भारतीय उपमहाद्वीप में पाई गई पहली काली गिलहरी को यहां वैज्ञानिक रूप से प्रलेखित किया गया है. केरल के अनुसंधान पेशेवरों की एक टीम ने 13 साल मेहनत कर काली गिलहरी का दस्तावेज तैयार किया है. काली गिलहरी को वैज्ञानिक रूप से साबित करने के लिए विस्तृत अध्ययन रिपोर्ट इंडियन एकेडमी ऑफ साइंस, बेंगलुरु द्वारा प्रकाशित करंट साइंस के नवीनतम अंक में प्रकाशित हुई थी. शोधकर्ताओं ने निष्कर्ष निकाला है कि यह एक बांझ मादा काली गिलहरी है. घटनाओं के क्रम का पता लगाते हुए, केरल राज्य जैव विविधता बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष वी. ओमन ने बताया कि यह सब 2008 में शुरू हुआ, जब केंद्रीय कंद फसल अनुसंधान संस्थान से जुड़े खेत मजदूरों के एक समूह ने यहां एक काले रंग का छोटा जीव देखा.
चूहे और गिलहरी दोनों की विशेषताएं
ओमन 2008 में केरल विश्वविद्यालय में जूलॉजी विभाग में प्रोफेसर थे. उन्हें संस्थान में काम कर रहे अपने एक पूर्व छात्र का फोन आया कि यहां एक काली गिलहरी देखी गई है, तो उन्हें आश्चर्य हुआ. ओमन ने कहा, मैं अपने एक छात्र के साथ उनके खेत में गया और उस प्राणी को देखकर सुखद आश्चर्य हुआ, जिसमें चूहे और गिलहरी दोनों की विशेषताएं थीं. मैंने इसे अपने कब्जे में ले लिया और इसे अपने विभाग में लाया और एक पिंजरे में रख दिया. फिर हमें वन विभाग से प्राणी को रखने की औपचारिक अनुमति मिली. हमने तस्वीरें लीं और इसे जंतु विशेषज्ञों के पास भेज दिया, जो यह कहते हुए हमारे पास वापस आए कि यह चूहा नहीं है. फिर हमने यूके में एक गिलहरी विशेषज्ञ से संपर्क किया, जिन्होंने पुष्टि की कि यह काली गिलहरी है.
इसमें सामान्य गिलहरी की 98 प्रतिशत विशेषताएं थीं
ओमन याद करते हैं कि एक दिन यह बीमार लग रहा था और वह इसे स्थानीय पशु चिकित्सालय ले गए ,जहां पशु चिकित्सकों ने इसे विटामिन-डी सिरप देने का सुझाव दिया और जल्द ही यह फिर से सक्रिय हो गया. ओमन ने कहा, बाद में हमने चिड़ियाघर के अधिकारियों की मदद से इस गिलहरी को सामान्य किस्म की गिलहरी के बगल में इसे दूसरे पिंजरे में रखवाने में कामयाब रहे. फिर उन्होंने दो अलग-अलग गिलहरियों का अध्ययन करने और जीनोमिक का पालन करने का फैसला किया. अध्ययन के बाद डीएनए परीक्षण किए गए. उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि इसमें सामान्य गिलहरी की 98 प्रतिशत विशेषताएं थीं. बाद में उनके निष्कर्षो को और मजबूत करने के लिए जैव सूचना विज्ञान विधियों का उपयोग करके और अधिक अध्ययन किए गए.
दो साल बाद गिलहरी की मृत्यु हो गई थी
इस बीच, ओमन 2010 में सेवानिवृत्त हुए और दो साल बाद गिलहरी की मृत्यु हो गई, लेकिन ओमन ने देखा कि उस मृत काली गिलहरी को संरक्षित किया गया था और अब यह विश्वविद्यालय की प्रयोगशाला में है. ओमन ने कहा, समय बीतता गया और 2015 में मुझे लगा कि शोध को आगे बढ़ाया जाना चाहिए और मैंने डेटा एकत्र करना शुरू कर दिया. फिर मैंने अपने सभी छात्रों से संपर्क कया, जो काली गिलहरी के बारे में अध्ययन में मेरे साथ थे. बोर्ड अध्यक्ष के रूप में मेरा कार्यकाल समाप्त होने के बाद पिछले साल हमने अपना वैज्ञानिक अध्ययन पूरा किया. हम निष्कर्ष को प्रकाशित करवाना चाहते थे. आखिरकार, इसे प्रकाशित किया गया है और हम इससे बेहद उत्साहित हैं.
HIGHLIGHTS
- केरल के शोधकर्ताओं ने उपमहाद्वीप की पहली काली गिलहरी का दस्तावेज बनाया
- एक टीम ने 13 साल मेहनत कर काली गिलहरी का दस्तावेज तैयार किया है
- शोधकर्ताओं ने निष्कर्ष निकाला है कि यह एक बांझ मादा काली गिलहरी है