लगभग 50 साल हो चुके हैं, जब इंसान ने चांद पर कदम रखा था. 20 जुलाई 1969 को अपोलो मिशन (Apollo Mission) के तहत नील आर्मस्ट्रांग (Neil Armstrong) ने चांद की सतह पर पहला कदम रखा था. यह एक बड़ी उपलब्धि के साथ-साथ अंतरिक्ष विज्ञान के लिहाज से मील का पत्थर था. इस उपलब्धि के साथ ही चांद से जुड़े कई मिथक भी टूटे. हालांकि दुनिया के एक बड़े तबके का मानना है कि इंसान (Human) ने कभी भी चांद पर कदम नहीं रखा. अमेरिकी सरकार का यह एक सफेद झूठ है, जिसे जान-बूझ कर फैलाया गया. यह तबका चांद पर इंसानी फतह को अमेरिका की ओर से आम जनता को गुमराह करने वाला कदम बताता है. यही वजह है कि अपोलो मिशन दुनिया की चंद कांस्पिरेसी थ्योरीज (conspiracy theories) में सबसे ऊपर आता है.
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5 फीसदी अमेरिकी मानते हैं चांद अभियान सफेद झूठ
दुनिया के बाकी देशों की बात अगर न भी करें, तो नासा (NASA) की रिपोर्ट बताती है कि पांच प्रतिशत अमेरिकी चांद पर लैंडिंग (Moon Landing) को झूठ मानते हैं. इन लोगों ने ही अपोलो मिशन को 'चंद्रमा छल' अभियान नाम दिया है. इसका समर्थन करने वाले लोगों का तर्क यही है कि 1960 के दशक में अपोलो मिशन तकनीकी खामियों के चलते अपने लक्ष्य से चूक गया था. अमेरिका ने वास्तव में तत्कालीन सोवियत संघ पर अंतरिक्ष कार्यक्रम में बढ़त दिखाने के लिए ही इस सफेद झूठ को फैलाया.
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किताब से मिली इस झूठ को हवा
चांद पर मानव को भेजने के अभियान से जुड़े अपोलो मिशन को सफेद झूठ मानने वालों की संख्या बिल केसिंग की किताब 'वी नेवर वैंट टू द मूनः अमेरिकाज थर्टी बिलियन डॉलर स्विंडल' के प्रकाशन के बाद तेजी से बढ़नी शुरू हो गई. हालांकि नील आर्मस्ट्रांग के चंद्रमी की सतह पर पहला कदम रखते ही ऐसी चर्चाएं शुरू हो चुकी थीं. बिल नासा (NASA) में काम कर चुके थे, सो उनकी किताब को विश्वसनीय मानने वाले भी कम नहीं थे. फिर बिल ने अपनी किताब में कुछ फोटो और तर्कों से इस छलावे को रचा जाने का विवरण दिया, जिसे सत्य की तरह लिया गया.
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बगैर हवा के फहराता झंडा
बिल ने अपनी किताब में उस तस्वीर को भी शामिल किया, जिसमें चांद की सतह पर अमेरिकी झंडा फहराते दिख रहा है. यह झंडा हवा विहीन वातावरण में लहरा रहा है और तस्वीर में पीछे कोई तारा नज़र नहीं आ रहा है. कैलिफ़ोर्निया विश्वविद्यालय में शोध कर रहे खगोलशास्त्री माइकल रिच के मुताबिक इस दावे को झूठा साबित करने के लिए कई वैज्ञानिक तर्क दिए जा सकते हैं. मसलन रोचेस्टर इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में एस्ट्रोफिजिक्स के प्रोफेसर ब्रायन केबरेलिन का तर्क है कि चंद्रमा की सतह (Moon Surface) सूरज की रोशनी को दर्शाती है. यह चमक तारों की रोशनी को सुस्त कर देती है. इसी कारण अपोलो 11 मिशन की तस्वीरों में तारों को नहीं देखा जा सकता है.
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नकली है पैरों के निशान भी
सिर्फ झंडा ही नहीं नील आर्मस्ट्रांग के चांद की सतह पर पैरों को निशान (Foor Prints) को भी फर्जी करार दिया जाता है. हालांकि एरिज़ोना स्टेट यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर मार्क रॉबिन्सन के पास इसका वैज्ञानिक स्पष्टीकरण है. वह कहते हैं कि चंद्रमा मिट्टी की चट्टानों और धूल की एक परत 'रेजोलिथ' से अटा पड़ा है. यह सतह कदम रखने पर आसानी से सिकुड़ जाती है. चूंकि मिट्टी के कण भी इस परत में हैं, को बाद तक पैरों के निशान बने रहते हैं. चूंकि चंद्रमा पर कोई वायुमंडल नहीं है, ऐसे में पैरों के यह निशान लाखों साल तक बने रहेंगे.
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अपोलो मिशन के सबूत
हालांकि अपोलो मिशन से जुड़ी कांस्पिरेसी थ्योरीज को झूठ साबित करने के लिए नासा ने भी कम दमदार तर्क नहीं दिए हैं. यही नहीं, नासा ने अपोलो मिशन से जुड़ी कुछ खास तस्वीरें भी जारी की हैं. ये तस्वीरें बताती हैं कि अपोलो मिशन सौ प्रतिशत सफल रहा था और इंसान ने चांद पर कदम रखा है. इन तस्वीरों को पुख्तापन प्रदान करने के लिए अपोलो 11 की लैंडिंग साइट (Landing Sites) भी है. इसमें मिट्टी पर छोड़े गए पैरों के निशान और चंद्रमा मॉड्यूल के अवशेष साफतौर पर दिख रहे हैं. यानी चांद पर इंसान नहीं पहुंचा को झूठ या छल बताने वालों के लिए वैज्ञानिक सबूत और तथ्य भी शामिल हैं.
HIGHLIGHTS
- पांच प्रतिशत अमेरिकी चांद पर लैंडिंग को झूठ मानते हैं.
- बिल केसिंग की किताब भी चांद पर लैंडिंग को फर्जी बताती है.
- हालांकि नासा ने उपलब्ध कराए हैं वैज्ञानिक सबूत और तथ्य.