सरकार ने सूर्य के प्रभामंडल, चुंबकीय क्षेत्र आदि के अध्ययन के लिये ‘मिशन आदित्य’ की तैयारी शुरू कर दी है और इसके लिये अनुदान की पूरक मांगों के तहत संसद से 7 करोड़ रूपये आवंटित करने की मंजूरी मांगी है. संसद में पेश पूरक अनुदान मांगों के दूसरे बैच के दस्तावेज से यह जानकारी प्राप्त हुई है. वित्त वर्ष 2019..20 के लिए अनुदान की मांगों के दूसरे बैच के दस्तावेज के अनुसार, ‘ अंतरिक्ष विभाग के मद में ‘मिशन आदित्य’ एल1 के लिये 7.01 करोड़ रूपये का अनुमोदन मांगा गया है.’
वित्त राज्य मंत्री अनुराग ठाकुर द्वारा लोकसभा में पेश अनुदान की पूरक मांग संबंधी दस्तावेज के अनुसार, मिशन आदित्य के अलावा सेमी क्रायोजेनिक इंजन विकास योजना के पूंजीगत व्यय के लिये 65 करोड़ रूपया तथा कार्टोसेट 3 के लिये 22 करोड़ रूपये का अनुमोदन मांगा गया है. गौरतलब है कि भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के वैज्ञानिक ‘सूर्य’ के अध्ययन के लिये अब ‘मिशन आदित्य’ की तैयारी कर रहे हैं. इसके तहत सूर्य कोरोना का अध्ययन करने के साथ धरती पर इलेक्ट्रॉनिक संचार में व्यवधान पैदा करने वाली सौर-लपटों के बारे में भी जानकारी एकत्र करने का प्रयास किया जाएगा.
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हाल ही में इसरो के लीमेट्री, ट्रैकिंग एंड कमांड (इस्ट्रैक) के निदेशक प्रो वी वी श्रीनिवासन ने कहा था कि सूर्य तक अभी किसी भी देश की पहुंच नहीं है. आदित्य एल-1 मिशन को 1.5 मिलियन किलोमीटर की दूरी तय करनी होगी. इसकी कक्षीय अवधि (ऑर्बिटल पीरियड) करीब 178 दिन की होगी. इसरो की वेबसाइट से प्राप्त जानकारी के अनुसार, आदित्य-1 की संकल्पना मात्र सौर प्रभामंडल के प्रेक्षण एवं अध्ययन हेतु की गई. सूर्य की बाहरी परतें, डिस्क (फोटोस्फियर) के ऊपर हजारों कि.मी. तक फैली है और इसे प्रभामंडल या आभामंडल कहा जाता है. इसका तापमान मिलियन डिग्री केल्विन से भी अधिक है, जो कि करीबन 6000 केल्विन के सौर डिस्क तापमान से भी बहुत अधिक है. इसमें कहा गया है कि, ‘सौर भौतिकी में अब तक इस प्रश्न का उत्तर नहीं मिल पाया है कि किस प्रकार प्रभामंडल का तापमान इतना अधिक होता है.’
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इसरो के अनुसार, आदित्य-एल1 सूर्य के फोटोस्फियर (कोमल तथा ठोस एक्स-रे), क्रोमोस्फियर तथा प्रभामंडल के साथ एल1 कक्षा पर पहुँचने से उत्पन्न होने वाले कण अभिवाह का अध्ययन करेगा. इसके अलावा प्रभामंडल कक्षा पर चुंबकीय क्षेत्र शक्ति में हो रहे परिवर्तनों का भी अध्ययन किया जायेगा. वैज्ञानिकों का मानना है कि आदित्य-एल1 परियोजना के जरिये सूर्य की गतिकी प्रक्रियाओं को विस्तृत रूप से समझने के साथ सौर भौतिकी की कुछ अपूर्ण समस्याओं का अध्ययन करने में भी मदद मिलेगी.