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ग्लेशियर क्यों पिघलते हैं? इससे पर्यावरण को क्या नुकसान हो सकता है?

Global warming : ग्लेशियरों के पिघलने से हमारा पर्यावरण तेजी से बदल रहा है. हर साल गर्मी बढ़ती जा रही है और बारिश कम और ज्यादा हो रही है. जिससे आने वाले समय में काफी दिक्कतें होने वाली हैं.

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Publive Team
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Why do glaciers melt

Why do glaciers melt( Photo Credit : Social Media)

Global warming: जीवाश्म ईंधन जलाने, जंगलो की कटाई और इंडस्ट्रियल प्रोसेस जैसी मानवीय गतिविधियों के कारण पृथ्वी का औसत तापमान तेजी से बढ़ रहा है. तापमान में यह वृद्धि ग्लेशियरों के पिघलने का कारण बनती जा रही है क्योंकि बर्फ हाई तापमान का सामना नहीं कर पाती है. अगर बर्फ इसी तरह पिघलती रही तो धरती पर विनाश को कोई नहीं रोक सकता. देखा जाए तो जलवायु परिवर्तन का असर अभी से दिखने लगा है.

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गर्म मौसम: विश्वव्यापी और क्षेत्रीय मौसम पैटर्न में बदलाव के कारण गर्मी की लहरें ज्यादा सामान्य हो गई हैं, जो ग्लेशियरों के पिघलने की दर को तेज करती हैं.

जलवायु परिवर्तन: कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य ग्रीनहाउस गैसों की बढ़ती मात्रा वायुमंडल में जलवायु परिवर्तन का कारण बन रही है, जो ग्लेशियरों की वृद्धि और ठंडक को प्रभावित करती है.

ग्लेशियरों की स्थिति: कुछ क्षेत्रों में ग्लेशियरों का पिघलना तेजी से हो रहा है, जबकि कुछ स्थानों पर वे अपेक्षाकृत स्थिर हैं. पिघलने की दर क्षेत्रीय कारकों, जैसे कि स्थानीय तापमान, आर्द्रता, और हवाओं पर निर्भर करती है.

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ह्यूमन एक्टिविटी: खेती, निर्माण, और अन्य ह्यूमन एक्टिविटी ग्लेशियरों के पास के क्षेत्रों में भूमि उपयोग को बदलती हैं, जिससे ग्लेशियरों की स्थिति प्रभावित हो सकती है.

ग्लेशियरों की सतह पर अशुद्धियां: जब ग्लेशियरों की सतह पर गंदगी और धूल जमा हो जाती है, तो यह धूप को ज्यादा अवशोषित करती है, जिससे पिघलने की प्रक्रिया और तेज हो जाती है.

ग्लेशियरों का पिघलना न केवल समुद्र स्तर में वृद्धि का कारण बनता है, बल्कि यह जल संसाधनों, इकोसिस्टम, और स्थानीय मौसम पर भी प्रभाव डालता है. इसे रोकने के लिए वैश्विक जलवायु परिवर्तन के उपायों को लागू करने की जरूरत है.

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ग्लेशियर के पिघलने से होने वाले नुकसान

ग्लेशियरों के पिघलने से कई तरह के व्यापक प्रभाव हो सकते हैं, तो चलिए जानते हैं.

समुद्र लेवल में ग्रोथ: ग्लेशियरों के पिघलने से समुद्रों में ज्यादा पानी मिल जाता है, जो समुद्र स्तर को बढ़ा देता है. इससे तटीय क्षेत्रों में बाढ़, तटीय जलवायु परिवर्तन, और भूमि के क्षय होने की संभावना बढ़ जाती है.

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पानी की आपूर्ति में कमी: ग्लेशियर कई प्रमुख नदियों और जलाशयों के स्रोत होते हैं. इनका पिघलना पानी की आपूर्ति में कमी का कारण बन सकता है, विशेषकर उन क्षेत्रों में जो ग्लेशियरों पर निर्भर रहते हैं, जैसे कि कुछ एशियाई और दक्षिण अमेरिकी देशों में.

जलवायु परिवर्तन: ग्लेशियरों का पिघलना वायुमंडल में ज्यादा जलवायु परिवर्तन का कारण बन सकता है. जब ग्लेशियरों का बर्फ पिघलता है, तो यह ग्राउंड का रंग बदल देता है और इससे अधिक गर्मी निकलती है, जो ग्लोबल वॉर्मिंग को और बढ़ा सकती है.

इकोसिस्टम पर असर:  ग्लेशियरों के पिघलने से इकोसिस्टम पर प्रभाव पड़ सकता है जो बर्फीले क्षेत्रों में जीवित रहते हैं. इससे वन्य जीवन के निवास स्थान में परिवर्तन और प्रजातियों की घटती संख्या हो सकती है.

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मिट्टी में परिवर्तन: जब ग्लेशियर पिघलते हैं, तो वे तलछट और मिट्टी को छोड़ सकते हैं, जो स्थानीय कृषि और इकोसिस्टम को प्रभावित कर सकते हैं.

हुमिडिटी और मौसमी पैटर्न में बदलाव: ग्लेशियरों के पिघलने से वायुमंडलीय आर्द्रता में वृद्धि हो सकती है, जो मौसमी पैटर्न को प्रभावित कर सकती है और बारिश की मात्रा में बदलाव ला सकती है.

सुनामी का जोखिम: बड़े पैमाने पर ग्लेशियर पिघलने से समुद्र में अचानक पानी का प्रवाह हो सकता है, जिससे तटीय क्षेत्रों में सुनामी जैसी घटनाएं हो सकती हैं.

Source : News Nation Bureau

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