क्या आप जानते हैं कि हिमालय पर्वत को दुनिया का तीसरा ध्रुव कहा जाता है. इस तीसरे ध्रुव पर खतरे के संकेत सामने आ रहे हैं. इसका मतलब है कि हिमालय में ग्लेशियरों के पिघलने की दर बढ़ गई है. हिमालय में ग्लेशियर झीलों का रूप ले ले रहे हैं. जिस तरह से झीलें बनते जा रही है वो एक खतरनाक साबित हो सकती हैं. इसमें कोई शक नहीं है कि इसका जिम्मेदार ग्लोबल वार्मिंग है. ग्लोबल वार्मिंग के कारण हिमालय एक बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है.
आखिर हिमालय रेंज में बाढ़ने आने का कारण क्या है?
हिमालय के ऊपर बनने वाली हिमनद झीलें बाढ़ के प्रकोप का खतरा हैं जैसा कि आपने देखा होगा, केदारनाथ, चमोली और सिक्किम में दुर्घटनाएं हुई. इसके लिए हिमानी झीलें जिम्मेदार हैं. इससे निचले इलाकों में रहने वाले लोगों के लिए अचानक बाढ़ और भूस्खलन का खतरा बढ़ जाता है. आपको बता दें कि हिमनद झीलें तब टूटती हैं जब उनमें कोई भारी वस्तु गिरती है या पानी की मात्रा बढ़ने पर उनकी दीवारें टूटती हैं. इसरो इन हिमनदी झीलों पर नजर रखता है. सैटेलाइट के जरिए इसरो हमेशा बन रही नई झीलों के साथ-साथ पुरानी झीलों के बढ़ते आकार पर भी अपडेट रखता है.
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तेजी से फैल रही हैं झीलों की आकार
इसरो अपडेट रखता है ताकि बाढ़ जैसी स्थिति उत्पन्न होने पर वे तुरंत सरकार को सूचित करें और लोगों को उन क्षेत्रों से सुरक्षित निकाला जा सके. जानकारी के मुताबिक, इसरो ने हिमालय में मौजूद बर्फीली झीलों का 3-4 दशकों का डेटा अपने पास रखा है. यदि हम 1984 से 2023 तक के आंकड़ों पर नजर डालें तो पाते हैं कि हिमालय में 2,431 झीलें हैं जो आकार में 10 हेक्टेयर से बड़ी हैं, जबकि 1984 से अब तक 676 झीलें हैं जिनके क्षेत्रफल का विस्तार हुआ है. इनमें से 130 भारत में मौजूद हैं, 65 हिमनद झीलें सिंधु नदी पर, सात गंगा पर और 58 ब्रह्मपुत्र पर बनी हैं.
दो बार बदला चुका है अपना शेप
आपको बता दें कि इन 676 झीलों में से 601 का आकार दो बार बदल चुका है. जबकि 10 झीलें डेढ़ गुना बढ़ गई हैं. वहीं, 65 झीलें ऐसी हैं, जो डेढ़ गुना बढ़ गई हैं. अगर इन झीलों की ऊंचाई की बात करें तो 314 झीलें 4 से 5 हजार मीटर की ऊंचाई पर हैं जबकि 296 ग्लेशियल झीलें 5 मीटर से ऊपर हैं.
Source : News Nation Bureau