Biden returned 297 artifacts to PM Modi: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने सबसे बड़ा तोहफा दिया है. राष्ट्रपति बाइडेन ने पीएम मोदी को प्रचीन और अति दुर्लभ 297 कलाकृतियों का ‘खजाना’ लौटाया है. हजारों साल पुरानी ये सभी कलाकृतियां भारत से तस्करी कर ले जाई गई थीं, लेकिन अब जल्द ही ये भारत लौटेंगीं. इस मौके पर आज हम आपको मूर्ति चोरों के अंडरवर्ल्ड के सबसे खतरनाक डॉन के बारे में बताएंगे, जिसने भगवान को खूब लूटा. प्राचीन कलाकृतियों के लिए कुख्यात उस डॉन का नाम सुभाष कपूर (Idol Smuggler Subhash Kapoor) है.
पीएम मोदी ने बाइडेन को कहा थैंक्यू
मूर्ति चोर सुभाष कपूर के काले-कारनामों के बारे में हम विस्तार से जानेंगे, लेकिन उससे पहले अमेरिका से लौटाई गईं कलाकृतियों के बारे में जान लेते हैं. ये सभी कलाकृतियां 4000 वर्ष पुरानी बताई जा रही हैं. अधिकांश पुरावशेष पूर्वी भारत की टेराकोटा कलाकृतियां हैं, जबकि अन्य पत्थर, धातु, लकड़ी और हाथीदांत से बनी हैं. पीएम मोदी ने इन कलाकृतियों की वापसी के लिए राष्ट्रपति बाइडेन को धन्यवाद दिया. उन्होंने कहा कि, ‘ये वस्तुएं न केवल भारत की ऐतिहासिक भौतिक संस्कृति का हिस्सा थीं, बल्कि यह सभ्यता और चेतना का आंतरिक मूल थीं.’
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लौटाई गईं ये कलाकृतियां
2016 से अमेरिका से भारत को लौटाई गई कलाकृतियों की कुल संख्या 578 है. यह किसी भी देश द्वारा भारत को लौटाई गई कलाकृतियों की अधिकतम संख्या है. अभी अमेरिका की ओर से भारत को सौंपी गईं, कलाकृतियों में से कुछ की जानकारी इस प्रकार है.
- अप्सरा की मूर्ति: ये मूर्ति बलुआ पत्थर से बनी हुई है, जिसका संबंध मध्य भारत से है. यह मूर्ति 10-11वीं शताब्दी ई. की है.
- जैन तीर्थंकर की मूर्ति: मध्य भारत से इस मूर्ति का संबंध है. यह मूर्ति कांस्य से बनी हुई है और 15-16वीं शताब्दी ई. की है.
- टेराकोटा फूलदान: ये कलाकृति पूर्वी भारत की है, जो 3-4वीं शताब्दी ई. की है.
- भगवान गणेश की मूर्ति: यह मूर्ति कांस्य की बनी हुई है, जिसका संबंध दक्षिणी भारत से है. इसे 17-18वीं शताब्दी पुरानी बताया गया है.
- भगवान बुद्ध की मूर्ति: उत्तर भारत से इस मूर्ति का संबंध है, जो बलुआ पत्थर से बनी हुई है. इस मूर्ति भगवान बुद्ध खड़ी मुद्रा में हैं. यह मूर्ति 15-16वीं शताब्दी ई. की है.
इनके अलावा दक्षिण भारत से पत्थर की मूर्ति जो पहली शताब्दी ई.पू.-1 शताब्दी ई. की है. पूर्वी भारत से कांस्य में भगवान विष्णु की प्रतिमा जो 17-18वीं शताब्दी ई.पू. की है. उत्तर भारत से तांबे में मानवरूपी आकृति जो 2000-1800 ई.पू. की है. दक्षिण भारत से कांस्य में भगवान कृष्ण की प्रतिमा जो 17-18वीं शताब्दी ई.पू. की है. दक्षिण भारत से ग्रेनाइट में भगवान कार्तिकेय की प्रतिमा जो 13-14वीं शताब्दी ई.पू. की है. अब चलिए मूर्ति तस्कर सुभाष कपूर के बारे में जानते हैं.
