चंद्रयान 2 का विक्रम लैंडर चांद की जमीं से केवल 2.1 किलोमीटर दूर था. पूरे भारत के लिए यह सदमा था, लेकिन पाकिस्तान (Pakistan) जैसा बदतमीज देश इसका मजाक उड़ा रहा था, जो इस बारे में सोच भी नहीं सकता. चंद्रयान 2 से संपर्क टूटने पर पाकिस्तान से तमाम प्रतिक्रियाएं आने लगीं. यहां तक कि पाकिस्तान के विज्ञान और तकनीकी मंत्री चौधरी फवाद हुसैन ने टि्वटर पर बेहूदा टिप्पणी कर दी. फवाद ने ट्वीट किया, '.... जो काम आता नहीं पंगा नहीं लेते ना.... डियर “एंडिया”. फवाद ने मिशन एंड होने के चलते इंडिया को “एंडिया” लिखा था. फवाद ने यह भी नहीं सोचा कि भारत का लैंडर तो वहां पहुंच भी गया, पाकिस्तान तो दाल-रोटी की चिंता से ऊपर ही नहीं उठ रहा है.
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भारत के चंद्रयान 2 मिशन पर पाकिस्तान नजर बनाए हुए था. चंद्रयान 2 से संपर्क टूटने के बाद पाकिस्तान को मौका मिल गया तौर उसके मंत्री फवाद चौधरी ने ट्वीट कर मजा लेने में तनिक भी देर नहीं की. फवाद ने एक बार भी यह नहीं सोचा कि भारत आज कहां है और पाकिस्तान उसके आगे कहां ठहरता है. फवाद को यह भी याद रखना चाहिए था कि अंतरिक्ष को लेकर भी उसने भी स्पेस प्रोग्राम की शुरुआत की थी, लेकिन अब वो इतना पिछड़ चुका है कि इमरान खान अंतरिक्ष या चांद पर जाने की बात करते हैं तो खुद वहीं के लोग हंसी उड़ाने लगते हैं.
पाकिस्तान ने भारत से बहुत पहले यानी 1961 में सुपारको नाम से अपनी स्पेस एजेंसी बनाई थी, जबकि इसरो की स्थापना 1969 में हुई थी. साल 1960 में पाकिस्तान के शहर कराची में पाकिस्तान-अमरीकी काउंसिल का लेक्चर चल रहा था. इसमें प्रोफ़ेसर अब्दुस सलाम नाम के एक वैज्ञानिक ने कहा था, 'पाकिस्तान अब स्पेस एज में दाखिल होने वाला है और हम बहुत जल्द ही अंतरिक्ष में एक रॉकेट भेजने वाले हैं.'
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उस वैज्ञानिक के दावे पर दुनिया भर के वैज्ञानिक दंग रह गए थे. ये वही वैज्ञानिक अब्दुस सलाम थे जो आगे चलकर विज्ञान के क्षेत्र में नोबल पुरस्कार जीतने वाले पहले मुसलमान और पाकिस्तानी बने थे. अयूब खान के राष्ट्रपति बनने पर अब्दुस सलाम ने उन्हें कई आइडियाज शेयर किए थे. 16 सितंबर 1961 को कराची में 'सुपारको' यानी पाकिस्तानी 'स्पेस एंड अपर एटमॉस्फियर रिसर्च कमीशन' की स्थापना हुई. तब अमेरिका ने भी पाकिस्तान की मदद की थी.
7 जून 1962 को पाकिस्तान ने अपना पहला रॉकेट 'रहबर-1' छोड़ा था. रॉकेट का मुख्य मकसद मौसम के बारे में जानकारी जुटाना था. भारत इसके करीब एक साल बाद ऐसा कर सका था.पूरे उपमहाद्वीप में पाकिस्तान ऐसा करने वाला पहला मुल्क बन गया था और पूरे एशिया में तीसरा मुल्क. तब दुनिया में वह 10वां मुल्क बना था, जिसने सफलतापूर्वक रॉकेट छोड़ा था.
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जनरल अयूब खान के दौर में तो पाकिस्तानी स्पेस कार्यक्रम तेजी से आगे बढ़ा, लेकिन जनरल याह्या खान और प्रधानमंत्री ज़ुल्फिकार अली भुट्टो के दौर में प्राथमिकताएं तेज़ी से बदलती चली गईं. जनरल जिया-उल-हक और बाद के शासकों के आने के बाद 'सुपारको' बिल्कुल ही हाशिए पर चला गया.
बाद के समय में सुपारको को मिलने वाले फंड में लगातार कटौती होती रही. पाकिस्तान सुपारको से सारा ध्यान हटाकर एटॉमिक हथियार हासिल करने में पैसे खर्च कर रहा था. जो बेहतरीन वैज्ञानिक थे वे एटोमिक परीक्षण के काम में लग गए और दूसरे मिसाइल बनाने में. और पाकिस्तान का स्पेस कार्यक्रम बहुत पीछे चला गया. 1980 के दशक में पाकिस्तान के मशहूर वैज्ञानिक मुनीर अहमद ख़ान ने सुपारको में नई जान फूंकने की कोशिश थी थी, लेकिन बात बनी नहीं.
Source : न्यूज स्टेट ब्यूरो