वैज्ञानिकों ने दुनिया में सबसे पुरानी ज्ञात मानव निर्मित नैनो वस्तु की खोज तमिलनाडु के कीलाडी में पुरातत्व स्थल से मिले मिट्टी के बर्तन पर लगी विशेष काले रंग की परत में खोजी है. यह मिट्टी का बर्तन करीब 600 ईसा पूर्व का है. अनुसंधानकर्ताओं के इस अध्ययन को हाल में जर्नल साइंटिफिक रिपोर्ट्स में प्रकाशित किया गया है. इसमें खुलासा किया गया है कि मिट्टी के बर्तन पर चढ़ाई गई परत कार्बन नैनो ट्यूब (सीएनटी) की बनी है, जिसकी वजह से यह 2600 साल बाद भी सुरक्षित है. इसके साथ ही उन उपकरणों के बारे में सवाल पैदा हो गया है, जिसका इस्तेमाल उस दौर में इन बर्तनों को बनाने के दौरान उच्च तामपान पैदा करने के लिए किया जाता था.
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तमिलनाडु के वेल्लोर इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (वीआईटी) के वैज्ञानिकों सहित अनुसंधानकर्ताओं की टीम ने कहा कि मिट्टी के बर्तन पर मिली परत अबतक मिला सबसे पुराना नैनो ढांचा है. अनुसंधान पत्र के सह लेखक और वीआईटी में कार्यरत विजयानंद चंद्रशेखरन ने कहा, 'इस खोज से पहले हमारी जानकारी के मुताबिक सबसे पुराने नैनो ढांचे आठवीं या नवीं शताब्दी के थे.'
उन्होंने कहा कि कार्बन नैनो ट्यूब कार्बन परमाणुओं का ढांचा होता है जो एक व्यवस्थित क्रम में होते हैं. चंद्रशेखरन ने कहा कि पुरानी कलाकृति के ऊपर लगी परत सामान्य तौर पर टूट-फूट जाती और वातावरण में बदलाव की वजह से इतने लंबे समय तक नहीं टिकती. उन्होंने कहा, 'लेकिन मजबूत ढांचे की वजह से कार्बन नैनो ट्यूब की परत 2,600 साल से अधिक समय तक बनी रही. भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान, तिरुवनंतपुरुम के नैनो पदार्थ वैज्ञानिक और इस अनुसंधान से असबद्ध एम एम शैजूमोन ने कहा कि कार्बन नैनो ट्यूब में उच्च उष्मा और विद्युत वाहकता, मजबूती सहित कई विशेष गुण होते हैं.
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उन्होंने से कहा, 'लेकिन उस समय लोगों ने जानबूझकर कार्बन नैनो ट्यूब की परत नहीं चढ़ाई बल्कि निर्माण की प्रक्रिया के दौरान उच्च तामपान होने की वजह से संयोगवश यह हुआ होगा.' उन्होंने कहा, 'अगर उच्च तापमान पर मिट्टी के बर्तन का निर्माण करने की प्रक्रिया की जानकारी मिलती है तो यह खोज और पुख्ता होगी.' चंद्रशेखरन ने कहा कि इसका संभावित वैज्ञानिक विश्लेषण यह हो सकता है कि इन बर्तनों पर परत चढ़ाने के लिए पौधे के रस या अन्य पदार्थ का इस्तेमाल किया गया होगा, जो उच्च तामपान की वजह से कार्बन नैनो ट्यूब में बदल गए.
Source : Bhasha