ग्लेशियर (Glacier) की स्थिति को लेकर एक चौंकाने वाली स्टडी सामने आई है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इस स्टडी में दावा किया गया है कि साल 2 हजार से प्रत्येक साल पृथ्वी का ग्लेशियर 267 बिलियन टन तक पिघल रहा है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक फ्रांस के शोधकर्ताओं ने पिछले दो दशकों से दो लाख से अधिक ग्लेशियरों का विश्लेषण किया है. शोधकर्ताओं ने हाई रिजॉल्यूशन वाले मैप्स (मानचित्रों) के जरिए दुनियाभर के ग्लेशियल के बदलाव को लेकर विश्लेषण किया है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक फ्रांस की यूनिवर्सिटी ऑफ तुलूस की टीम के नेतृत्व में दुनियाभर के करीब 2 लाख 17 हजार 175 ग्लेशियरों के मानचित्र का विश्लेषण किया गया.
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ग्लेशियर की सतह में आया बदलाव
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक शोधकर्ताओं ने उपग्रहों के द्वारा खीची गईं तस्वीरों और एरियल तस्वीरों की मदद से इसका विश्लेषण किया गया. अध्धयन में इस बात की जानकारी हुई कि वर्ष 2 हजार से 2019 तक 2 लाख से ज्यादा ग्लेशियर की सतह में बदलाव देखने को मिला है. शोधकर्ताओं के मुताबिक साल 2000 से 2019 के दौरान प्रत्येक वर्ष ग्लेशियर की कुल 267 गीगाटन बर्फ पिघल गई थी और इसकी वजह से समुद्र के स्तर में 21 फीसदी की बढ़ोतरी देखने को मिली है.
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मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक यूनिवर्सिटी ऑफ तुलूस में हिमनद विज्ञानी रोमेन ह्यूगोनेट का कहना है कि 2000 से 2004 के बीच की अवधि के मुकाबले 2015 से 2019 के बीच बर्फ पिघलने की सालाना औसत दर 78 अरब टन ज्यादा है. उनका कहना है कि अमेरिका और कनाडा में ग्लेशियर में काफी ह्रास हो रहा है. उनका कहना है कि अलास्का के ग्लेशियर के पिघलने की दर सबसे ज्यादा है. उनका कहना है कि हर साल कोलंबिया में 115 फुट ग्लेशियर की बर्फ पिघल जाती है. वैज्ञानिकों का कहना है कि मनुष्यों की वजह से हुए जलवायु परिवर्तन के चलते ग्लेशियर पिघल रहे हैं.
HIGHLIGHTS
- साल 2 हजार से प्रत्येक साल पृथ्वी का ग्लेशियर 267 बिलियन टन तक पिघल रहा है
- दुनियाभर के करीब 2 लाख 17 हजार 175 ग्लेशियरों के मानचित्र का विश्लेषण किया गया