सुभाष कपूर, वो तस्कर जिसने भगवन को लूटा
सुभाष कपूर… प्राचीन मूर्तियों की तस्करी के अंतरराष्ट्रीय रैकेट का सरगना, जिसे मूर्ति चोरों के अंडरवर्ल्ड का सबसे बड़ा डॉन कहें, तो गलत नहीं होगा. वह अमेरिका के मैनहटन में Antique Store (प्रीचान वस्तुओं का स्टोर) चलाता था. उसकी पहचान अमेरिकी के सबसे बड़े आर्ट डीलर्स में से एक थी. 2011 में जर्मनी के फ्रैंकफर्ट एयरपोर्ट से पकड़े जाने के बाद उसके चेहरे पर पड़ा ‘आर्ट डीलर होने का’ नाकाब दुनिया के सामने से उठ गया.
दुनिया को पता चला कि जिसे वह आर्ट डीलर समझती थी दरअसल वो दुनिया में चोरी की प्राचीन मूर्तियों और कलाकृतियों का सबसे बड़ा चोर था. उसका रैकेट इतना बड़ा कि भारत ही नहीं पाकिस्तान, अफगानिस्तान, थाईलैंड और नेपाल के मंदिरों से चोरी की गईं मूर्तियां उसके पास पहुंच जाती थीं.
एक इंग्लिश वेबसाइट की रिपोर्ट के अनुसार, कपूर को अब तक $ 107.6 मिलियन (लगभग 6,671 करोड़ रुपये / 66.71 बिलियन रुपये) की 2,622 कलाकृतियों की चोरी के लिए कथित रूप से जिम्मेदार पाया गया है. अमेरिकी पुलिस की जांच के मुताबिक सुभाष कपूर ने बड़ी चलाकी से लगभग 30 साल तक मूर्तियों की चोरी के धंधे को चलाया. इस दौरान उसने हजारों मूर्तियों और कलाकृतियों की तस्करी की.
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सुभाष कपूर से जुड़ीं कुछ अहम बातें
- 1974 में सुभाष कपुर अमेरिका जा बसा. वहां उसकी बहन सुषमा सरीन निंबस एक्सपोर्ट्स-इम्पोर्ट्स के नाम से रेयर प्रोडक्ट्स बेचने का कारोबार करती थी.
- सुभाष ने बहन के साथ मिलकर अमेरिका के सबसे महंगे इलाके मैनहटन में इन चीजों को बेचने का कारोबार शुरू किया. इसे नाम दिया गया ‘ आर्ट फ्रॉम द पास्ट’.
- इसमें ‘नटराज’, भगवान गणेश और तीसरी सदी से लेकर मॉर्डन इंडिया तक की तमाम मूर्तियां थीं.
- सुभाष ने इसमें दक्षिण एशिया समेत पूरी दुनिया की आर्ट्स को समेटा था, जो अधिकांश तस्करी से जुटाई गई थी.
13 जुलाई 2012 में सुभाष कपूर को भारत प्रत्यर्पित किया गया था. इसके बाद उसके ऊपर मूर्तियों के केस चलाए गए. एक हिंदी वेबसाइट की रिपोर्ट के अनुसार, अभी सुभाष कपूर तमिलनाडु की एक जेल में है.
सुभाष कपूर का वर्किंग स्टाइल
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सुभाष कपूर के लोग मंदिरों से मूर्तियां चुराते
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फिर डीलर्स-सप्लायर्स तक पहुंची ये मूर्तियां
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ये डीलर्स भारत में चलाते थे Antique Store
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जिनकी आड़ में US भेजी जाती थीं ये मूर्तियां
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वहां पर सुभाष कपूर के गोदामों छुपाई जातीं
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मर्तियों को रिस्टोर कर दिया था जाता नया लुक
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बोली के लिए कैटलॉग में लगाई जाती थी फोटो
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फिर ऊंची बोली पर बेच दी जाती थीं ये मूर्तियां
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या सीधे संग्रहालयों-आर्ट गैलरीज् और शौकिन…
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लोगों करोड़ों रुपये में बेच दी जाती थीं मूर्तियां
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कभी तो असली मूर्ति की हबहू नकली मूर्ति…
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बनाकर ऊंचे दामों पर बेच कामते मोटा पैसा
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