चंद्रमा शुरू से ही पृथ्वी की संस्कृति का हिस्सा रहा है. चंद्रमा को लेकर सभी धर्मों की अपनी-अपनी मान्यताएं हैं. सनातन धर्म में चांद को सबसे ऊपर रखा जाता है और इस्लाम में भी ईद जैसा त्योहार बिना चांद देखे नहीं मनाया जाता. आप सोच रहे होंगे कि आज हम चांद की बात क्यों कर रहे हैं? तो चलिए हम आपको बताते हैं. दो दिनों से यह शब्द सुनने को मिल रहे हैं एक सुपरमून और दूसरा बकमून. आज इस आर्टिकल में हम जानेंगे कि ये दोनों क्या हैं?
सूपरमून किसे कहते हैं?
आपने सुपरमून के बारे में तो बहुत कुछ सुना होगा, तो आइए आज सबसे पहले जानते हैं सुपरमून के बारे में. जब चंद्रमा पृथ्वी के करीब आता है तो उसका आकार 7 से 12 फीसदी बड़ा दिखता है. आमतौर पर चंद्रमा की दूसरी पृथ्वी से दूरी 406,300 किमी होती है, लेकिन जब यह दूरी घटकर 356,700 किमी हो जाती है, तो चंद्रमा बड़ा दिखाई देता है. इसलिए हम इसे सुपरमून कहते हैं.
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चांद चमकने क्यों लगता है?
इस समय चंद्रमा की चमक बढ़ जाती है. चंद्रमा अपनी कक्षा में घूमते हुए पृथ्वी के करीब आता है क्योंकि चंद्रमा पृथ्वी की परिक्रमा नहीं करता. यह अण्डाकार कक्षा में गति करता है. ऐसे में यह तय है कि चंद्रमा पृथ्वी के करीब आ जाएगा. इन्हीं कारणों से चंद्रमा बहुत अधिक चमकने लगता है।
सुपरमून को बकमून क्यों कहा जा रहा है?
अब सवाल यह है कि इस बार के सुपरमून को बकमून क्यों कहा जा रहा है? असल में यह मूल अमेरिकी शब्द है. बकमून इसलिए कहा जाता है क्योंकि नर हिरण के सींग पूरी तरह विकसित हो जाते हैं. इन सींगों को बक कहा जाता है. यह बार-बार गिरता और बनता रहता है. इनका विकास जुलाई में पूरा हो जाता है. मूल अमेरिकी जनजातियों के लिए, यह शिकार का मौसम होता है. यह मौसम उसकी तैयारी के लिए होता है. इस समय, ये आदिवासी शिकार की व्यवस्था में शामिल हो जाते हैं ताकि वे सर्दियों के लिए पर्याप्त भोजन और आपूर्ति एकत्र कर सकें.
Source : News Nation Bureau