आज के दौर में हमारी किसी भी यात्रा में नेविगेशन सिस्टम की अहम भूमिका होने लगी है. वास्तव में नेविगेशन सिस्टम का संबंध किसी वाहन की एक स्थान से दूसरे स्थान पर गति की योजना, दिशा एवं उस पर नियंत्रण से होता है. इसमें सबसे महत्वपूर्ण बात होती है कि वाहन या यान की स्थिति का सुनिश्चित होना. अंतरिक्ष (Space) की बात करें तो हमारे यान सूर्य और तारों के अनुसार अपनी स्थिति का निर्धारण करते हैं, लेकिन हमारे सौरमंडल के बाहर अंतरतारकीय (Interstellar) यात्राओं यह काम नहीं आता है. इससे अंतरिक्ष यान को अपने नेविगेशन में समस्या आ सकती है. इसी से निपटने के लिए हमारे खगोलविद एक सिस्टम बना रहे हैं.
सौरमंडल से बाहर
स्पेस नेविगेशन खासतौर पर अंतरतारकीय यात्रा एक कौतूहल का विषय ज्यादा रहा है. वैज्ञानिकों ने भी अंतरतारकीय यात्राओं के बारे काफी कुछ अध्ययन भी किया है. अब तक केवल दो ही अंतरिक्षयान एक वॉयजर 1 और 2, सौरमंडल से बाहर जा सके हैं. भविष्य में अब और ज्यादा सौरमंडल से बाहर जाएंगे. खासकर जिस तरह से अंतरिक्ष अभियानों को लेकर निजी कंपनियां भी आगे बढ़ रही हैं, उसके आलोक में स्पेस नेविगेशन सिस्टम की खासी अहमियत रखते हैं.
बहुत अलग है आगे का ब्रह्मांड
हमारे सौरमंडल के गुरू और शनि ग्रह के लिए अंतरिक्ष यान उनके पास पहुंच कर उनका अध्ययन कर चुके हैं. अब आगे के लिए भी अंतरिक्ष यान भेजना की तैयारी होने लगे तो हैरानी नहीं होनी चाहिए. इन यात्राओं के लिए समस्या ये है कि सौरमंडल से बाहर तारों की दुनिया पृथ्वी से दिखने वाली दुनिया की तुलना में बहुत ही अलग होती है.
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ये दो प्रमुख समस्याएं होंगी
सौरमंडल के बाहर हमें तारों की गतिविधि वैसी बिलकुल नहीं दिखेगी जैसी पृथ्वी से दिखती है. इसके अलावा पृथ्वी से ये दूरी इतनी ज्यादा अधिक होगी कि पृथ्वी से इन यानों को नियंत्रित करना संभव ही नहीं हैं. इसीलिए पृथ्वी पर पानी और हवा में नेविगेशन के जैसा जीपीएस सिस्टम वहां के लिए नहीं बनाया जा सकता है.
नए सिस्टम की जरूरत
दिलचस्प बात यह है कि वायजर 1 और 2 पृथ्वी से ही नियंत्रित हुए थे, लेकिन अंतरिक्ष में ही रहते हैं अंतरिक्षयान का सटीक संचालन बहुत ही मुश्किल काम हो सकता है. इससे अंतरिक्ष यान के भटक कर खो जाने की संभावना तक बन जाती है. इसके समाधान के तौर पर एक बहुत ही विश्वसनीय और मजबूत नेविगेशन सिस्टम की जरूरत होगी.
नया नेविगेशन सिस्टम
जर्मनी के मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट के खगोलविद कोरिन एएल बेलर-जोन्स ने इस समस्या के समाधान के लिए एक नेवीगेशन सिस्टम बनाया है. यह ऐसा सिस्टम है जो पृथ्वी के बजाय अंतरिक्ष में ही यान के नेविगेशन का काम करेगा. बेलर-जोन्स के विचार शोधपत्र के रूप एर्जिव में प्रकाशित हुए हैं जिसका पियर रिव्यू होना है.
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दो नक्शों से तुलना
बेलर-जोन्स का प्रस्ताव है कि तारों के जोड़ों के बीच की कोणीय दूरी नाप कर उन्हें हमारे पास पहले से ही उपलब्ध तारों के चार्ट से तुलना करने पर अंतरिक्ष यान स्पेस में अपने कोऑर्डिनेट्स निकाल सकेगा. इससे अंतरिक्ष यान में एस्ट्रोनॉट्स यह तक कर सकेंगे कि वास्तव में उनका यान कहां है और ऐसा वे पृथ्वी से बिना कोई सहायता लिए कर सकेंगे.
नासा के हबल टेलीस्कोप ने शनि के विशाल वायुमंडल में देखे बड़े बदलाव
फिलहाल पृथ्वी के यान मंगल की सतह पर उतर चुके हैं. मंगल पर मानव जाने की तैयारी में है और नासा इससे भी आगे के लिए मानव अभियानों के लिए अध्ययन करने लगा है. वहीं अब सौरमंडल से बाहर के लिए स्पेस प्रोब भी जल्दी ही स्पेस एजेंसी के एजेंडे में शामिल हो जाएंगे. इनसे से संबंधित चुनौतियों को शोधकर्ता अभी से अपने अध्ययन में शामिल हो गए हैं.
HIGHLIGHTS
- अब तक केवल दो ही अंतरिक्षयान एक वॉयजर 1 और 2, सौरमंडल से बाहर जा सके हैं
- सौरमंडल से बाहर तारों की दुनिया पृथ्वी से दिखने वाली दुनिया की तुलना में बहुत अलग
- सौरमंडल से बाहर के लिए स्पेस प्रोब भी जल्दी ही स्पेस एजेंसी के एजेंडे में होंगे शामिल