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Aditya-L1 और Chandrayaan 3 के बाद ISRO का ये होगा अगला मिशन, जानें कबतक होगा लॉन्च

हालांकि, अभी इस बारे में तारीख का खुलासा नहीं हुआ है. उम्मीद जताई जा रही है कि अक्टूबर में इसरो अपने अगले परियोजना को लॉन्च कर सकता है.

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Prashant Jha
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इसरो का अगला मिशन( Photo Credit : फाइल फोटो)

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चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर चंद्रयान-3 की सफलतापूर्वक लैंडिंग और सूर्य के रहस्यों को खोजने के लिए आदित्य-एल1 की सफल लॉन्चिंग के बाद भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) अब गगयान की खोज करने की परियोजना पर काम की तैयारी में है.  विज्ञान और प्रौद्योगिक मंत्रालय ने भी इसका संकेत दिया है. विज्ञान और प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने आज बताया कि गगनयान का पहला ट्रायल अक्टूबर में शुरू हो सकता है. इसरो का अगला मिशन अंतरिक्ष को समझना है. इसरो ने इसकी तैयारी भी शुरू कर दी है.  अंतरिक्ष में यान भेजने के लिए तैयारियां अंतिम चरण में है.

हालांकि, अभी इस बारे में तारीख का खुलासा नहीं हुआ है. उम्मीद जताई जा रही है कि अक्टूबर में इसरो अपने अगले परियोजना को लॉन्च कर सकता है. एक्पोसैट (एक्सर रे पोलारिमीटर सैटेलाइट) भारत का पहला समर्पित पोलारिमेट्री मिशन है जो कठिन परिस्थितियों में भी चमकीले खगोलीय एक्सरे स्रोतों के विभिन्न आयामों का अध्ययन करेगा.  इसरो अब पृथ्वी की निचली कक्षा में अंतरिक्ष यान भेजकर जानकारी जुटाएगा. इस यान में दो वैज्ञानिक अध्ययन उपकरण (पेलोड) लगे होंगे. 

इसरो ने बताया कि प्राथमिक उपकरण पोलिक्स (एक्सरे में पोलारिमीटर उपकरण) खगोलीय मूल के 8-30 केवी फोटॉन की मध्यम एक्स-रे ऊर्जा रेंज में पोलारिमेट्री मापदंडों को मापेगा. इसके जरिए पता लगाएगा कि अंतरिक्ष में क्या-क्या नया आयाम चल रहा है. इसरो के अनुसार, एक्सस्पेक्ट (एक्स-रे स्पेक्ट्रोस्कोपी और टाइमिंग) पेलोड 0.8-15 केवी की ऊर्जा रेंज में स्पेक्ट्रोस्कोपिक यानी भौतिक विज्ञान की एक शाखा जिसमें पदार्थों के उत्सर्जित या अवशोषित विद्युत चुंबकीय विकिरणों के स्पेक्ट्रमों का अध्ययन किया जाता है और इस अध्ययन से पदार्थों की आंतरिक रचना का ज्ञान प्राप्त किया जाता है की जानकारी देगा. 

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कैसे हुआ सूर्य का निर्माण
दरअसल, सूर्य हाईड्रोजन के सगन और घने बादलों से बना गैस का एक विशालकाय गोला है. 450 करोड़ साल पहले ब्रह्मांड में धूल और गैस के बादल छाए रहते थे. इन बादलों से काफी दूर एक तारा हुआ करता था. जब तारा पर ऊर्जा कम पड़ रही थी तो यह भयानक तरीके से विस्फोट हुआ. इस ब्लास्ट से बहुत ज्यादा गर्मी और दबाव पैदा हुआ. इससे ये धूल के कण बड़े उल्का पिंड में बदल गए. इधर बादलों में ग्रेविटी बनने लगा. इस ग्रैविटी के चलते हाइड्रोजन के कण एक जगह पर जमा होने लगे, बाद में यह फिर से भयानक विस्फोट हुआ. जिससे सूर्य का निर्माण हुआ.

इसरो के सामने ये होंगी चुनौतियां

इसरो के मुताबिक, एक्सपोसैट लॉन्च होने के लिए तैयार है. इसकी पूरी तैयारी हो चुकी है. हालांकि, अंतरिक्ष में यान भेजने इतना आसान भी नहीं है. इसरो के सामने कुछ चुनौतियां हैं. जैसे ब्लैकहोल, न्यूट्रॉन तारे, सक्रिय गैलेक्टिक नाभिक, पल्सर पवन निहारिका जैसे विभिन्न खगोलीय स्रोतों से उत्सर्जन तंत्र जटिल भौतिक प्रक्रियाओं से उत्पन्न होता है और इसे समझना चुनौतीपूर्ण है. अधिकारियों का कहना है कि विभिन्न अंतरिक्ष-आधारित वेधशालाओं के प्रचुर मात्रा में स्पेक्ट्रोस्कोपिक जानकारी मिलती है, लेकिन ऐसे स्रोतों से उत्सर्जन की सही प्रकृति को समझना चुनौतीपूर्ण है. 

Source : News Nation Bureau

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